(गत ब्लॉगसे आगेका)
खेती करनेवाले तथा करानेवाले‒दोनोंके लिये कुछ उपयोगी बातें
लिखी जाती हैं । मेरी प्रार्थना है कि इन बातोंपर विशेष ध्यान दें ।
खेतीमें हिंसा
लोगोंके मनमें यह बात जँची हुई है कि खेतीके जन्तु, कीड़े-मकोड़े
मारनेसे अनाज बहुत पैदा होता है । यह बिलकुल वहमकी बात है । पहले ऐसी हत्या नहीं हुआ करती थी । पहले इतनी टिड्डी आया करती
थी कि जैसे बादल हों और जमीनपर छाया हो जाती थी ! उस समय लोग कहते कि इस साल वर्षा
होगी और फसल अच्छी होगी; क्योंकि भगवान् हमारे लिये नहीं करेंगे,
पर इन जीवोंके लिये तो करेंगे ही । इसलिये जिस साल टिड्डी आती थी, उस साल
अकाल नहीं पड़ता था । वे तीन वर्ष
लगातार आती थीं, फिर बारह वर्षतक नहीं आतीं । बारह वर्षके बाद फिर आती थीं ।
अब उस टिड्डीको मारकर नष्ट कर दिया ! खेतोंमें तरह-तरहकी दवाइयाँ छिड़कते हैं, जिससे जन्तु
मर जायँ । पहले चौमासेके दिनोंमें दीपकपर जितने जन्तु आते थे,
उतने अब नहीं आते । परन्तु जन्तुओंको
मारनेसे कभी भला नहीं होता । पहले गेहूँ-बाजराके क्या भाव थे और आज क्या भाव
हैं ? अगर जन्तुओंको मारनेसे अनाज ज्यादा पैदा होता है तो फिर आज अनाज
सस्ता होना चाहिये । परन्तु अनाज महँगा क्यों हो गया ?
हत्याके कारण हो गया । अगर आप हत्या न करें तो इससे नुकसान नहीं
होता ।
आज आप मनुष्य हो, इसलिये जानवरोंको मारते हो । परन्तु कभी आपकी भी जानवर बननेकी
बारी आयेगी और वे मनुष्य बनेंगे तो वे आपको मारेंगे । किये हुए कर्मोंका फल अवश्य भोगना
पड़ता है‒
अवश्यमेव भोक्तव्यं कृतं कर्म शुभाशुभम् ।
नाभुक्तं क्षीयते कर्म जन्मकोटिशतैरपि
॥
आप बड़े होकर छोटे जीवोंको मारते हो और बड़ोंसे कृपा
चाहते हो, क्या यह न्याय है ? सन्त-महात्मा
हमारेपर कृपा करें, भगवान् हमारेपर कृपा करें, बड़े आदमी
हमारेपर कृपा करें‒ऐसा चाहनेका हक है आपका ? अगर आप
छोटोंपर कृपा करो तो बड़े भी आपपर कृपा करेंगे, नहीं
तो आपको कृपा माँगनेका कोई हक नहीं है । जो छोटोंपर कृपा नहीं करते, उनपर
बड़ोंको कृपा नहीं करनी चाहिये । परन्तु बड़े छोटोंपर कृपा करते ही रहते हैं, इसलिये
आपको भी छोटोंपर कृपा करते रहना चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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