(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒गृहस्थाश्रममें कैसे रहना
चाहिये ?
उत्तर‒यह मनुष्य-शरीर और इसमें भी
गृहस्थ-आश्रम उद्धार करनेकी पाठशाला है । भोग भोगने और आराम करनेके लिये यह
मनुष्य-शरीर नहीं है । ‘एहि तन कर फल बिषय न भाई’ (मानस,
उत्तर॰ ४४ । १) । शास्त्रविहित यज्ञ आदि कर्म करके
ब्रह्मलोक आदि लोकोंकी प्राप्ति करना भी खास बात नहीं है; क्योंकि वहाँ जाकर फिर
पीछे लौटकर आना ही पड़ता‒‘आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनः’
(गीता ८ । १६) । अतः प्राणीमात्रके हितकी भावना रखते हुए गृहस्थ-आश्रममें
रहना चाहिये और अपनी शक्तिके अनुसार तन, मन, बुद्धि, योग्यता, अधिकार आदिके द्वारा
दुसरोंको सुख पहुँचाना चाहिये । दूसरोंकी सुख-सुविधाके
लिये अपने सुख-आरामका त्याग करना ही मनुष्यकी
मनुष्यता है ।
प्रश्न‒गृहस्थमें काम-धंधा करते
हुए जो हिंसा होती है, उससे छुटकारा कैसे हो ?
उत्तर‒गृहस्थमें ये पाँच हिंसाएँ होती
हैं‒(१)जहाँ रसोई बनाती है, वहाँ आगमें चिंटी आदि छोटे-मोटे जीव मरते हैं, लकड़ियोंमें रहनेवाले जीव मरते हैं, आदि । (२)
जहाँ जल रखते हैं, वहाँ घड़ा इधर-उधर करने आदिसे भी जीव मरते हैं । (३) झाड़ू लगाते
समय बहुत-से जीव मरते हैं । (४) चक्कीमें अनाज पिसते समय भी बहुत-से जीव मरते हैं
। (५) उखलमें चावल आदि कूटते समय भी जीव मरते हैं । इन
हिंसाओंसे छूटनेके लिये गृहस्थको प्रतिदिन बलिवैश्वदेव, पंचमहायज्ञ करना चाहिये ।
जो सर्वथा भगवान्के ही शरण हो जाता है, उसको यह हिंसा नहीं लगती । वह सम्पूर्ण
पापोंसे मुक्त हो जाता है ।
प्रश्न‒हम चक्की नहीं चलाते, धान
नहीं कूटते तो हमें हिंसा नहीं लगेगी ?
उत्तर‒आप पिसा हुआ आटा, कूटा हुआ धान
अपने काममें लेतें हैं तो उस आटेको पीसनेमें, धानको कूटनेमें जो हिंसा हुई है, वह
आपको लगेगी ही ।
प्रश्न‒खेतीमें अनेक जीवोंकी
हिंसा होती है, तो क्या किसान खेती न करें ?
उत्तर‒खेती जरूर करे, खयाल रखे कि हिंसा
न हो । किसानके लिये खेती करनेका विधान होनेसे उसको पाप कम लगता है, अतः उसको पापसे
डरकर अपने कर्तव्यका त्याग नहीं करना चाहिये । हाँ, जहाँतक
बने, हिंसा न हो, ऐसी सावधानी अवश्य रखनी चाहिये ।
प्रश्न‒आजकल किसानलोग फसलकी
सुरक्षाके लिये जहरीली दवाएँ छिड़कते हैं तो क्या यह ठीक है ?
उत्तर‒किसानको यह काम कभी नहीं करना
चाहिये । पहले लोग ऐसी हिंसा नहीं करते थे तो अनाज सस्ता मिलता था । आजकल हिंसा
करते हैं तो अनाज महँगा मिलता है । दिखनेमें तो ऐसा
दिखता है कि जीवोंको मार देनेसे अनाज अधिक होता है, पर इसका परिणाम अच्छा नहीं
होगा ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
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