।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
 फाल्गुन शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७४, गुरुवार
         अनुदया पूर्णिमा, श्रीचैतन्य महाप्रभु-जयन्ती
        होलिकादाह रात्रिमें ६.५८ बजे भद्राके बाद 
मैं नहीं, मेरा नहीं 


(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताकई महिलाएँ भूलसे गर्भपात करवा चुकी हैं उनके लिये क्या प्रायश्चित्त है, जिससे उनके कल्याणमें कोई बाधा नहीं रहे ?

स्वामीजीनामजप करें । सवा लाखसे कम नहीं और तीन लाखसे ज्यादा नहींइतना नामजप रोजाना (एक वर्षतक) करें । भगवान्से प्रार्थना करें कि फिर कभी ऐसा काम नहीं करूँगी । सब माफ हो जायगा ।

श्रोताशरीरके रहते हुए भगवत्प्राप्ति होनेकी क्या कसौटी है ? कैसे पता चले कि भगवत्प्राप्ति हो गयी ?

स्वामीजीभोजन करनेकी क्या कसौटी है ? जल पीनेकी क्या कसौटी है ? बताओ । मानो तृप्त हो गये, अब कुछ भी नहीं चाहिये । इस तरह कुछ भी नहीं चाहिये, कभी भी नहीं चाहिये, किंचिन्मात्र भी नहीं चाहिये-यह कसौटी है । भगवत्प्राप्ति होनेपर स्वप्नमें भी कोई चाहना नहीं रहती । सदाके लिये तृप्ति हो जाती है ।

श्रोतासन्तकी लिखी हुई पुस्तक पढ़ना, सन्तके मुखसे प्रवचन सुनना और सन्तके पास जाकर बैठनाइन तीनोंमें कौन-सी बात श्रेष्ठ है ?

स्वामीजीसन्तके वचन पढ़ना-सुनना और वचनोंमें जो अच्छा लगे, उनका पालन करना ।

श्रोतामेरी सन्तोंके दर्शनकी इच्छा होती है, पर पतिदेव मना करते हैं ! वे कहते हैं कि सन्तोंके दर्शनसे क्या मिलता है ? उनको क्या समझाऊँ ?

स्वामीजीसन्तोंके दर्शनसे पाप दूर हो जाते हैं‘संत दरस जिमि पातक टरई’ (मानस, किष्णिन्धा १७ । ३)

गंगा पापं शशी तापं   दैन्यं कल्पतरुर्हरेत् ।
पापं ताप तथा दैन्यं सद्य: साधुसमागमः ॥
                             (र्गासहिता, अश्वमेध ६२ । ९)

‘गंगा पापका, चन्द्रमा तापका और कल्पवृक्ष दीनताका नाश करता है । परन्तु सन्तोंका संग पाप, ताप और दीनतातीनोंका तत्काल नाश कर देता है ।’

श्रोतामैंने बहुत मन्दिरोंके, तीर्थोंके दर्शन किये, पर मेरी श्रद्धा नहीं हो रही है, क्या करूँ ?

स्वामीजीकोई हर्ज नहीं । भगवान्पर श्रद्धा होती है कि नहीं ?

श्रोताभगवान्पर श्रद्धा होती है

स्वामीजीबस, एक भगवान्पर श्रद्धा करो । अन्य किसीपर श्रद्धा करनेकी जरूरत नहीं । न साधुओंपर श्रद्धा करनेकी जरूरत है, न तीर्थोंपर । एक कहावत है कि हाथीके पैरमें सब पैर समा जाते हैं‘सर्वे पदा हस्तिपदे निमग्नाः’ ।

श्रोताभगवान्के स्मरण और ध्यानमें क्या अन्तर है ?

स्वामीजीस्मरण पहले होता है, ध्यान पीछे होता है । स्मरणमें बार-बार भगवान्की याद आती है । ध्यानमें वृत्ति भगवान्में लग जाती है । वृत्ति तल्लीन होनेपर समाधि होती है ।


   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे