(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रश्न‒जिसके
भाग्यमें नाम लेना लिखा है, वह
तो नाम ले सकता है, उसके
मुखसे नाम निकल सकता है; परंतु
जिसके भाग्यमें नाम लेना लिखा ही नहीं, वह
कैसे नाम ले सकता है ?
उत्तर‒एक ‘होना’ होता है और एक ‘करना’ होता है । भाग्य अर्थात् पुराने कर्मोंका फल होता है और
नये कर्म किये जाते हैं, होते नहीं । जैसे व्यापार करते हैं और नफा-नुकसान होता है;
खेती करते हैं और लाभ-हानि होती है;
मन्त्रका सकामभावसे जप (अनुष्ठान) करते हैं और उसका नीरोगता
आदि फल होता है । बद्रीनारायण जाते हैं‒यह ‘करना’ हुआ और चलते-चलते बद्रीनारायण पहुँच जाते हैं‒यह ‘होना’
हुआ । दवा लेते है‒यह ‘करना’ हुआ और शरीर स्वस्थ या अस्वस्थ होता है‒यह ‘होना’ हुआ । हानि-लाभ, जीना-मरना, यश-अपयश‒ये सब होनेवाले हैं;
क्योंकि ये पूर्वजन्ममें किये हुए कर्मोंके फल है[*] । परन्तु नामजप करना नया काम है । यह करनेका है,
होनेका नहीं । इसको करनेमें सब स्वतन्त्र हैं । हाँ,
इसमें इतनी बात होती है कि अगर किसीने पहले नामजप किया हुआ है
तो नामजपकी महिमा सुनते ही उसकी नामजपमें रुचि हो जायगी और वह सुगमतासे होने लग जायगा
। परन्तु पहले जिसका नामजप किया हुआ नहीं है,
वह अगर नामकी महिमा सुने तो उसकी नामजपमें जल्दी रुचि नहीं होगी
। अगर नामजपकी महिमा कहनेवाला अनुभवी हो तो सुननेवालेकी भी नाममें रुचि हो जायगी और
उस अनुभवीके संगमें रहनेसे उसके लिये नामजप करना भी सुगम हो जायगा ।
जो भाग्यमें लिखा है,
वह फल होता है, नया कर्म नहीं । नामजप करना शुरू कर दें तो वह होने लग जायगा;
क्योंकि नामजप करना नया कर्म,
नयी उपासना है । अतः ‘हमारे
भाग्यमें नामजप करना, सत्संग करना, शुभ-कर्म
करना लिखा हुआ नहीं है’‒ऐसा कहना बिलकुल बहानेबाजी है । ‘नामजप, सत्संग
आदि हमारे भाग्यमें नहीं हैं’‒ऐसा भाव रखना कुसंग है, जो
नामजप आदि करनेके भावका नाश करनेवाला है ।
प्रश्न‒नामजपसे
भाग्य (प्रारब्ध) पलट सकता है ?
उत्तर‒हाँ, भगवन्नामके जपसे, कीर्तनसे
प्रारब्ध बदल जाता है, नया प्रारब्ध बन जाता है; जो
वस्तु न मिलनेवाली हो वह मिल जाती है;
जो असम्भव है, वह
सम्भव हो जाता है‒ऐसा सन्तोंका, महापुरुषोंका अनुभव है । जिसने कर्मोंके फलका विधान किया है,
उसको कोई पुकारे, उसका नाम ले तो नाम लेनेवालेका प्रारब्ध बदलनेमें आश्चर्य ही
क्या है ? ये जो लोग भीख माँगते फिरते है,
जिनको पेटभर खानेको भी नहीं मिलता,
वे अगर सच्चे हृदयमें नामजपमें लग जायँ तो उनके पास रोटियोंका,
कपड़ोंका ढेर लग जायगा;
उनको किसी चीजकी कमी नहीं रहेगी । परन्तु नामजपको प्रारब्ध बदलनेमें, पापोंको
काटनेमें नहीं लगाना चाहिये । जैसे अमूल्य रत्नके बदलेमें कोयला खरीदना बुद्धिमानी नहीं है,
ऐसे ही अमूल्य भगवन्नामको तुच्छ कामनापूर्तिमें
लगाना बुद्धिमानी नहीं है ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
हानि लाभु जीवनु मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ ॥
(मानस २ । १७१)
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