।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि
अधिक आषाढ़ शुक्ल नवमी, वि.सं.२०७२, गुरुवार
सन्त-महिमा



(गत ब्लॉगसे आगेका)

लोग कहते हैं कि अच्छे पुरुष मिलते नहीं और मैं कहता हूँ कि हम अच्छे पुरुषोंके लायक नहीं हैं । आपलोगोंसे मैं एक बात पूछता हूँ‒‘क्या आपको अभीतक अपनेसे ऊँचे दर्जेका पुरुष मिला ही नहीं ? यदि मिला है तो क्या आपने उनसे पूरा लाभ ले लिया ? यदि नहीं लिया तो उनसे बड़े पुरुष, सन्त मिलनेपर आप उनसे लाभ कैसे ले लेंगे ? क्या निहाल हो जायँगे उनसे मिलकर ? अभी जो मिलते हैं, उनसे पूरा लाभ ले लो‒इस कक्षामें तो उत्तीर्ण हो जाओ उसके बाद भगवान् अपने-आप अगली कक्षामें भेज देंगे बालक जिस श्रेणीमें पढ़ता हैउससे आगेकी श्रेणियों पहलेसे तैयार रहती हैं भगवान् तो प्रधानाध्यापक हैं‒‘कृष्ण वन्दे जगदगुरुम् ।’

आपके पास होते ही, वे आगेकी कक्षामें भेज देंगे । उससे ऊँचे सन्तोंका संग करा देंगे

अब प्रश्र होता है कि उन सन्तोंको हम पहचानेंगे कैसे ? आजसे कोई ३५-४० वर्ष पहलेकी बात है । ऋषिकेशमें एक सज्जनने मुझसे पूछा कि आप तो यहाँ वर्षोंसे आते रहते हैं, हमें कोई अच्छे सन्त बताइये अच्छे महात्माके दर्शन कराइये आप बताओ, कौन-से अच्छे महात्मा हैं ? मैंने कहा भाई ! आपका प्रश्न मेरी समझमें नहीं आया, क्या उत्तर दूँ ? तो वे मुझे समझाने लगे कि मैं किसी अच्छे सन्त-महात्माका पता पूछता हूँ, जिसका संग करके हम लाभ उठावें मैंने फिर कहा कि भाई ! आपका प्रश्र मैं समझा नहीं वे फिर मुझे समझाने लगे तो मैंने कहा कि आपके प्रश्नके अक्षर तो मेरे समझमें गये आप जो बात कहते हैं, वह भी सीधी-सादी है, किसी विदेशी भाषामें नहीं है, परन्तु मेरी अकलमें आपकी बात नहीं बैठी वे बोले‒कैसे ? तो मुझे कहना पड़ा कि जब आपकी समझमें मेरा इतना सम्मान है कि मैं सच्चे सन्त-महात्माओंका पारखी हूँ तो उन महात्माओंकी परीक्षा करनेवाला मैं उनसे तो ऊँचा ही हो गया‒फिर आप दूसरा क्यों खोजते हैं ? जब मैं उन सन्तोंकी परीक्षा करनेवाला हूँ, तो उनसे मेरेमें कम योग्यता होगी ? इस तरह आपका प्रश्न मेरी समझमें नहीं आया

एक सज्जन मुझे मिले और बोले‒‘हमें बहुत-से महात्मा मिले ।’ तो मैंने कहा कि आपको एक भी नहीं मिले अगर एक भी मिलते तो बहुत नहीं मिलते । वास्तवमें एक भी सन्त मिलते तो आप वहीं अटक जाते । आप भटकते हैं तो आपको एक भी नहीं मिले अगर मिल जाते तो दूसरी जगह जाते कभी ? किसलिये जाते बताओ ? उन महात्मामें कमी देखी है तभी तो दूसरेके पास जाते हैं वहाँ आपकी पूर्ति नहीं होती, इसलिये दूसरी जगह भटकते हैं, दूसरोंकी गरज करते हैं किसीने कहा है‒

हरि दुर्लभ नहीं जगत में,    हरिजन  दुर्लभ  होय
हरि हेरयाँ सब जग मिले, हरिजन कहीं एक होय

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे