(गत ब्लॉगसे आगेका)
लोग कहते हैं कि अच्छे पुरुष मिलते नहीं और मैं कहता हूँ कि हम अच्छे पुरुषोंके लायक नहीं हैं । आपलोगोंसे मैं एक बात पूछता हूँ‒‘क्या आपको अभीतक अपनेसे ऊँचे दर्जेका पुरुष मिला ही नहीं ? यदि मिला है तो क्या आपने उनसे पूरा लाभ ले लिया ? यदि नहीं लिया तो उनसे बड़े पुरुष, सन्त मिलनेपर आप उनसे लाभ कैसे ले लेंगे ? क्या निहाल हो जायँगे उनसे मिलकर ? अभी जो मिलते
हैं,
उनसे
पूरा
लाभ ले लो‒इस
कक्षामें तो उत्तीर्ण
हो जाओ । उसके
बाद भगवान्
अपने-आप अगली
कक्षामें
भेज देंगे
। बालक जिस श्रेणीमें पढ़ता है, उससे आगेकी श्रेणियों पहलेसे तैयार रहती हैं । भगवान् तो प्रधानाध्यापक हैं‒‘कृष्ण वन्दे जगदगुरुम्
।’
आपके पास होते ही, वे आगेकी कक्षामें भेज देंगे । उससे ऊँचे सन्तोंका संग करा देंगे ।
अब प्रश्र होता है कि उन सन्तोंको हम पहचानेंगे कैसे ? आजसे कोई ३५-४० वर्ष पहलेकी बात है । ऋषिकेशमें एक सज्जनने मुझसे पूछा कि आप तो यहाँ वर्षोंसे आते रहते हैं, हमें कोई अच्छे सन्त बताइये । अच्छे महात्माके दर्शन कराइये । आप बताओ, कौन-से अच्छे महात्मा हैं ? मैंने कहा भाई ! आपका प्रश्न मेरी समझमें नहीं आया, क्या उत्तर दूँ ? तो वे मुझे समझाने लगे कि मैं किसी अच्छे सन्त-महात्माका पता पूछता हूँ, जिसका संग करके हम लाभ उठावें । मैंने फिर कहा कि भाई ! आपका प्रश्र मैं समझा नहीं । वे फिर मुझे समझाने लगे तो मैंने कहा कि आपके प्रश्नके अक्षर तो मेरे समझमें आ गये । आप जो बात कहते हैं, वह भी सीधी-सादी है, किसी विदेशी भाषामें नहीं है, परन्तु मेरी अकलमें आपकी बात नहीं बैठी । वे बोले‒कैसे ? तो मुझे
कहना
पड़ा कि जब आपकी
समझमें
मेरा
इतना
सम्मान
है कि मैं सच्चे
सन्त-महात्माओंका पारखी हूँ तो उन महात्माओंकी परीक्षा करनेवाला
मैं उनसे
तो ऊँचा
ही हो गया‒फिर
आप दूसरा क्यों
खोजते
हैं ? जब मैं उन सन्तोंकी
परीक्षा
करनेवाला हूँ,
तो उनसे
मेरेमें
कम योग्यता
होगी ?
इस तरह आपका प्रश्न
मेरी
समझमें
नहीं
आया ।
एक सज्जन मुझे मिले और बोले‒‘हमें बहुत-से महात्मा मिले ।’ तो मैंने
कहा कि आपको
एक भी नहीं मिले
। अगर एक भी मिलते
तो बहुत
नहीं
मिलते
। वास्तवमें एक भी सन्त मिलते तो आप वहीं अटक जाते । आप भटकते
हैं तो आपको
एक भी नहीं
मिले
। अगर मिल जाते तो दूसरी जगह जाते कभी ? किसलिये जाते बताओ ? उन महात्मामें कमी देखी है तभी तो दूसरेके पास जाते हैं । वहाँ आपकी पूर्ति नहीं होती, इसलिये दूसरी जगह भटकते हैं, दूसरोंकी गरज करते हैं । किसीने कहा है‒
हरि दुर्लभ
नहीं जगत में, हरिजन दुर्लभ होय ।
हरि हेरयाँ
सब जग मिले,
हरिजन
कहीं एक होय ॥
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे
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