(गत ब्लॉगसे आगेका)
मूल प्रकृतिसे प्रकट होनेके कारण लक्ष्मी और सरस्वतीकी भी कोई
सन्तान नहीं हुई[1]
। इसके बाद भगवान् श्रीकृष्णके रोमकूपोंसे असंख्य गोप प्रकट
हुए और श्रीराधाके रोमकूपोंसे असंख्य गोप-कन्याएँ प्रकट हुई । भगवान्के शापके कारण
इन गोप-कन्याओंकी भी कोई सन्तान नहीं हुई[2]
। इस कथासे यह सिद्ध होता है कि जो
स्त्री गर्भ गिराती है वह अगले जन्मोंमें सन्तानका सुख नहीं देख सकेगी !
प्रश्न‒ऐसा
देखनेमें आता है कि जिन्होंने गर्भपात किया है, वे
स्त्रियाँ भी पुन: गर्भवती होती हैं और उनकी सन्तान भी होती है । अतः यह कैसे मानें
कि गर्भपात करनेवालेकी फिर सन्तान नहीं होगी ?
उत्तर‒इस जन्मका तो पहले
ही प्रारब्ध बन चुका है; अतः उस प्रारब्धके अनुसार उनकी सन्तान हो सकती है । परंतु अगले
जन्ममें (नया प्रारब्ध बननेपर) उनकी सन्तान नहीं होगी । इस जन्ममें किये गये गर्भपातरूप
महापापका फल उनको अगले जन्मोंमें भोगना ही पड़ेगा ।
प्रश्न‒गर्भस्राव, गर्भपात
और भ्रूणहत्या‒इन तीनोंमें क्या अन्तर है ?
उत्तर‒गर्भमें जीवका
शरीर बनना शुरू होनेसे पहले ही रज-वीर्य गिर जाय तो उसको ‘गर्भस्राव’
कहते हैं । जब गर्भमें शरीर बनना शुरू हो जाय,
तब उसको गिरा देना,
‘गर्भपात’ कहलाता है । जब गर्भमें स्थित जीवके हाथ,
पाँव, मस्तक आदि अंग निकल आते हैं और यह बच्चा है या बच्ची‒इसका भेद
स्पष्ट होने लगता है तब उसको गिरा देना ‘भ्रूण-हत्या’
कहलाती है । गर्भस्राव,
गर्भपात और भ्रूण-हत्या‒इन तीनोंको किसी भी तरहसे करनेपर महापाप
लगता है । हाँ, अपने-आप गर्भ गिर जाय तो उसका पाप नहीं लगता । जैसे,
संसारमें बहुत-से जीव अपने-आप मर जाते हैं,
पर उसका पाप हमें नहीं लगता;
क्योंकि हमने उनको मारा भी नहीं और मारनेकी इच्छा भी नहीं की
।
प्रश्न‒गर्भमें
जीव (प्राण) तो रहता नहीं, बादमें
आता है फिर गर्भपात पाप कैसे ?
उत्तर‒पुरुषके वीर्यकी
एक बूँदमें हजारों जीव होते हैं । उनमेंसे जो जीव रजके साथ चिपक जाता है, गर्भाशयमें
रह जाता है, वही बढ़कर गर्भ बनता है । जीवके बिना न तो वीर्य रजके साथ चिपक
सकता है और न गर्भ बढ़ ही सकता है । प्राणशक्तिके बिना गर्भ बढ़ ही नहीं सकता । जीवमें
प्राणशक्ति पहले सूक्ष्म होती है, पर गर्भमें आते ही प्राणशक्ति स्थूल हो जाती है और गर्भ बढ़ने
लगता है । गर्भ बढ़नेपर जब प्राण-शक्ति विशेषतासे प्रतीत होती है और गर्भमें हलचल होने
लगती है तब लोग कह देते हैं कि अब गर्भमें जीव आ गया ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे
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