(गत ब्लॉगसे
आगेका)
हमने ऐसे स्त्री-पुरुषोंको
भी देखा है,
जिन्होंने विवाहसे
पहले ही यह प्रतिज्ञा कर ली कि हम स्त्री-पुरुषका सम्बन्ध न रखकर केवल साधन-भजन ही
करेंगे; और वे अपनी प्रतिज्ञा
निभाते आये हैं । यद्यपि आजके जमानेमें ऐसे लड़के मिलने कठिन हैं, जो केवल साधन-भजनके
लिये ही विवाह करें, तथापि उनका मिलना असम्भव नहीं है ।
मीराबाईकी तरह
जो बचपनसे ही भजन-स्मरणमें लग जाय, उसकी तो बात ही अलग है; परन्तु यह विधान
नहीं है, भाव है । इस भावमें
भी कठिनता आती है । मीराबाईके जीवनमें बहुत कठिनता आयी थी, पर भगवान्के
दृढ़ विश्वासके बलपर वह सब कठिनताओंको पार कर गयी । ऐसा दृढ़ विश्वास बहुत कम होता है
।
जिसमें ऐसा दृढ़
विश्वास हो,
उसके लिये यह
विधान नहीं है कि वह विवाह न करे अथवा वह विवाह करे । तात्पर्य है कि भगवान्पर दृढ़ श्रद्धा-विश्वास हो तो मनुष्य कहीं भी रहे, वह
श्रेष्ठ हो ही जायगा ।
प्रश्न‒क्या स्त्रीको साधु-संन्यासी बनना उचित है ?
उत्तर‒पुरुषको तो यह
अधिकार है कि उसको संसारसे वैराग्य हो जाय तो वह घर आदिका त्याग करके, विरक्त होकर भजन-स्मरण
करे, पर स्त्रियोंके
लिये ऐसी आज्ञा हमने कहीं देखी नहीं है । अतः स्त्रीको साधु-संन्यासी
बनना उचित नहीं है । उसको तो घरमें ही रहकर अपने कर्तव्यका पालन करना चाहिये । वह घरमें
ही त्यागपूर्वक, संयमपूर्वक रहे‒इसीमें
उसकी महिमा है ।
वास्तवमें
त्याग-वैराग्यमें जो तत्त्व है वह साधु-संन्यासी बननेमें नहीं है । जिसके भीतर पदार्थोंकी
गुलामी नहीं है, वह घरमें रहते हुए ही साध्वी है, संन्यासिनी
है ।
प्रश्न‒पतिव्रता, साध्वी और सती किसे कहते हैं ?
उत्तर‒यद्यपि शब्दकोशके
अनुसार पतिव्रता, साध्वी और सती‒तीनों नाम एक ही अर्थमें हैं, तथापि तीनोंमें
भेद किया जाय तो पतिके रहते हुए जो अपने नियममें दृढ रहती है, वह ‘पतिव्रता’ है; पतिके न रहनेपर
जो अपने नियममें, त्यागमें दृढ़ रहती है, वह ‘साध्वी’ है; और जो सत्यका
पालन करती है,
जिसका पतिके साथ
दृढ़ सम्बन्ध रहता है जो पतिके मरनेपर उसके साथ सती हो जाती है, वह ‘सती’ है ।
प्रश्न‒सतीप्रथा उचित है या अनुचित ?
उत्तर‒सती
होना ‘प्रथा’ है
ही नहीं । पतिके साथ जल जाना सती होना नहीं है । जिसके मनमें सत् आ जाता है, उत्साह
आ जाता है, वह आगके बिना भी जल जाती है और उसको
जलनेका कोई कष्ट भी नहीं होता । यह कोई प्रथा नहीं है कि वह ऐसा ही करे, प्रत्युत
यह तो उसका सत्य है, धर्म है, शास्त्र-मर्यादापर
विश्वास है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘गृहस्थमें कैसे रहें ?’ पुस्तकसे |