(गत ब्लॉगसे आगेका)
‘अपने लिये कुछ नहीं करना है’‒यह ज्ञानयोगकी बात है
। ज्ञानयोगमें तीन बातें हैं‒मेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये और मेरेको अपने लिये कुछ नहीं करना है । जब अनन्त ब्रह्माण्डोमें
कुछ भी अपना नहीं है तो फिर शरीरमें अपनी चीज क्या हुई ? जब अपना
कुछ नहीं है तो फिर अपनेको क्या चाहिये ? कुछ नहीं चाहिये । इस
प्रकार प्राप्तमें ममता न हो और अप्राप्तकी कामना न हो तो
फिर अपने लिये कुछ भी करना बाकी नहीं रहेगा । ‘अपने’ का अर्थ हुआ‒ईश्वरका अंश ।
ईस्वर अंस जीव अबिनासी
।
चेतन अमल सहज सुखरासी ॥
(मानस,
उत्तर॰ ११७ । १)
ममता और कामना न रहनेपर अपना स्वरूप अर्थात् ईश्वरका अंश
रहा । ईश्वरके अंशके लिये क्या करना है ? इसलिये अपने लिये कुछ नहीं करना है ।
श्रोता‒शरीर-निर्वाहके लिये, उदरपूर्तिके लिये तो करना पड़ेगा ?
स्वामीजी‒शरीर-निर्वाहके लिये काम
किससे करोगे ? शरीरसे करोगे तो शरीर मेरा है ही नहीं । इस विषयको
ठीक समझकर बोलो । मैंने आरम्भमें ही कह दिया कि मेरा कुछ नहीं है । जब मेरा कुछ नहीं
है तो फिर शरीर मेरा कहाँ रहा ?
जब मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये तो फिर
आपका स्वरूप ‘ईश्वर-अंश, अविनाशी, चेतन,
अमल, सहज सुखराशि’ रहा । चेतनको क्या रोटी चाहिये
? चेतनको क्या पानी चाहिये ? चेतनको क्या
कपड़ा चाहिये ? चेतनके लिये क्या मकान चाहिये ? आप कह सकते हैं कि सन्त-महात्मा भी रोटी खाते हैं तो
क्या वे शरीरसे अलग होकर खाते हैं ? शरीरसे अलग होकर पानी पीते
हैं ? शरीर रोटी खाता है तो खाता रहे, अपनेको
क्या हर्ज है ? दुनिया खाती है तो यह भी खाता रहे ! अगर वह शरीरको अपना मानता है तो वह महात्मा नहीं है । अगर शरीरको अपना मानता है तो दुनियामात्रको अपना मानता है । कारण कि शरीर
संसारका ही अंश है; अतः शरीरसे सम्बन्ध मानते ही संसारमात्रसे
सम्बन्ध जुड़ जाता है और शरीरसे सम्बन्ध टूटते ही संसारमात्रसे सम्बन्ध टूट जाता है
।
श्रोता‒इच्छा छोड़ना चाहते हैं, पर छूटती नहीं ! छोड़ना
बड़ा कठिन लगता है !
स्वामीजी‒भगवान्का नाम लेनेसे त्यागनेकी शक्ति
आती है । भीतरसे ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो तो शक्ति जरूर आयेगी,
भगवान्की कृपासे आयेगी । कोई काम अपनेसे न
हो तो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ
!’ पुकारो । भगवान्की कृपासे जरूर काम होता है । आपसे इच्छा नहीं छूटती तो भगवान्से कहो कि ‘हे नाथ ! मेरेसे इच्छा छूटती नहीं !’ कम-से-कम, कम-से-कम ‘मैं छोड़ना चाहता हूँ’‒इतनी
बात आपकी जरूर चाहिये । फिर सब काम भगवान्की कृपासे होगा । दुःखी होकर कहो कि मैं
छोड़ना चाहता हूँ पर मेरेसे छूटती नहीं ! जितने ज्यादा दुःखी होंगे,
उतनी जल्दी काम होगा । थोड़े दुःखी होंगे तो देरी लगेगी । अपनी कमजोरीका अनुभव और भगवान्की अपार सामर्थ्य तथा कृपापर विश्वास‒ये दो बातें चाहिये ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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