(गत ब्लॉगसे आगेका)
आजकल टैक्स बहुत बढ़ जानेसे लोग व्यापार
आदिमें चोरी-छिपाव करते हैं । जैसे-जैसे वकील सिखाता है, वैसा-वैसा करके वे धन बचानेकी
चेष्टा करते हैं । वे विचार ही नहीं करते कि इस प्रकार धन बचानेसे अन्तःकरण कितना मैला
हो जायगा ! एक संत कहा करते थे कि शुद्ध कमाईके धनसे बहुत
पवित्रता आती है । उनके पास एक राजा आया करते थे । एक बार राजाने उनसे पूछा
कि ‘महाराज, आपके यहाँ बहुत-से लोग आया करते हैं
और आप भी कई लोगोंके घरोंमें भिक्षाके लिये जाया करते हैं । ऐसा कोई घर आपकी दृष्टिमें
है, जिसका अन्न शुद्ध कमाईका हो ? अगर ऐसा घर आपको दीखता है तो बतायें
।’ सन्तने कहा कि ‘अमुक स्थानपर एक बूढ़ी
माई रहती है । उसके घरका अन्न शुद्ध है । वह ऊनको कातकर उससे अपनी जीविका चलाती है
। उसके पास धन नहीं है, साधारण घास-फूसकी कुटिया है; परंतु वह पराया हक नहीं लेती, इस कारण उसका अन्न शुद्ध है ।’ ऐसा सुनकर राजाके मनमें आया कि उसके घरकी रोटी मिल जाय
तो बड़ा अच्छा है ! राजा स्वयं एक भिखारी बनकर उसके घर पहुँचा और बोला‒‘माताजी ! कुछ
भिक्षा मिल जाय ।’ वह बूढ़ी माई भीतरसे रोटी लायी और बोली‒‘बेटा ! यह रोटी ले लो ।’ तब राजाने पूछा‒‘माताजी, एक बात बताओ कि यह रोटी शुद्ध है न ? इसमें पराया हक तो नहीं है ?’ तो वह बोली‒‘देख बेटा, बात यह है कि यह पूरी शुद्ध नहीं है, इसमें थोड़ा पराया हक आ गया है ! एक दिन रातमें बारात जा
रही थी । बारातमें जो गैस-बत्तियाँ थीं, उनके प्रकाशमें मैंने ऊन ठीक की थी‒इतना इसमें पराया हक आ गया है । इसके सिवाय
मेरी कमाईमें कोई कसर नहीं है ।’ राजाने बड़ा आश्चर्य किया कि इतनी-सी कमीका भी इतना खयाल है ! दूसरेके उस प्रकाशमें
हमारा क्या अधिकार है कि उसमें हम अपनी ऊन ठीक करें ?
इस तरह ये चार बातें हुईं‒पहली, समय बर्बाद न करना, उसको उत्तम-से-उत्तम काममें लगाना; दूसरी, जो काम करें, उसमें अपनी जानकारी-होशियारी बढ़ाते
रहना; तीसरी, अपने शरीरके निर्वाहके लिये थोड़े खर्चेकी
आदत बना लेना और चौथी,
पराया हक न लेना । ये चार
बातें जिसमें होती हैं,
उसको लोग बहुत चाहते हैं
। अगर
वह नौकरी करना चाहेगा, तो उसको नौकरी जरूर मिल जायगी । ये
जो बड़े-बड़े व्यापार करनेवाले सेठ होते हैं, वे प्रायः झूठ-कपट करते हैं, सरकारको धोखा देते हैं, बही भी दूसरी बना देते हैं और वक्तपर विश्वासघात भी कर
लेते हैं; परन्तु वे भी यह नहीं चाहते कि हमारा मुनीम हमारे साथ
झूठ-कपट करे, हमारेको धोखा दे, हमारे साथ विश्वासघात करे । वे चाहते हैं कि हमें ईमानदार
अच्छा नौकर मिले । बेईमान आदमी भी ईमानदार नौकर चाहते हैं और ईमानदार आदमी भी ईमानदार
नौकर चाहते हैं । काम करनेवाला सच्चा और ईमानदार आदमी मिले‒इसकी भूख सबको रहती है ।
एक विधवा बहन मिली । उसके ससुरालवालोंने
सब रुपये-गहने ले लिये, उसको दिये नहीं । वह कहती थी कि ‘मेरा
खर्चा ही क्या है, दो हाथके बीचमें एक पेट है ! लोग अपने
पूरे कुटुम्बका पालन करते हैं, मेरा तो एक पेट है; न लड़का, न लड़की । एक मैं हूँ और दो हाथ हैं मेरे पास । मुझे क्या कमी है ?’ जो कम खर्चा करता है, थोड़े ही खर्चेमें अपना काम चलाता है, उसके मनमें बड़ा उत्साह रहता है । उस
उत्साहसे वह कमाकर खाता है,
तो उसका चित्त खूब प्रसन्न
रहता है । परन्तु पराया हक लेनेसे चित्त शुद्ध नहीं होता । दूसरोंका हक लेनेवाला बाहरसे
चाहे धनी बन जाय, चाहे खा-पीकर पुष्ट हो जाय, पर वह निर्भय नहीं हो सकता । जिसने किसीका कोई हक लिया
ही नहीं, उसको भय किस बातका ? वह तो निर्भय, निःशंक रहता है । उसको कभी कष्ट नहीं
पाना पड़ता । इस तरह आप भी अपना जीवन निर्मल बनायें । इन चारों बातोंको काममें लायें
। इससे आपका अन्तःकरण निर्मल होगा । इसके सिवाय जिनमें आपकी
श्रद्धा है,
उन संतोंकी पुस्तकें पढ़ें
और उनके अनुसार अपना जीवन बनायें ।
नारायण ! नारायण !! नारायण !!!
‒‘वास्तविक सुख’ पुस्तकसे
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