(गत ब्लॉगसे आगेका)
आप तरह-तरहकी दवाइयों खरीदकर कीडोंको मारते हो,
क्या यह बड़ोंका काम है ?
समर्थ तो वह है, जो दूसरोंको
भी समर्थ बना दे, बड़ा बना दे । जो दूसरोंका नाश करे, वह समर्थ
नहीं है, प्रत्युत महान् असमर्थ है ! लोमड़ी अगर व्याई हुई हो और कोई आदमी पासमें आ जाय तो वह पकड़कर
फाड़ देती है; क्योंकि उसके मनमें भय रहता है कि मेरे बच्चोंका कहीं नुकसान
न हो जाय ! तो क्या लोमड़ी समर्थ हो गयी ? समर्थ वह है, जो सबकी
रक्षा करे, सबका पालन करे । आपको भगवान्ने बुद्धि दी है, खेत दिये हैं,
जमीन दी है, उसमें अनाज पैदा करो । यह दूसरोंको मारनेके लिये नहीं दी है
।
खेतोंमें जो जहरीली दवाएँ डालते हैं,
उनका अनाजपर बुरा असर पड़ता है,
जिससे स्वास्थ्य खराब होता है । शहरोंमें भी पानीमें दवाई डाल
देते हैं । पानीमें उसकी दुर्गन्ध आती है । उससे भी स्वास्थ्य खराब होता है । हिम्मटसर
(नोखा) की बात है । घासको कीड़ोंसे बचानेके लिये उसमें दवा छिड़क दी,
जिससे उस घासको खाकर गाय मर गयी । दवामें ऐसा जहर होता है,
जिससे जानवर मर जाते हैं । ऐसी खतरनाक दवाओंसे आप अनाज पैदा
करते हो तो उससे स्वास्थ्यका कितना नुकसान होगा ?
खेतोंमें जो कचरा होता है, उसमें
आग लगा देते हैं, जिससे छोटे-छोटे असंख्य जीव जलकर मर जाते हैं । रायड़ा आदिका जो कचरा हो,
उसको जंगलमें फेंक दो तो घास पैदा होगी और खेतोंमें फेंक दो
तो उसकी खाद बन जायगी । जंगलमें घास पैदा होगी तो गायोंको लाभ होगा । परन्तु उसमें
आग लगाकर दूसरोंका नाश क्यों करते हो ? आपको थोड़ी-सी आग लग जाय तो कैसी बुरी लगती है ?
पर आप आग लगाकर कितने जीवोंका नाश कर देते हो !
कीड़ी-नगरेको सींचनेके विषयमें भी एक बात ध्यान देनेकी है । गरमीके
दिनोंमें जब तेज धूप हो, किड़ियाँ बाहर नहीं हों,
उस समय कीड़ी-नगरेके ऊपर सूखे काँटे (पायी) रख दे और उसके ऊपर
मोटे-मोटे पत्थर रख दे । ऐसे ही जाड़ेके दिनोंमें जब रातमें तेज ठण्डी हो जाय, किड़ियाँ बाहर नहीं हों,
उस समय कीड़ी-नगरेके ऊपर काँटें रख दे । अगर किड़ियाँ बाहर होंगी
तो काँटोंमें पोई जायँगी, इसलिये जब किड़ियाँ बिलके भीतर हों,
तब काँटे रखे । काँटे नहीं रखनेसे कौवे,
चिड़ियाँ, स्याल आदि आकर कीडियों-सहित अन्नको खा जाते हैं,
जिससे आप करते हो पुण्य,
हो जाता है पाप ! काँटोंके ऊपर बड़े-बड़े पत्थर रख दे,
नहीं तो स्याल आकर काँटोंको अलग कर देता है और अनाजसहित कीड़ियोंको
खा जाता है ।
आपसे प्रार्थना है कि कृपानाथ ! जन्तुओंको मारना बन्द करो । पाप करके अपने लोक
और परलोकका नाश मत करो ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
|