(गत ब्लॉगसे आगेका)
घरमें रहनेवाले सभी लोग अपनेको सेवक और दूसरोंको सेव्य समझें
तो सबकी सेवा हो जायगी और सबका कल्याण हो जायगा ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
भोगोंकी प्रियता जन्म-मरण देनेवाली और भगवान्की प्रियता
कल्याण करनेवाली है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
अपना कल्याण चाहनेवाला सच्चे हृदयसे प्रार्थना करे तो भगवान्के
दरबारमें उसकी सुनवायी जल्दी होती है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
किसीका भी कल्याण होता है तो उसके मूलमें किसी सन्तकी अथवा भगवान्की
कृपा होती है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
संसारमें सन्त-महात्माओंकी,
उपदेश देनेवालोंकी कमी नहीं है । परन्तु अपना कल्याण करनेमें
खुदकी लगन, लालसा, मान्यता, श्रद्धा ही काम आती है ।
☼ ☼ ☼ ☼
कामना
जबतक साधकमें अपने सुख,
आराम, मान, बड़ाई आदिकी कामना है,
तबतक उसका व्यक्तित्व नहीं मिटता और व्यक्तित्व मिटे बिना तत्त्वसे
अभिन्नता नहीं होती ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
जब हमारे अन्तःकरणमें किसी प्रकारकी कामना नहीं रहेगी, तब हमें
भगवत्प्राप्तिकी भी इच्छा नहीं करनी पड़ेगी,
प्रत्युत भगवान् स्वतः प्राप्त हो जायँगे ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
संसारकी कामनासे पशुताका और भगवान्की कामनासे मनुष्यताका आरम्भ
होता है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
‘मेरे मनकी हो जाय’‒इसीको कामना कहते हैं । यह कामना ही दुःखका कारण है । इसका त्याग
किये बिना कोई सुखी नहीं हो सकता ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
मुझे सुख कैसे मिले‒केवल इसी चाहनाके कारण मनुष्य कर्तव्यच्युत
और पतित हो जाता है ।
ᇮ
ᇮ ᇮ
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘अमृतबिन्दु’ पुस्तकसे
|