।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
पौष शुक्ल अष्टमी, वि.सं.२०७१, सोमवार
मानसमें नाम-वन्दना

                                              
                 

              



 
 (गत ब्लॉगसे आगेका)

नारदजीने कहा‒‘इसका बेटा तेरा वैरी नहीं होगा ।’ नारदजीकी बात सब मानते थे । इन्द्रने मान ली । ठीक है महाराज ! कयाधूको छोड़ दिया । नारदजीने बड़े स्नेहसे उसको अपनी कुटियापर रखा और कहा कि बेटी ! तू चिन्ता मत कर । तेरे पति आयेंगे, तब पहुँचा दूँगा ।’ वह जैसे अपने बापके घर रहे, वैसे नारदजीके पास रहने लगी । नारदजीके मनमें एक लोभ था कि मौका पड़ जाय तो इसके गर्भमें जो बालक है, इसको भक्ति सिखा दें । यह संतोंकी कृपा होती है । कयाधूको बढ़िया-बढ़िया भगवान्‌की बातें सुनाते, पर लक्ष्य रखते उस बालकका । वह प्रसन्नतासे सुनती और गर्भमें बैठा बालक भी उन बातोंको सुनता था । नारदजीकी कृपासे गर्भमें ही उसे ज्ञान हो गया ।

माता  रह्यो   न   लेश  नारदके  उपदेशको ।
सो धार्‌यो हि अशेष गर्भ मांही ज्ञानी भयो ॥

प्रह्लादजीको कितना कष्ट दिया ! कितना भय दिखाया ! परंतु उन्होंने नामको छोड़ा नहीं । प्रह्लादजीको रस आ गया, ऐसे नामको कैसे छोड़ा जाय ? शुक्राचार्यजीके पुत्र प्रह्लादजीको पढ़ाते थे । राजाने उनको धमकाया कि तुम हमारे बेटेको बिगाड़ते हो । यह प्रह्लाद हमारे वैरीका नाम लेता है । यह कैसे सीख गया ? प्रह्लादसे पूछा‒‘तुम्हारे यह कुमति कहाँसे आयी ? दूसरोंका कहा हुआ करते हो कि स्वयं अपने मनसे ही ! किसने सिखा दिया ?’ प्रह्लादजी कहते हैं‒‘जिसको आप कुमति कहते हो, यह दूसरा कोई सिखा नहीं सकता, न स्वयं आती है । संत-महापुरुष, भगवान्‌के प्यारे भक्तोंकी जबतक कृपा नहीं हो जाती, तबतक इसे कोई सिखा नहीं सकता ।’

प्रेम बदौं प्रहलादहिको जिन पाहनतें परमेश्वरु काढ़े ॥

प्रेम तो प्रह्लादजीका है, जिन्होंने पत्थरमेंसे रामजीको निकाल लिया । जिस पत्थरमेंसे कोई-सा रस नहीं निकलता, ऐसे पत्थरमेंसे रसराज श्रीठाकुरजीको निकाल लिया । पाहनतें परमेश्वरु काढ़े’ थम्भेमेंसे भगवान् प्रकट हो गये । थम्भे अपने यहाँ भी बहुत-से खड़े हैं । थम्भा तो है ही, पर प्रह्लाद नहीं है । राक्षसके घरके थम्भोंसे ये अशुद्ध थोड़े ही हैं ? अपवित्र थोड़े ही हैं, पर जरूरत प्रह्लादकी है‒प्रकर्षेण आह्लादः यस्य स प्रह्लादः ।’ इधर तो मार पड़ रही है, पर भीतर खुशी हो रही है, प्रसन्नता हो रही है । भगवान्‌की कृपा देख-देखकर हर समय आनन्द हो रहा है । ऐसे हम भी प्रह्लाद हो जायँ ।
   
   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे