(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रीणाति मातरं येन पृथिवी तेन पूजिता ॥
(महा, शान्ति॰ १०८ । २५)
‘मनुष्य जिस क्रियासे माताको प्रसन्न कर लेता
है, उस क्रियासे सम्पूर्ण पृथ्वीका पूजन हो जाता है
।’
हिन्दू-संस्कृतिमें परमात्माको पुरुष (भगवान्) और स्त्री (भगवती)‒दोनों
रूपोंमें स्वीकार करके उनकी उपासनाका विधान किया गया है । इसलिये ईश्वरकोटिके
पंचदेवोंमें विष्णु, शंकर,गणेश और सूर्यके साथ भगवतीको भी समान स्थान दिया गया है ।
ईसाईयोंकी पवित्र ‘बाइबिल’ और मुसलमानोंकी ‘कुरान शरीफ’ को
देखें तो उनमें भी मातृरूपसे ही स्त्रियोंको महत्त्व दिया गया है, भोग्यारूपसे नहीं
। पवित्र 'बाइबिल' के कुछ उदाहरण इस प्रकार
हैं[*]‒
(१) तू अपने
पिता और अपनी माताका आदर करना (पुराना नियम, निर्गमन २० । १२, व्यवस्था॰ ५ । १६)
।
(२) तुम अपनी-अपनी
माता और अपने-अपने पिताका भय मानना (पुराना नियम, लैव्य॰ १९ । ३)
।
(३) शापित
हो वह जो अपने पिता वा माताको तुच्छ जाने (पुराना नियम, व्यवस्था॰ २७ । १६)
।
(४) मूढ़ अपने
पिताकी शिक्षाका तिरस्कार करता है; परन्तु जो डाँटको मानता है, वह चतुर हो जाता है (पुराना नियम, नीति॰ १५ । ५) ।
(५) अपने जन्मानेवालेकी
सुनना, और जब तेरी माता बुढ़िया हो जाय, तब भी उसे तुच्छ न जानना (पुराना नियम, नीति॰ २३ । २२) ।
(६) जिस आँखसे
कोई अपने पितापर अनादरकी दृष्टि करे और अपमानके साथ अपनी माताकी आज्ञा न माने, उस आँखको तराईके कौवे खोद-खोदकर निकालेंगे और उकाबके बच्चे खा डालेंगे (पुराना
नियम, नीति॰ ३० । १७)
।
(७) अपने पिता
और अपनी माताका आदर करना, जो कोई पिता या माताको बुरा
कहे, वह मार डाला जाय (नया नियम, मत्ती १५ । ४) ।
(८) हे बालको, प्रभुमें अपने माता-पिताके आज्ञाकारी बनो (नया नियम, इफिसियो ६ । १) ।
(९) हे बालको, सब बातोंमें अपने-अपने माता-पिताकी आज्ञाका पालन करो; क्योंकि प्रभु इससे प्रसन्न होता है (नया नियम, कुलुस्सियो ३ । १८) ।
(१०) मैं कहता
हूँ कि स्त्री न उपदेश करे और न पुरुषपर आज्ञा चलाये; परन्तु चुपचाप रहे; क्योंकि आदम पहले, उसके बाद हव्वा बनायी गयी । आदम बहकाया न गया, पर स्त्री बहकावेमें आकर अपराधिनी हुई । तो भी बच्चे जननेके द्वारा उद्धार पायेगी, यदि वे संयमसहित विश्वास, प्रेम और पवित्रतामें स्थिर
रहें (नया नियम, १‒तीमुथियुस २ । १२‒१५) ।
(शेष आगेके
ब्लॉगमें)
‒‘सन्त-समागम’ पुस्तकसे
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