(गत ब्लॉगसे आगेका)
पारमार्थिक उन्नति करनेवालेकी लौकिक उन्नति स्वतः होती है ।
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विचार करो‒हम अपनी जानकारीका खुद ही निरादर करेंगे तो फिर हमारी
उन्नति कैसे होगी ?
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वास्तविक उन्नति है‒स्वभाव शुद्ध होना ।
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सांसारिक उन्नति वर्तमानकी वस्तु नहीं है और पारमार्थिक उन्नति
भविष्यकी वस्तु नहीं है ।
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जो आराम चाहता है, वह अपनी वास्तविक उन्नति नहीं कर सकता ।
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जिस प्रकार आकाशमें वृक्ष कितना ही ऊँचा उठे,
उसकी कोई सीमा नहीं है,
इसी प्रकार मनुष्यकी उन्नतिकी भी कोई सीमा नहीं है ।
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पारमार्थिक उन्नतिमें संयोगजन्य सुखकी लोलुपता ही खास बाधक है
।
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मनुष्यका उत्थान और पतन भावसे होता है,
वस्तु परिस्थिति आदिसे नहीं ।
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बुद्धिके अनुसार मन और मनके अनुसार इन्द्रियाँ होनेसे उत्थान
होता है । परन्तु इन्द्रियोंके अनुसार मन और मनके अनुसार बुद्धि बनानेसे पतन होता है
।
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एकान्त
शरीर-इन्द्रियाँ-मन-बुद्धिसे अपना सम्बन्ध न रखना ही सच्चा
एकान्त है ।
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एकान्त मिले या समुदाय मिले,
साधकको अपना साधन किसी परिस्थितिके अधीन नहीं मानना चाहिये,
प्रत्युत प्राप्त परिस्थितिके अनुसार अपना साधन बनाना चाहिये
।
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एकान्तकी इच्छा करनेवाला परिस्थितिके अधीन होता है । जो परिस्थितिके
अधीन होता है, वह भोगी होता है, योगी नहीं ।
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(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे
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