(गत ब्लॉगसे आगेका)
गर्भपात महापाप
गर्भपात करना, नसबन्दी करना आदि महापापोंसे भी आप बचो । पराशरस्मृतिमें आया
है‒
यत्पापं ब्रह्महत्याया द्विगुणं
गर्भपातने ।
प्रायश्चित्तं न तस्यास्ति तस्यास्त्यागो विधीयते ॥
(४ । २०)
ब्रह्महत्याका जितना पाप लगता है, उससे
दुगुना पाप गर्भपातका लगता है । उसका कोई प्रायश्चित्त नहीं है । जिस स्त्रीने गर्भपात
किया हो, उसका त्याग कर देना चाहिये । परन्तु आज तो पुरुष भी गर्भपातमें सहमत हो जाते हैं;
घरवाले भी सहमत हो जाते हैं । सब-के-सब पापी हो गये,
क्या करें ? शास्त्रोंकी बात सुनते ही नहीं । न तो स्वयं पढ़ते हैं,
न पढ़े हुएकी बात सुनते हैं । ‘सर्वस्य
लोचनं शास्त्रं यस्य नास्त्यन्ध एव सः’
‘शास्त्र सभीके नेत्र हैं । जिसको शास्त्रकी जानकारी
नहीं है वह अन्धा ही है ।’
जो पुत्रको ही खा जाय,
वह सर्पिणी होती है । अण्डे फूटनेपर जो बच्चे सर्पिणीके घेरेसे
बाहर निकल जाते हैं, वे तो बच जाते हैं;
परन्तु जो भीतर रह जाते हैं,
उनको सर्पिणी खा जाती है । आज तो सन्तानको
जन्मने ही नहीं देते, पहले ही उसकी हत्या कर देते हैं । इतना बड़ा पाप आपलोग
मत करो । माँ बनो, सर्पिणी मत बनो ! गर्भ गिरानेवाली स्त्री माँ कहलानेके
लायक है ही नहीं ।
हम नारनौल
गये थे । वहाँ देखा कि गर्भ गिरानेके काममें कई मोटरें लगी हुई हैं, जिनसे जगह-जगह
जाकर ऑपरेशन करते हैं, गर्भ गिराते
हैं । गर्भका जो खून गिरता है, उसको पीपोंमें
भरकर ले जाते हैं । उसका वे क्या करते हैं, यह भगवान्
जानें ! मेरेको तो ऐसा वहम होता है कि गर्भको राक्षसी लोग खा जाते होंगे । गर्भपात, नसबन्दी, ऑपरेशन
करवानेवालोको सरकार रुपये देती है । अभी यहाँ एक सज्जन मेरे पास आये थे । उन्होंने
कहा कि मेरेको आज्ञा हुई है कि दो-तीन ऑपरेशनके केस तुम लाओ, तभी नौकरीमें
रखेंगे, नहीं तो नौकरीसे निकाल देंगे
! कितने अन्यायकी बात है ! ऑपरेशनसे नौकरीमें क्या फायदा होगा । केवल जनताका नाश करना
है ! राजस्थानमें फरमान निकला है कि जिसके दोसे अधिक बच्चे हैं, वह पंचके
चुनाव (इलेक्शन) में खड़ा नहीं हो सकता । अब बच्चोंसे और चुनावसे क्या मतलब है ? मतलब केवल
हिन्दुओंका नाश करनेसे है । मुसलमान लोग तीन-तीन, चार-चार
ब्याह करते हैं । एक मुसलमानके साठ बालक होनेकी बात मैंने सुनी है । उसकी तीन स्त्रियों
हैं और चौथा ब्याह करनेको तैयार है । यहाँसे भी लड़कियोंको ले जाकर पाकिस्तान, ईरान, इराक आदि
मुस्लिम देशोंमें उनकी बिक्री की जाती है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘किसान और गाय’ पुस्तकसे
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