(गत ब्लॉगसे आगेका)
भगवान्का चिन्तन किये बिना
जो समय जाता है, वह सब निरर्थक होता है ।
अतः हर समय सावधान रहना चाहिये कि हमारा समय निरर्थक न चला जाय । यहाँ जितना काम करना होता है, जितनी
ड्यूटी बजानी होती है, उतना काम बड़े उत्साहसे करो और छुट्टी मिलते ही भगवान्के नामका
जप करो, कीर्तन करो, गीता आदि पुस्तकें पढ़ो ।
(२) दूसरी बात आपके लिये बहुत सुगम है; वह है‒अपना जीवन सादगीसे बितायें, अपना व्यक्तिगत खर्चा कम-से-कम करें
। साधारण
भोजन करना, साधारण कपड़ा पहनना और साधारण मकानमें
रहना‒ऐसे शरीर-निर्वाह करनेकी आदत बन जाय । ऐसी आदत बन जायगी तो समयपर आप बढ़िया भोजन
भी कर सकते हो, बढ़िया कपड़ा भी पहन सकते हो, बढ़िया मकानमें भी रह सकते हो और समयपर साधारण-से-साधारण
भोजन, कपड़ा और मकानमें भी निर्वाह कर सकते हो । आपको स्वतः ऐसा
अवसर मिला हुआ है, जिसमें आप अपना व्यक्तिगत खर्चा कम
करके सादगीसे अपना जीवन बितानेका अभ्यास कर सकते हो ।
यहाँसे बाहर जानेपर भी आप ऐश-आरामका
जीवन न बितायें । जीवनमें सादगी रखें । ऐसा स्वभाव बननेसे आप चाहें जहाँ खूब आरामसे
रह सकते हैं । जितने अच्छे-अच्छे संत-महात्मा हुए हैं, उन्होंने बिलकुल साधारण कपड़ोंमें, साधारण बिछौनोंमें, साधारण मकानोंमें रहते हुए और साधारण भोजन करते हुए अपना जीवन बिताया है । आपमेंसे
जिनके पास पैसे हों, वे दानमें, पुण्यमें, कुटुम्बियोंके लिये, अरक्षितोंके लिये, अपाहिजोंके लिये, दीन-दुःखियोंके लिये खर्च करें । अपना व्यक्तिगत खर्चा कम करें ।
(३) तीसरी बात यह है कि आप जो
काम करें,
उस काममें कारीगरी, चतुराई, होशियारी-बुद्धिमानी बढ़ाते रहें । यह विद्या आप यहाँ सीख लोगे तो यह
सदा आपके पास रहेगी । ऐसा आया है कि अगर ब्रह्माजी अपने वाहन हंसपर क्रोध करके उसे
अपने यहाँसे निकाल दें, तो बेशक निकाल दें, परन्तु ‘दूध-दूध पी लेना और जल छोड़ देना’‒यह विद्या उससे ब्रह्माजी भी नहीं छीन सकते । वह जहाँ
भी जायगा, यह विद्या तो उसके पास ही रहेगी । अतः हरेक काम करनेमें
कुशलताको, चतुराईको, समझदारीको, विद्याको बढ़ाते चले जायँ ।
(४) चौथी बात है‒पराया हक न लेना
। चोरी-डकैती आदि करना तो बहुत दूर रहा, दूसरोंका हक हमारे पास न आये‒इस विषयमें खूब सावधान रहना है
। अपनी
खरी कमाईका अन्न खाओगे तो अन्तःकरण निर्मल होगा और अगर चोरीका, ठगी-धोखेबाजीका, अन्यायका अन्न खाओगे तो अन्तःकरण महान् अशुद्ध हो जायगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
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