प्रश्न‒क्या कन्या स्वयंवर कर सकती है ?
उत्तर‒शास्त्रोंमें
स्वयंवरकी बात आती है, परन्तु जिन्होंने
स्वयंवर किया है, उन्होंने कष्ट
ही उठाया है । सीता, द्रौपदी, दमयन्ती
आदिने स्वयंवर किया तो उन्होंने प्रायः दुःख ही पाया । आजकल जो कन्याएँ
स्वयंवर करती हैं, खुद ही पतिको चुनती हैं, अपने मनसे विवाह
करती हैं, वे कौन-सा सुख
पाती हैं ?
वे दुःख-ही-दुःख
पाती हैं, भटकती ही रहती
हैं ।
जो कन्या स्वयंवर
करती है, उसकी जिम्मेवारी
खुद उसीपर रहती है । पिता कन्याका हितैषी होता है और हितैषी होकर ही वह कन्याके लिये
वर ढूँढता है,
उसका सम्बन्ध
करता है; अतः उस सम्बन्धकी
जिम्मेवारी पितापर ही रहती है, कन्यापर नहीं । पिताके द्वारा सम्बन्ध करानेपर कन्यासे कहीं थोड़ी गलती भी हो जाय
तो वह माफ हो जायगी; परन्तु स्वयंवर
करनेवाली कन्याकी गलती माफ नहीं होगी । जैसे, पुत्र माता-पिताकी
सेवा कम भी करे तो उतना दोष नहीं है; क्योंकि वह माता-पितासे उत्पन्न
हुआ है, उसने जानकर सम्बन्ध नहीं जोड़ा है । परन्तु गोद जानेवाला पुत्र माता-पिताकी
सेवा नहीं करता तो उसको विशेष दण्ड भोगना पड़ता है; क्योंकि उसने जानकर सम्बन्ध जोड़ा
है । कोई किसीके यहाँ नौकरी करता है और नौकरीमें गलती करता है तो उसको माफी नहीं होती; क्योंकि उसने
नौकरी स्वयं स्वीकार की है । हाँ, दयालु मालिक उसको माफ कर सकता है, पर वह माफीका अधिकारी
नहीं होता । कोई किसीको अपना गुरु बनाता है तो गुरुकी आज्ञाका पालन करना उसकी विशेष
जिम्मेवारी होती है । यदि वह गुरु-आज्ञाका पालन नहीं करता, गुरुका तिरस्कार
करता है, निन्दा करता है
तो उसको भयंकर दण्ड भोगना पडता है । उसको भगवान् भी माफ नहीं कर सकते । भगवान् कुपित
हो जायँ तो गुरु माफ करा सकता है, पर गुरु कुपित हो जायँ तो भगवान्
भी माफ नहीं करा सकते । अतः स्वयंवर करनेवाली कन्यापर विशेष जिम्मेवारी रहती है ।
प्रश्न‒कन्या विवाह न करके साधन-भजनमें ही जीवन बिताना चाहे तो क्या यह ठीक है ?
उत्तर‒कन्याके
लिये विवाह न करना उचित नहीं है; क्योंकि वह स्वतन्त्र
रहकर अपना जीवन-निर्वाह कर ले‒ऐसा बहुत कठिन है अर्थात् विवाह न करनेसे उसके जीवन-निर्वाहमें
बहुत कठिनता आयेगी । जबतक माँ-बाप हैं, तबतक तो ठीक है, पर जब माँ-बाप
नहीं रहते,
तो फिर प्रायः
भाईलोग (अपनी स्त्रियोंके वशीभूत होनेसे) बहनका आदर नहीं करते, प्रत्युत बहनका
तिरस्कार करते हैं, उसको हीन दृष्टिसे देखते हैं । भौजाइयाँ भी उसको तिरस्कारकी
दृष्टिसे देखती हैं । इससे कन्याके मनमें पराधीनताका अनुभव होता है । अतः विवाह कर
लेना अच्छा है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’
पुस्तकसे
|