(गत ब्लॉगसे आगेका)
इसके अलावा हम गरीब हों अथवा धनी हों‒जिनके मनमें हमारी कोई गरज नहीं दीखती । हम धनी हैं तो
कुछ ज्यादा
आदर करें
और गरीब
हैं तो निरादर
करें, हमसे
वे कुछ स्वार्थ
सिद्ध
करना
चाहें‒ऐसा हमें
कभी लगता
ही नहीं,
कभी भी । हम उनसे ज्ञानयोग, भक्तियोग, कर्मयोग आदिकी बातें पूछते हैं तो वे उनसे भी आगेकी बातें बता देते हैं । हमारी दृष्टिमें सगुण-निर्गुण, साकार-निराकारके तत्त्वको जाननेवाला, उनसे बढ़कर कोई दीखता नहीं‒ऐसे महापुरुषोंका संग मिल जाय तो अपना दिल खोलकर रखनेसे बड़ा लाभ होता है ।
सरल सुभाव न मन कुटिलाई ।
(मानस, उत्तर॰ ४६ । २)
ऐसे सन्तोंके पास सरल हृदयसे जायँ । अपनी विद्वत्ता प्रख्यापित
करनेके लिये, चतुर कहलानेके लिये, प्रश्र न करें । अपने
हृदयकी
गुत्थियों सुलझानेके लिये, अपनी
उलझन मिटानेके
लिये,
सरलतासे
प्रश्र
करें-तो विशेष लाभ ले सकेंगे ।
साधनके विषयमें जाननेके लिये प्रश्र करें कि क्या साधन करें ? यहाँतक तो पहुँच गये, इसके बाद क्या साधन करना चाहिये‒इस प्रकार जानकर आगे बढ़ा जाय तो बहुत लाभकी बात है ।
सन्त-महात्माओंको हमारी विशेष गरज रहती है । जैसे, माँको अपने बच्चेकी याद आती है । बच्चेको भूख लगते ही माँ स्वयं चलकर बच्चेके पास चली आती है‒ऐसे ही सन्त-महात्मा सच्चे जिज्ञासुओंके पास खिंचे चले आते हैं ।
इस विषयमें एक कहानी सुनी है‒एक गृहस्थ बहुत ऊँचे दर्जेके तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्त महापुरुष थे । वे अपने घोड़ेपर चढ़कर किसी गाँव जा रहे थे । चलते-चलते घोड़ा एक अन्य रास्तेपर चल पड़ा । उन्होंने उसको कितना ही मोड़ना चाहा, लेकिन वह तो उसी रास्तेपर चलनेके लिये अड़ गया । इसपर उन्होंने सोचा कि अच्छी बात है, इसके मनमें जिधर जानेकी है, उधरसे चलना चाहिये । अपने थोड़ा चक्कर पड़ेगा, कोई बात नहीं । वह घोड़ा जाते-जाते एक घरके सामने रुक
गया । समय अधिक हो गया था, अतः वे सन्त घोड़ेसे नीचे उतर पड़े और उस घरके अन्दर गये । वहाँ एक सज्जन मिले । उन्होंने उन महापुरुषका बड़ा आदर-सत्कार किया, क्योंकि वे उन्हें नामसे जानते थे कि अमुक महापुरुष बड़े अच्छे सन्त हैं । वे सज्जन अच्छे साधक थे । वे कई बार सोचते थे कि सन्त-महात्माके पास जावें और उनसे साधन-सम्बन्धी रास्ता पूछें । आज तो भगवान्ने कृपा कर दी, तो घर बैठे गंगा आ गयीं । उन्होंने उन गृहस्थ-सन्तको भोजनादि कराया । सत्संग-सम्बन्धी बातें हुईं । जो बातें उन सज्जनने पूछीं, उनका अच्छी प्रकार समाधान उन सन्तने किया ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संगकी विलक्षणता’ पुस्तकसे |