(गत ब्लॉगसे आगेका)
स्वाभाविकताको पहचान करके उसमें स्थित हो जाओ और
व्यवहार ठीक तरहसे मर्यादामें करो । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य
और शूद्र कुलमें जन्म हुआ है तो जन्मके अनुसार ब्याह ठीक मर्यादामें करो । मर्यादाका
पालन करो अच्छी तरहसे । जैसे खेलमें
स्वाँग लेते हैं, मर्यादाका ठीक तरहसे पालन करते है । वैसे ही कोई ब्राह्मण बना
है, कोई क्षत्रिय बना है, कोई वैश्य बना है, कोई शूद्र बना है । बाप मेहतर बन गया,
बेटा राजा बन गया खेलमें । वहाँपर बेटा उसको बाप कहे तो गलती
हो जायगी न ! खेल बिगड़ जायगा । इस वास्ते स्वाँगमें तो मेहतर ही कहो । ‘ओ,
वहाँ जाओ, वहाँ जाओ !’ कि अन्नदाता ! ठीक है,
जाता हूँ, स्वाँग तो बिगाड़ना नहीं
है, पर कृत्रिमतामें फँसना भी नहीं है ।
यह रुपया मेरा है, यह कुटुम्ब मेरा है,
यह शरीर मेरा है । कितने दिनोंसे ?
यह ज्यादा हो गया तो हम बड़े आदमी हो गये,
रुपये थोड़े है तो हम छोटे हो गये । यह बड़ी पार्टी है,
यह छोटी पार्टी है । अभिमान अपनेमें करने लग गये । भाई ! व्यवहार
करो । छोटी पार्टीका, बड़ी पार्टीका व्यवहार करो । बड़ी पार्टी वही है,
जो दूजेको बड़ा बनावे । दूजेको जो छोटा बनावे,
वह बड़ी पार्टी कैसे हुई ?
वह तो छोटी पार्टी हुई न ! और छोटी पार्टी दूजोंको बड़ी पार्टी
बनावे तो बड़ी पार्टी तो छोटी हुई और छोटी पार्टी बड़ी हुई;
क्योंकि बड़ी पार्टीको बड़प्पन छोटीने दिया । छोटेके बिना ही वह
बड़ा कैसे हो गया ? इस वास्ते छोटी पार्टी तो बड़ी पार्टीकी जनक है । छोटी पार्टी
तो बाप है और बड़ी पार्टी बेटा है; क्योंकि वह छोटी पार्टीका बड़ा बनाया हुआ है ।
धनवत्ता निर्धनोंके द्वारा होती है या कि धनियोंके द्वारा होती
है ? एक गाँवमें सब साधारण आदमी और एक लखपती हो तो वह बहुत धनी माना जाता है और जिस
शहरमें सब करोड़पति हों उसमें क्या इज्जत है उसकी ?
लाख रुपया होनेसे इज्जत है अथवा दूसरे लखपति नहीं होनेसे इज्जत
है ? बनावटी चीजको भाई ! बनावटी मानो । असलीको असली मानो । मूलमें असली परमात्माका अंश
है, यह वास्तविकता है और यह संसार सब उत्पत्ति-विनाशशील है । यह कोई वास्तवमें स्थिर
नहीं है । जो स्थिर नहीं है, उसको तो स्थिर मानते है कि वे स्थिर रहेंगे और वास्तवमें जो
स्थिर है, उस तरफ ख्याल ही नहीं करते । स्वाभाविकता
क्या है कि ‘अपनापन परमात्माके साथ है’ और
संसारके साथ अपनापन, मैं और मेरापन अस्वाभाविक है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘भगवत्प्राप्ति सहज है’ पुस्तकसे
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