(गत ब्लॉगसे आगेका)
संसारके संयोगको आदर देते हो और परमात्माके वियोगको आदर देते
हो‒ये दो बहुत बड़ी गलतियाँ है । इन दोनों गलतियोंको आज मिटा दो अपने मनसे । फिर दीखे
तो कोई परवाह नहीं । संयोगका प्रभाव दीखे,
न दीखे । संसारके वियोगका प्रभाव दीखे,
न दीखे । प्रभावकी तरफ आप मत देखो । प्रभाव न दीखे तो अपने निर्णयमें
ढिलाई मत लाओ । बिलकुल सच्ची बात यही है । उसके सच्चेपनमें कोई सन्देह हो तो तर्क करो,
विचार करो, पूछो, पुस्तकें पढ़ों, सन्देह आने मत दो । वह सन्देह जितना हो,
तर्कसे दूर कर दो । परमात्माका नित्य-निरन्तर हमारा सम्बन्ध
है और संसारका सम्बन्ध नित्य-निरन्तर हमारेसे मिट रहा है । इसमें कोई सन्देह हो तो
तर्कसे दूर कर दो । परमात्माका नित्य-निरन्तर हमारा सम्बन्ध है और संसारका सम्बन्ध
नित्य-निरन्तर हमारेसे मिट रहा है । इसमें कोई सन्देह हो तो तर्कसे चाहे जितनी करो
। चाहे जितनी आप शंका करो; परन्तु उस निर्णयमें आप शंका मत करो । निर्णय कर लेनेके बाद
अब सन्देह मत करो ।
लड़का-लड़कीके सम्बन्धके लिये सगाई नहीं हुई,
तबतक कई लड़के कई लड़कियाँ देखते है । सम्बन्ध होनेके बाद देखते
ही नहीं । अब तो हो गयी, हो गयी, हो ही गयी सगाई । इसमें सन्देह मत करो । इसी तरहसे हमारा भगवान्के
साथ सम्बन्ध था, है और रहेगा । कभी दूर हो नहीं सकता,
सच्ची बात है और संसारका सम्बन्ध हमारा
नहीं था, नहीं है, नहीं
होगा और नहीं रहेगा । ये चारों
बातें याद कर लो । पहले संसारसे सम्बन्ध नहीं था और अगाड़ी संसारका सम्बन्ध नहीं रहेगा
। अभी भी संसारका सम्बन्ध वियुक्त हो रहा है और संसारका सम्बन्ध रह सकता नहीं‒ये चार
बातें है । पहले था नहीं, पीछे रहेगा नहीं और अभी भी है नहीं । और इसका सम्बन्ध रह सकता
नहीं, रहता ही नहीं, असम्भव बात है ।
परमात्माका वियोग पहले हुआ नहीं, अभी
है नहीं, अगाड़ी वियोग होगा नहीं और वियोग हो सकता नहीं । भगवान्की
ताकत नहीं कि आपसे अलग हो जायँ । इतना अकाट्य सम्बन्ध है; इसमें जितनी शंका करनी हो,
करो । यह आपका पक्का निर्णय है तो इस निर्णयके ऊपर आप दृढ़ रहो
। चाहे कितना ही वियोग हो जाय, चाहे कितनी ही वृत्तियाँ खराब हो जायँ,
कितना ही पतन हो जाय,
इस निर्णयके ऊपर पक्के दृढ़ रहो । वह जितना पक्का रहेगा,
उतनी बहुत जल्दी सिद्धि हो जायगी इसमें किंचिन्मात्र सन्देह
नहीं है । इस निर्णयपर दृढ़ रहना है । नहीं तो भाई ! दिन लगेगा । आप लक्षण देख करके निर्णयमें ढिलाई लाते हो, यह
गलती होती है । हमारे देखनेमें नहीं आता । आचरणमें नहीं आता । यह भाव हमारे बर्तावमें
नहीं आता, यह बिलकुल गलत बात है और आ जाय तो कोई बात नहीं ।
यह बात तो सही है, इसमें आप कच्चे मत पड़ो । इतनी बात मेरी मान लो, बात
सही तो सही ही है । दो और दो चार ही होते है, तीन
और पाँच हो ही नहीं सकते । इसमें क्या सन्देह बताओ ?
नारायण ! नारायण
!! नारायण !!!
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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