।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण एकादशी, वि.सं.-२०७५, गुरुवार
             वरूथिनी एकादशी-व्रत (सबका)
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

‘अपने लिये कुछ नहीं करना है’यह ज्ञानयोगकी बात है । ज्ञानयोगमें तीन बातें हैंमेरा कुछ नहीं है, मेरेको कुछ नहीं चाहिये और मेरेको अपने लिये कुछ नहीं करना है । जब अनन्त ब्रह्माण्डोमें कुछ भी अपना नहीं है तो फिर शरीरमें अपनी चीज क्या हुई ? जब अपना कुछ नहीं है तो फिर अपनेको क्या चाहिये ? कुछ नहीं चाहिये । इस प्रकार प्राप्तमें ममता न हो और अप्राप्तकी कामना न हो तो फिर अपने लिये कुछ भी करना बाकी नहीं रहेगा । ‘अपने’ का अर्थ हुआईश्वरका अंश ।

ईस्वर अंस  जीव  अबिनासी ।
चेतन अमल सहज सुखरासी ॥
                            (मानस, उत्तर ११७ । १)

ममता और कामना न रहनेपर अपना स्वरूप अर्थात् ईश्वरका अंश रहा । ईश्वरके अंशके लिये क्या करना है ? इसलिये अपने लिये कुछ नहीं करना है ।

श्रोताशरीर-निर्वाहके लिये, उदरपूर्तिके लिये तो करना पड़ेगा ?

स्वामीजीशरीर-निर्वाहके लिये काम किससे करोगे ? शरीरसे करोगे तो शरीर मेरा है ही नहीं । इस विषयको ठीक समझकर बोलो । मैंने आरम्भमें ही कह दिया कि मेरा कुछ नहीं है । जब मेरा कुछ नहीं है तो फिर शरीर मेरा कहाँ रहा ?

जब मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये तो फिर आपका स्वरूप ‘ईश्वर-अंश, अविनाशी, चेतन, अमल, सहज सुखराशि’ रहा । चेतनको क्या रोटी चाहिये ? चेतनको क्या पानी चाहिये ? चेतनको क्या कपड़ा चाहिये ? चेतनके लिये क्या मकान चाहिये ? आप कह सकते हैं कि सन्त-महात्मा भी रोटी खाते हैं तो क्या वे शरीरसे अलग होकर खाते हैं ? शरीरसे अलग होकर पानी पीते हैं ? शरीर रोटी खाता है तो खाता रहे, अपनेको क्या हर्ज है ? दुनिया खाती है तो यह भी खाता रहे ! अगर वह शरीरको अपना मानता है तो वह महात्मा नहीं है । अगर शरीरको अपना मानता है तो दुनियामात्रको अपना मानता है । कारण कि शरीर संसारका ही अंश है; अतः शरीरसे सम्बन्ध मानते ही संसारमात्रसे सम्बन्ध जुड़ जाता है और शरीरसे सम्बन्ध टूटते ही संसारमात्रसे सम्बन्ध टूट जाता है ।

श्रोताइच्छा छोड़ना चाहते हैं, पर छूटती नहीं ! छोड़ना बड़ा कठिन लगता है !


स्वामीजीभगवान्‌का नाम लेनेसे त्यागनेकी शक्ति आती है । भीतरसे ‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो तो शक्ति जरूर आयेगी, भगवान्‌की कृपासे आयेगी । कोई काम अपनेसे न हो तो ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो । भगवान्‌की कृपासे जरूर काम होता है । आपसे इच्छा नहीं छूटती तो भगवान्‌से कहो कि ‘हे नाथ ! मेरेसे इच्छा छूटती नहीं !’ कम-से-कम, कम-से-कम ‘मैं छोड़ना चाहता हूँ’इतनी बात आपकी जरूर चाहिये । फिर सब काम भगवान्‌की कृपासे होगा । दुःखी होकर कहो कि मैं छोड़ना चाहता हूँ पर मेरेसे छूटती नहीं ! जितने ज्यादा दुःखी होंगे, उतनी जल्दी काम होगा । थोड़े दुःखी होंगे तो देरी लगेगी । अपनी कमजोरीका अनुभव और भगवान्‌की अपार सामर्थ्य तथा कृपापर विश्वासये दो बातें चाहिये ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे