(गत ब्लॉगसे आगेका)
यह अपने हृदयकी बात है । मेरे निर्धनका धन यही है । कैसा बढ़िया
धन है यह ! अन्तमें कहते हैं यह जो रत्न-मणि,
सोना आदि है, इनसे मेरे मतलब नहीं है । ये पत्थरके टुकड़े हैं । इनसे क्या
काम ! निर्धनका असली धन तो ‘राम’ नाम है ।
धनवन्ता सोइ जानिये जाके ‘राम’ नाम
धन होय ।
यह धन जिसके पास है, वही
धनी है । उसके बिना कंगले हैं सभी ।
सम्मीलने नयनयोर्न हि किञ्चिदस्ति ।
करोड़ों रुपये आज पासमें हैं,
पर ये दोनों आँखें सदाके लिये जिस दिन बन्द हो गयीं,
उस दिन कुछ नहीं है । सब यहाँका यहीं रह जायगा ।
सुपना सो हो जावसी सुत कुटुम्ब धन धाम ।
यह स्वप्नकी तरह हो जायगा । आँख खुलते ही स्वप्न कुछ नहीं और
आँख मिचते ही यहाँका धन कुछ नहीं ।
स्थूल बुद्धिवाले बिना समझे कह देते हैं कि ‘राम’ नामसे क्या होता है ?
वे बेचारे इस बातको जानते नहीं,
उन्हें पता ही नहीं है । इस विद्याको जाननेवाले ही जानते हैं
भाई ! सच्ची लगन जिसके लगी है वह जानता है । दूसरोंको क्या पता ?
‘जिसके लागी है सोई जाने दूजा क्या
जाने रे भाई’ भगवान्का नाम लेनेवालोंका बड़े-बड़े लोकोंमें जहाँ जाते हैं,
वहाँ आदर होता है कि भगवान्के भक्त पधारे हैं । हमारा लोक पवित्र
हो जाय । भगवन्नामसे रोम-रोम, कण-कण पवित्र हो जाता है,
महान् पवित्रता छा जाती है । ऐसा भगवान्का नाम है । जिसके हृदयमें नामके प्रति प्रेम जाग्रत् हो गया, वह
असली धनी है । इससे भगवान् प्रकट हो जाते हैं । वह खुद ऐसा विलक्षण हो जाता है कि उसके
दर्शन, स्पर्श, भाषणसे
दूसरोंपर असर पड़ता है । नाम लेनेवाले सन्त-महात्माओंके दर्शनसे शान्ति मिलती है । अशान्ति
दूर हो जाती है, शोक-चिन्ता दूर हो जाते हैं और पापोंका नाश हो जाता
है । जहाँ वे रहते हैं, वे धाम पवित्र हो जाते हैं और जहाँ वे चलते हैं वहाँका
वायुमण्डल पवित्र हो जाता है ।
प्रह्लादपर संत-कृपा
प्रह्लादजी महाराजपर नारदजीकी कृपा हो गयी । इन्द्रको हिरण्यकशिपुसे
भय लगता था । हिरण्यकशिपु तपस्या करने गया हुआ था । पीछेसे इन्द्र उसकी स्त्री कयाधूको
पकड़कर ले गया । बीचमें नारदजी मिल गये । उन्होंने कहा‒‘बेचारी अबलाका कोई कसूर नहीं
है, इसको क्यों दुःख देता है भाई !’ इन्द्रने
कहा‒‘इसको दुःख नहीं देना है ! इसके गर्भमें बालक है । अकेले हिरण्यकशिपुने हमारेको
इतना तंग कर दिया है, अगर यह बालक पैदा हो जायगा तो बाप और बेटा दो होनेपर हमारी क्या
दशा करेंगे । इसलिये बालक जन्मेगा, तब उसे मार दूँगा, फिर काम ठीक हो जायगा ।’
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे |