मनुष्य जबतक उत्पत्ति-विनाशशील सुखमें फँसा रहता है, तबतक उसको
होश नहीं होता, ज्ञान नहीं होता । उसको यह विचार ही नहीं होता
कि इससे कितने दिन काम चलायेंगे ! जो उत्पन्न होता है,
वह नष्ट होता ही है । जिसका संयोग होता है, उसका
वियोग होता ही है । जो आता है, वह चला जाता है । जो पैदा होता
है, वह मर जाता है । अब इनके साथ हम कितने दिन रहेंगे
? अतः मनुष्यके लिये यह बहुत आवश्यक है कि वह ऐसे
आनन्दको प्राप्त कर ले, जिसे प्राप्त
करनेपर वह सदाके लिये सुखी हो जाय, उसको कभी किंचिन्मात्र भी
कष्ट न हो ।
हम देखते हैं कि बचपनसे लेकर अभीतक मैं वही हूँ । शरीर बदल गया, दृश्य बदल गया, परिस्थिति बदल गयी, देश, काल आदि
सब कुछ बदल गया, पर मैं वही हूँ । बदलनेवालोंके साथ मैं कितने
दिन रह सकता हूँ ? इनसे मुझे कबतक सुख मिलेगा ? इस बातपर विचार करनेकी योग्यता तथा अधिकार केवल मनुष्यको ही मिला है और मनुष्य
ही इसको समझ सकता है । पशु-पक्षियोंमें इसको समझनेकी ताकत ही
नहीं है । देवता आदि समझ तो सकते हैं, पर उनको भी वह अधिकार नहीं
मिला है, जो कि मनुष्यको मिला हुआ है । मनुष्य खूब आगे बढ़ सकता
है; क्योंकि मानव-शरीर मिला ही भगवत्प्राप्तिके
लिये है । महान् आनन्द मिल जाय, सदा रहनेवाला सुख मिल जाय,
उसमें कभी कमी आये ही नहीं‒ऐसे सुखकी प्राप्तिके लिये यह मनुष्य-शरीर मिला है । सांसारिक तुच्छ सुख पानेके लिये मनुष्य-शरीर है ही नहीं । ऐसा सुख तो पशु-पक्षियोंको भी मिलता
है । हवा चलती है, वर्षा बरसती है, धूप
तपती है‒ऐसी अनुकूलता-प्रतिकूलता तो पशु, पक्षी, वृक्ष आदिके सामने भी आती है । उनको भी
सुख-दुःख होता है । खेती कुम्हला रही हो और एकदम वर्षा हो जाय तो दूसरे दिन देखो,
पत्तियाँ बड़ी सुन्दर, हरी-भरी हो जायँगी; अतः उनको भी प्रसन्नता होती है । वर्षा
न होनेसे खेती कुम्हला जाती है; अतः उनको भी दुःख होता है । इस प्रकार थोड़ा सुख और थोड़ा दुःख तो सभी प्राणियोंको होता रहता
है । अगर हम भी उन्हींकी तरह सुखी-दुःखी होते रहेंगे तो महान् सुखको कौन प्राप्त करेगा ।
महान् सुख है, इसमें सन्देह नहीं । जैसे, संसारमें एक-एकसे बड़ी वस्तु होती है, एक विद्वान् भी होता है तो उससे
बड़ा विद्वान् भी होता है; एक लम्बी उम्रवाला होता है तो उससे
लम्बी उम्रवाला भी होता है; एक बलवान् होता है तो उससे बड़ा बलवान्
भी होता है । इस बड़प्पनकी कहीं-न-कहीं हद
होगी । कोई सबसे बड़ा विद्वान् होगा, सबसे लम्बी उम्रवाला
(अविनाशी) होगा, सबसे बड़ा
बलवान् होगा; उसको ही ईश्वर कहते हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
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