(१६ फरवरीके ब्लॉगसे आगेका)
इसी तरह भगवान्का नाम मौजूद है,
भगवान् विद्यमान हैं । ‘राम’ नाम लेते भी हैं; परंतु ऊपर-ऊपरसे लेते हैं,
भीतरी भावसे नहीं लेते । निष्कपट होकर
सरलतापूर्वक भीतरसे लिया जाय तो नाम महाराज दुनियामात्रका दुःख दूर कर दें ।
संत-महात्मा, भगवान्के
प्रेमी भक्त जहाँ जाते हैं, वहाँ दुनियाका दुःख दूर हो जाता है । उनके दर्शन, भाषण, चिन्तनसे
दुःख दूर होता है, धन देनेसे दूर नहीं होता । जिनके पास लाखों-करोड़ोंकी सम्पत्ति है,
बहुत वैभव है, वे भीतरसे जलते रहते हैं;
परंतु नाम-प्रेमी संत-महात्माओंके दर्शनसे वे भी निहाल हो जाते
हैं । संतोंके मिलनेसे शान्ति मिलती है; क्योंकि
नाम जपनेसे उनमें आनन्दराशि प्रभु प्रकट हो गये । प्रभुके प्रकट होनेसे उन संतोंमें
यह विलक्षणता आ जाती है ।
निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार ।
कहउँ नामु बड़ राम तें निज बिचार अनुसार ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २३)
सगुणसे नामकी श्रेष्ठता
ऊपर गोस्वामीजीने नामको निर्गुण-स्वरूपसे बड़ा बताया और अब अपने
विचारके अनुसार सगुण रामसे नामको बड़ा बताते हैं । निर्गुण-स्वरूपका उपक्रम करते हुए
‘मोरे मत बड़ नामु दुहू तें ।’
दोनोंसे बड़ा बताया और यहाँ बीचमें निर्गुण-स्वरूपका उपसंहार
करते हुए कहते हैं ‘निरगुन तें एहि भाँति बड़ नाम प्रभाउ अपार
।’ इस प्रकार निर्गुणसे नाम बड़ा बताया और यहाँसे आगे सगुण-स्वरूपका उपक्रम करते हुए
‘कहउँ नामु बड़ राम तें’
सगुणसे नामको बड़ा बताते हैं । अब ध्यान देना ! सगुणसे बड़ा नामको
बताते हुए तुलसीदासजी महाराज पूरी रामायणका वर्णन करते हैं । रामजीने क्या किया और
नाम महाराजने क्या किया‒ऐसे दोनोंकी तुलना करते हैं ।
राम भगत हित नर तनु
धारी ।
सहि संकट किए साधु सुखारी ॥
नामु सप्रेम जपत अनयासा ।
भगत होहिं मुद मंगल बासा ॥
(मानस,
बालकाण्ड, दोहा २४ । १-२)
गोस्वामीजी कहते हैं कि रामजीने भक्तोंके हितके लिये मनुष्यरूप
धारण किया । नाना प्रकारके कष्ट स्वयं सहे और संतोंको सुखी किया । रामजीने भक्तोंके
लिये शरीर धारण करके काम किया । जरा गहरा विचार करें ! संत कभी दुःखी होते हैं ?
वे सदा सुखी ही रहते हैं । सगुण भगवान्के दर्शन करके वे विशेष
प्रसन्न हो जाते हैं, यह बात तो कह सकते हैं । दूसरे,
भगवान्ने स्वयं जा-जाकर उनके यहाँ दर्शन दिये और आप स्वयं वन-वन
घूमे, नाना प्रकारके कष्ट सहे;
परंतु नाम महाराजको कहीं आना-जाना नहीं पड़ता । किसी तरहका कष्ट
सहन नहीं करना पड़ता । जहाँ हो, वहीं बैठे-बैठे नाम जपनेसे सब प्रकारके मंगल हो जाते हैं,
आनन्द छा जाता है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘मानसमें नाम-वन्दना’ पुस्तकसे
|