(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्र‒अवतारी
भगवान्का शरीर कैसा होता है ?
उत्तर‒हमलोगोंका जन्म कर्मजन्य
होता है, पर भगवान्का जन्म (अवतार) कर्मजन्य नहीं होता । अतः हमलोगोंके
शरीर जैसे माता-पिताके रज-वीर्यसे पैदा होते हैं,
वैसे भगवान्का शरीर पैदा नहीं होता । वे जन्मकी लीला तो हमारी
तरह ही करते है, पर वास्तवमें वे उत्पत्र नहीं होते,
प्रत्युत प्रकट होते हैं‒‘सम्भवाम्यात्ममायया’
(४ । ६) । हमारी आयु तो कर्मोंके अनुसार सीमित होती है,
पर भगवान्की आयु सीमित नहीं होती । वे अपने इच्छानुसार जितने
दिन प्रकट रहना चाहें, उतने दिन रह सकते हैं । हम लोगोंको तो अज्ञताके कारण कर्मफलके
रूपमें आयी अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियोंका भोग करना पड़ता है,
पर भगवान्को अनुकूल-प्रतिकूल परिस्थितियोंका भोग नहीं करना
पड़ता, वे सुखी-दुःखी नहीं होते ।
हमलोगोंका शरीर पाञ्चभौतिक होता है,
पर भगवान्का अवतारी शरीर पाञ्चभौतिक नहीं होता,
प्रत्युत सच्चिदानन्दमय होता है‒‘सच्चित्सुखैकवपुषः
पुरुषोत्तमस्य’; ‘चिदानंदमय देह तुम्हारी’ (मानस २
। १२७।३) । ‘सत्’ से भगवान्का अवतारी शरीर बनता है,
‘चित्’ से उनके शरीरमें प्रकाश होता है और ‘आनन्द’
से उनके शरीरमें आकर्षण होता है । वह
शरीर भगवान्को माननेवाले, न माननेवाले आदि सभीको स्वतः प्रिय लगता है । अतः भगवान्का शरीर हमलोगोंके शरीरकी
तरह हड्डी, मांस,
रुधिर आदिका नहीं होता । परन्तु अवतारकी लीलाके समय
वे अपने चिन्मय शरीरको पाञ्चभौतिक शरीरकी तरह दिखा देते हैं । भक्तोंके भावोंके अनुसार भगवान्को
भूख भी लगती है, प्यास भी लगती है, नींद
भी आती है, सरदी-गरमी भी लगती है और भय भी लगता है !
यद्यपि देवताओंके शरीर भी दिव्य कहे जाते हैं,
तथापि वे भी पाञ्चभौतिक हैं । स्वर्गके देवताओंका शरीर तेजस्तत्त्वप्रधान,
वायुदेवताका शरीर वायुतत्त्वप्रधान,
वरुणदेवताका शरीर जलतत्त्वप्रधान और मनुष्योंका शरीर पृथ्वीतत्त्वप्रधान
होता है; परन्तु भगवान्का शरीर इन तत्त्वोंसे रहित,
चिन्मय होता है । देवताओंके शरीर दिव्य होते हुए भी नित्य नहीं
हैं, मरनेवाले हैं । जो आजान देवता हैं, वे महाप्रलयके समय भगवान्में लीन हो जाते हैं;
और जो पुण्यकर्मोंके फलस्वरूप स्वर्गादि लोकोंमें जाकर देवता
बनते हैं, वे पुण्यकर्म क्षीण होनेपर पुनः मृत्युलोकमें आकर जन्म लेते
हैं और मरते हैं । [ भगवान्को पाप-पुण्य नहीं लगते । उनको
किसीका शाप भी नहीं लगता, पर शापकी मर्यादा रखनेके लिये वे शापको स्वीकार कर
लेते हैं । ]
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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