(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒गीताजीको ताबीज-रूपसे गलेमें धारण कर सकते हैं
क्या ?
स्वामीजी‒लोग पैसा कमानेके लिये गीताजीकी ताबीज
बनाते हैं तो वह चीज बढ़िया नहीं होती । गीताजीको ऊपरसे धारण न करके भीतरसे कण्ठमें
धारण कर लो अर्थात् कण्ठस्थ कर लो, याद कर लो । गीताको याद करनेका जो माहात्म्य
है, वह ताबीजका नहीं है । अपना जीवन
गीताके अनुसार बना लो । चलती-फिरती गीता बन जाओ !
भगवान्के शरण होनेको गीताने सर्वश्रेष्ठ बताया है । इसका
तात्पर्य यह नहीं है कि ज्ञानमार्ग, योगमार्ग आदि कमजोर हैं । परन्तु गीतामें
भक्तिकी महिमा ज्यादा आयी है । व्यक्ति जितनी अपने मनकी बात
रखता है, उतना ही वह भगवान्से
दूर होता है । परन्तु जो अपने मनकी बात छोड़कर भगवान्के मनमें अपना मन मिला देता है,
उसकी जल्दी उन्नति होती है । हरेक साधनकी
एक चाबी होती है । अपनी मरजीको भगवान्की मरजीमें मिला दे । यह बहुत बढ़िया,
बहुत ऊँचा साधन है ! जितनी अपनी मरजी लगाओगे,
उतनी देरी होगी । अतः भगवान्के शरण हो जायँ । जितना भगवान्पर निर्भर
होते हैं, उतना जल्दी काम होता है; क्योंकि
वहाँ भगवान्की शक्ति काम करती है । अपनी मरजी लगानेसे अपनी शक्ति काम करती है । हमारी
शक्ति और भगवान्की शक्तिमें आकाश-पातालका फर्क है ! भगवान्की शक्ति अपार है, असीम है, अनन्त है ! इसलिये अपनी कोई शक्ति, धारणा, माँग, चाहना न रखे । अपनेको
ही न रखे, प्रत्युत भगवान्में मिला दे ।
जितना-जितना अपना
अभिमान रहता है, उतने-उतने हम भगवान्से
दूर होते हैं । अपने अभिमानके सिवाय दूसरा कोई दूर रहनेका कारण नहीं है । अतः
अपनेपर कोई बोझ रखे ही नहीं, भगवान्पर छोड़ दे कि तू जाने, तेरा काम जाने ! जितना भगवान्पर छोड़ेंगे, उतना ही काम बढ़िया होगा; क्योंकि उसमें भगवान्का बल
काम करेगा । भगवान्ने कहा है‒‘मामेकं शरणं
व्रज’ (गीता १८ । ६६) ‘एक मेरी शरणमें आ जा’ । इसलिये
अपने बलका, वर्णका, आश्रमका सहारा न रखे
। मैं साधु हूँ, मैं ब्राह्मण हूँ, मैं पढ़ा-लिखा हूँ, मैं पण्डित
हूँ‒यह भार भी न रखे । सारा बोझ भगवान्पर डालकर आप हल्का हो
जाय ! पाण्डवोंने भगवान्का सहारा लिया तो पाँचों भाइयोंमें एक
भी नहीं मरा और अपनेपर भार लेनेवाले सौ कौरवोंमें एक भी नहीं रहा, सब-के-सब मर गये !
श्रोता‒शरणागति और आत्मसमर्पण एक ही हैं क्या ?
स्वामीजी‒एक ही हैं । आत्मसमर्पणसे शरणागति पूरी
हो जाती है । मैं-पन भगवान्में ही मिला
देना आत्मसमर्पण है । मैं-पन अलग रहे ही नहीं । सर्वथा भगवान्के
शरण हो जाय । वास्तवमें भगवान्का अंश होनेसे हम सदासे ही भगवान्के हैं, केवल भूल गये !
सज्जनो ! भगवान्के शरण हो जाओ
। भगवान्की कृपासे सब काम ठीक हो जायगा ! सब चिन्ता,
शोक, हलचल, सन्ताप,
जलन, दुःख मिट जायगा ! भगवान्से
दूर होनेसे ही दुःख हुआ है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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