(गत ब्लॉगसे आगेका)
प्रेतने कहा‒दर्शन तो मैं नहीं करा सकता,
पर दर्शनका उपाय बता सकता हूँ । तुलसीदासजीने कहा‒उपाय ही सही,
बता दो । उसने कहा‒अमुक स्थानपर रातमें रामायणकी कथा होती है
। वहाँपर कथाको सुननेके लिये हनुमान्जी आया करते हैं । तुम उनके पैर पकड़ लेना,
वे तुमको भगवान्के दर्शन करा देंगे । तुलसीदासजीने कहा‒वहाँ
तो बहुत-से लोग आते होंगे, उनमेंसे मैं हनुमान्जी कैसे पहचानूँ ? प्रेतने कहा‒हनुमान्जी
कोढ़ीका रूप धारण करके और मैले-कुचैले कपड़े पहनकर आते हैं तथा कथा समाप्त होनेपर सबके
चले जानेके बाद जाते हैं । तुलसीदासजी महाराजने वैसा ही किया तो उनको हनुमान्जीके
दर्शन हुए और हनुमान्जीने उनको भगवान् रामके दर्शन करा दिये‒
तुलसी नफा पिछानिये, भला
बुरा क्या काम ।
प्रेतसे हनुमत
मिले, हनुमत से
श्री राम ॥
प्रेतोंके नामसे पिण्ड-पानी दिया जाय, ब्राह्मणोंको छाता आदि
दिया जाय तो वे वस्तुएँ प्रेतोंको मिल जाती हैं । परन्तु जिसके नामसे छाता आदि दिया
जाय, उसके साथी प्रेत अगर प्रबल होते है तो वे बीचमें ही छाता आदि छीन लेते हैं,
उसको मिलने ही नहीं देते । अतः बड़ी सावधानीसे,
उसके नामसे ही उसके निमित्त ही पिण्ड-पानी आदि दे तो वह सामग्री
उसको मिल जाती है ।
प्रश्र‒भूत-प्रेतकी
बाधाको दूर करनेके क्या उपाय है ?
उत्तर‒प्रेतबाधाको दूर
करनेके अनेक उपाय हैं; जैसे‒
(१) शुद्ध पवित्र होकर,
सामने धूप जलाकर पवित्र आसनपर बैठ जाय और हाथमें जलका लोटा लेकर
‘नारायणकवच’ (श्रीमद्भागवत, स्कन्ध ६, अध्याय ८ में आये) का पूरा पाठ करके लोटेपर फूँक मारे
। इस तरह कम-से-कम इक्कीस पाठ करे और प्रत्येक पाठके अन्तमें लोटेपर फूँक मारता रहे
। फिर उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे और कुछ जल उसके शरीरपर छिड़क दे ।
(२) गीताप्रेससे प्रकाशित ‘रामरक्षास्तोत्र’
को उसमें दी हुई विधिसे सिद्ध कर ले । फिर रामरक्षास्तोत्रका
पाठ करते हुए प्रेतबाधावाले व्यक्तिको मोरपंखोंसे झाड़ा दे ।
(३) शुद्ध-पवित्र होकर ‘हनुमानचालीसा’
के सात, इक्कीस या एक सौ आठ बार पाठ करके जलको अभिमन्त्रित करे । फिर
उस जलको प्रेतबाधावाले व्यक्तिको पिला दे ।
(४) गीताके ‘स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या......’
(११ । ३६)‒इस श्लोकके एक सौ आठ पाठोंसे अभिमन्त्रित जलको भूतबाधावाले व्यक्तिको
पिला दे ।
(५) प्रेतबाधावाले व्यक्तिको भागवतका सप्ताह-परायण सुनाना चाहिये
।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒ ‘गीता-दर्पण’ पुस्तकसे
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