।। श्रीहरिः ।।




आजकी शुभ तिथि–
   आश्विन शुक्ल षष्ठी, वि.सं.-२०७४,मंगलवार
गुरु-विषयक प्रश्नोत्तर



      (गत ब्लॉगसे आगेका)

प्रश्न–कई लोगोंको गुरुके  द्वारा कुण्डलिनी-जागरण आदिकी अलौकिक अनुभूतियाँ होती है, वह क्या है ?

उत्तर-वह चमत्कार तो होता है, पर उससे कल्याण नहीं होता । कल्याण तो जड़ता (शरीर- संसार) से ऊँचा उठने पर ही होता है ।

प्रश्न–हमने गुरुसे कंठी तो ले ली, पर  अब उनमें श्रद्धा नहीं रही तो क्या कंठी उनको वापस कर दें ?

उत्तरकंठी वापस करनेके लिये मैं कभी नहीं कहता । मैं यही सम्मति देता हूँ कि रोजाना एक माला गुरु-मन्त्रकी फेर लो  और बाकी समय जिसमें श्रद्धा हो, उस मन्त्रका जप करो और सत्संग-स्वाध्याय करो ।

प्रश्नपहले गुरु बना लिया, अब उनमें श्रद्धा नहीं रही तो उनका त्याग करनेसे पाप तो नहीं लगेगा ?

उत्तरअब आपके मनमें गुरुको छोड़नेकी इच्छा हो गयी है, उनसे श्रद्धा हट गयी तो गुरुका त्याग हो ही गया । इसलिये उस गुरुकी निन्दा भी मत करो और उसके साथ  सम्बन्ध भी मत रखो ।

जिसमें रुपयोंका लोभ हो, स्त्रियोंमें मोह हो, कर्त्तव्य-अकर्तव्यका ज्ञान न हो, खराब रास्तेपर चलता हो, ऐसे गुरुका त्याग करनेमें कोई पाप, दोष नहीं लगता । शास्त्रोंमें ऐसे गुरुका त्याग करनेकी बात आती है

गुरोरप्यवलिप्तस्य   कार्याकार्यमजानतः  ।
उत्पथप्रतिपन्नस्य  परित्यागो  विधीयते ॥
                                           (महाभारत, उद्योग॰ १७८/४८)

यदि गुरु भी घमण्डमें आकर कर्त्तव्य और अकर्तव्यका ज्ञान खो बैठे और कुमार्ग पर चलने लगे तो उसका भी त्याग कर देनेका विधान है ।

ज्ञानहीनो गुरुस्त्याज्यो    मिथ्यावादी विकल्पकः ।
स्वविश्रान्तिं न जानाति परशान्तिं करोति किम् ॥
                         (सिद्धसिद्धान्तसंग्रह, गुरुगीता)

ज्ञानरहित, मिथ्यावादी और भ्रम पैदा करनेवाले गुरुका त्याग कर देना चहिये; क्योंकि जो खुद शान्ति नहीं प्राप्त कर सका, वह दूसरोंको शान्ति कैसे देगा ?’

पतिता गुरवस्त्याज्या माता च न कथञ्चन ।
गर्भधारणपोषाभ्यां  तेन  माता  गरीयसी ॥
                                         (स्कन्दपुराण, मा॰ कौ॰ ६/७; मत्स्यपुराण २२७/१५०)

पतित  गुरु भी त्याज्य है, पर माता किसी प्रकार ही त्याज्य नहीं है । गर्भकालमें धारण-पोषण करनेके कारण माताका गौरव गुरुजनोंसे भी अधिक है ।

    (शेष आगेके ब्लॉगमें)
 ‒‘क्या गुरु बिना मुक्ति नहीं?’ पुस्तकसे