(गत ब्लॉगसे आगेका)
इतिहास पढ़ लें, भागवत आदि ग्रन्थ पढ़ लें, ऐसा कोई व्यक्ति नहीं
मिलेगा, जिसकी सब कामनाएँ पूरी हो गयी हों । कामनाका तो त्याग ही होता है, पूर्ति
नहीं होती । संसार क्षणभंगुर
है, प्रतिक्षण नष्ट होनेवाला है, फिर उसकी कामना पूरी कैसे होगी ?[*]
शरीर-संसारसे सम्बन्ध माननेके कारण हमें अपनेमें जो कमी प्रतीत
होती है, उसकी पूर्ति परमात्माकी प्राप्तिसे ही होगी । हमें त्रिलोकीका
आधिपत्य मिल जाय, संसारमात्र मिल जाय,
अनेक ब्रह्माण्ड मिल जायँ तो भी हमारी आवश्यकताकी पूर्ति नहीं
होगी । न कामनाकी पूर्ति होगी, न आवश्यकताकी । क्योंकि जो कुछ मिलेगा,
शरीरको ही मिलेगा, हमें (स्वयंको) नहीं मिलेगा । जड़ वस्तु चेतनतक कैसे पहुँच सकती
है ? परमात्माके अंशको परमात्माकी ही आवश्यकता है । मेरी मुक्ति
हो जाय, मेरा कल्याण हो जाय, मेरेको
तत्वज्ञान हो जाय, मैं सम्पूर्ण दुःखोंसे छूट जाऊँ, मेरेको
महान् आनन्द मिल जाय, मेरेको भगवत्प्रेम मिल जाय‒यह सब स्वयंकी आवश्यकता
है । कामनाका तो त्याग ही होता
है, पर आवश्यकताका त्याग कभी हुआ नहीं, होगा नहीं, हो सकता नहीं । आवश्यकताकी तो पूर्ति ही होती है
। जितने भी सन्त-महात्मा हो चुके हैं, उनकी कामनाओंका त्याग हुआ है और आवश्यकताकी पूर्ति हुई है ।
इसलिये गीतामें कामनाके त्यागपर बहुत जोर दिया गया है ।
जहाँ जीवने प्रकृतिके अंशको पकड़ा है,
वहींसे कामना और आवश्यकताका भेद उत्पन्न हुआ है । अगर जीव प्रकृतिके
अंशको छोड़ दे तो कामनाका त्याग हो जायगा और आवश्यकताकी पूर्ति हो जायगी । जड़तासे सम्बन्ध-विच्छेद
होते ही कामनाओंका नाश और परमात्माकी प्राप्ति स्वतः हो जाती है,
क्योंकि परमात्मा सब जगह नित्य-निरन्तर विद्यमान हैं । परमात्माकी प्राप्तिमें संसारकी कामना ही बाधक है । जड़ताको
साथमें रखनेसे ही आवश्यकताकी पूर्ति (परमात्मप्राप्ति) नहीं होती । साधन करनेवाले बहुत-से
लोग सांसारिक कामनाकी पूर्तिकी तरह ही पारमार्थिक आवश्यकताकी पूर्तिके लिये भी उद्योग
करते हैं । अर्थात् जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति चाहते हैं, शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिके
द्वारा परमात्माकी प्राप्ति चाहते हैं । परन्तु यह सिद्धान्त
है कि जड़के द्वारा चेतनकी प्राप्ति होती नहीं होनी सम्भव नहीं । किन्तु चेतनकी प्राप्ति
जड़के त्यागसे ही होती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘सत्संग मुक्ताहार’ पुस्तकसे
[*] कुछ कामनाएँ पूरी होती हैं,
कुछ पूरी नहीं होतीं‒यह सबका अनुभव है । इससे सिद्ध होता है कामनाकी पूर्ति-अपूर्ति कामनाके अधीन नहीं है,
प्रत्युत किसी विधान (पूर्वकृत कर्मफल) के अधीन है ।
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