(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒गीतामें कहीं तो
सात्त्विक, राजस और तामस गुणोंको भगवान्से उत्पन्न बताया गया है (७ । १२),
कहीं प्रकृतिसे उत्पन्न बताया गया है (१३ । १९;
१४ । ५) और कहीं
स्वभावसे उत्पन्न बताया गया है (१८ । ४१), तो गुण भगवान्से उत्पन्न होते हैं या प्रकृतिसे
उत्पन्न होते हैं अथवा स्वभावसे उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर‒जहाँ भक्तिका प्रकरण है, वहाँ गुणोंको भगवान्से उत्पन्न बताया गया है; जहाँ ज्ञानका
प्रकरण है, वहाँ गुणोंको प्रकृतिसे उत्पन्न बताया
गया है; और जहाँ कर्म-विभागका वर्णन है, वहाँ गुणोंको स्वभावसे उत्पन्न बताया गया है ।
भगवान् सबके मालिक हैं । अतः मालिककी दृष्टिसे
देखा जाय तो गुण भगवान्से पैदा होते हैं । सबकी उत्पत्तिका कारण प्रकृति है । अतः
कारणकी दृष्टिसे देखा जाय तो गुण प्रकृतिसे पैदा होते है । व्यवहारकी दृष्टिसे देखा
जाय तो गुण प्राणियोंके स्वभावसे पैदा होते हैं । तात्पर्य है कि ये गुण मालिककी दृष्टिसे
भगवान्के हैं, कारणकी दृष्टिसे प्रकृतिके हैं और संसारमें
अभिव्यक्तिकी दृष्टिसे व्यक्तियोंके हैं । अतः तीनों ही बातें ठीक हैं ।
प्रश्न‒जो अनेक जन्मोंसे
सिद्ध हुआ है, अनेक जन्मोंसे साधन करता आया है,
वही परमगतिको प्राप्त
होता है (६ । ४५), तो फिर सभी मनुष्य अनेकजन्मसंसिद्ध न होनेसे इसी जन्ममें अपना उद्धार
कैसे कर सकते हैं ?
उत्तर
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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