(गत ब्लॉगसे आगेका)
फिर कहते हैं‒
अस प्रभु हृदयँ अछत अबिकारी ।
सकल जीव जग दीन दुखारी ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २३ । ७)
संसारमें जितने जीव हैं,
उनके हृदयमें आनन्दराशि परमात्मा विराजमान हैं । ‘अस प्रभु’
कहनेका तात्पर्य है कि ऐसे आनन्दराशि प्रभुके हृदयमें रहते हुए
संसारमें जितने जीव हैं, वे सब-के-सब दीन हो रहे हैं और दुःखी हो रहे हैं । महान् आनन्दराशि
भगवान्के भीतर रहते हुए दीन हो रहे हैं । आनन्दराशि निर्गुण
परमात्मा सबके हृदयमें रहकर भी जीवोंका दुःख दूर नहीं कर सके, दरिद्रता
नहीं मिटा सके । परंतु भगवन्नामका यदि यत्नसे निरूपण किया जाय तो वह आनन्द प्रत्यक्ष
प्रकट हो जाता है । दुःख और दरिद्रता सर्वथा मिट जाते हैं ।
नाम निरूपन नाम जतन तें
।
सोउ प्रगटत जिमि मोल रतन तें ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २३ । ८)
निर्गुणतत्त्वमें निरूपणकी मुख्यता है । निरूपण यानी उसका स्वरूप
क्या है, उसकी महिमा क्या है,
वह तत्त्व क्या है ? ठीक गहरा उतरकर तत्त्वको समझा जाय और उसीमें
तल्लीन होकर नाम जपा जाय मानो सब जगह परमात्मा परिपूर्ण हैं,
ऐसे जपनेसे ‘सोउ प्रगटत’‒वह आनन्द प्रकट हो जाता है । इस प्रकार खयाल रखकर उसका विशेष
यत्नपूर्वक निरूपण किया जाय तो निर्गुणतत्त्व आनन्दरूपसे हृदयमें प्रकट हो जाता है
। ‘कंचन खान खुली घट माहीं रामदासके टोटो नाहीं’
घटमें, हृदयमें आनन्दकी खान खुल गयी । अब घाटा किस बातका रहा बताओ
! भीतरसे ही जब आनन्द उमड़ता है तो सांसारिक सुखकी कामना किञ्चिन्मात्र नहीं रहती ।
आप कह सकते हैं, ऐसे आनन्दका हमें अनुभव नहीं । ठीक है,
आनन्द तो प्रकट नहीं हुआ;
परंतु शीत ज्वर कभी आया ही होगा ! शीत ज्वर जब आता है,
तब भीतरसे सर्दी लगती है,
ऊपरसे कई कम्बल, रजाई आदि ओढ़नेपर भी भीतरसे कँपकँपी आती रहती है । बाहर कपड़ा
ओढ़नेसे क्या हो ! भीतरसे शीत हो, तब बाहरकी गर्मी बेचारी क्या करे ! गर्म-गर्म जल भीतर जानेसे
कुछ शान्ति हो सकती है, ऐसे जिसके भीतर आनन्द प्रकट हो जाय तो उसे बाहरी वस्तुओं,
व्यक्तियोंके संयोगसे मिलनेवाले सुखकी आवश्यकता नहीं रहती ।
ऐसे बाहरकी प्रतिकूल-से-प्रतिकूल परिस्थितिमें भी उसे दुःख नहीं हो सकता । ‘यस्मिन्स्थितो
न दुःखेन गुरुणापि विचाल्यते ॥’ (गीता ६ । २२) । बड़े भारी दुःख आनेपर भी किञ्चिन्मात्र दुःख नहीं हो सकता;
क्योंकि उसके भीतर आनन्दके फव्वारे छूटते हैं । उसके दर्शन,
भाषण, स्पर्श, संगसे आनन्द आता है । उसका नाम लेनेसे आनन्द आता है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
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