शरीर आदि मिली हुई चीजें आपके काम नहीं आयेंगी‒यह बात आपको हरेक जगह मिलेगी नहीं ! आपको
मनुष्यशरीर मिला है, पर वह आपके काम नहीं आयेगा । आप काममें लेना चाहोगे,
तब काम आयेगा । बढ़िया-से-बढ़िया चीज भी जबतक आप काममें न लें,
तबतक वह क्या काम आयेगी ? भगवान्का नाम लो, भगवान्का चिन्तन करो,
भगवान्की चर्चा करो तो लाभ होगा,
पर आप परवाह ही नहीं करते ! आपको मनुष्यशरीर मिला है,
सत्संग मिला है, अच्छी बातें मिली हैं । इनको आप ठीक तरहसे काममें लो तो
बहुत लाभ होगा ।
‘हे नाथ ! हे नाथ !’ कहकर भगवान्को पुकारो और प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । यह बात मैंने बहुत बार कही है,
पर आप ध्यान नहीं देते ! रोजाना दो-दो,
तीन-तीन मिनटमें कहते रहो तो देखो,
आपका जीवन बदलता है कि नहीं ! इसमें क्या कठिनता है
? मन न लगे तो भी केवल
कहनेमात्रसे लाभ होगा । लगनसे कहो तो बहुत लाभ होगा । आजसे
ही मन-ही-मन ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ कहना शुरू कर दो । आपका जीवन
विचित्र हो जायगा ! आप सन्त हो जाओगे !
श्रोता‒घरमें
सूतक-पातक हो जाय तो भगवान्का पूजन कैसे करें ?
स्वामीजी‒अगर ठाकुरजीकी
प्राण-प्रतिष्ठा की गयी है तो उनका पूजन ब्राह्मणसे कराना चाहिये । आपकी विवाहित
बहन-बेटी भी उनका पूजन कर सकती है । अगर प्राण-प्रतिष्ठा नहीं करायी है तो ठाकुरजी
घरके सदस्यकी तरह ही हैं । अतः उनको सूतक-पातक नहीं लगता । उनका पूजन आप कर सकते
हैं ।
संसारकी कोई चीज ऐसी है ही नहीं,
जो सदा आपके साथमें रहे और भगवान् ऐसे हैं ही नहीं,
जो सदा आपके साथमें न रहें । भगवान् सबके हृदयमें रहते हैं‒‘सर्वस्य चाहं हृदि
सन्निविष्टः’ (गीता
१५ । १५) । जैसे गायको
घी दिया जाय तो वह घी गुण करता है, पर उसके भीतर रहनेवाला घी गुण नहीं करता,
उसके काम नहीं आता । ऐसे ही आपके हृदयमें रहनेवाले भगवान्
आपके काम नहीं आते । आपके हृदयमें रहते हुए भी वे नहींकी तरह ही हैं । आप मान लो,
स्वीकार कर लो कि भगवान् हमारे हृदयमें हैं और वे हमारे हैं,
तब वे काम आयेंगे ।
विचार करें, भगवान्के बिना आप आये ही कहाँसे
? कोई बालक माँके बिना आता
है क्या ? इसलिये आप केवल इतना स्वीकार कर लो कि भगवान् मेरे हैं,
मैं भगवान्का हूँ । उनको हरेक हालतमें पुकारो । सुखमें भी
पुकारो, दुःखमें भी पुकारो । पापी-पुण्यात्मा,
भक्त-अभक्त, ज्ञानी-अज्ञानी सब भगवान्को अपना कह सकते हैं । भगवान्को
अपना मान लो तो कुछ काम बाकी नहीं रहेगा, सब काम अपने-आप ठीक हो जायगा । आपसे
कोई पूछे, कभी पूछे कि कहाँके हो ? कौन
हो ? तो स्वतः मनमें आना चाहिये कि मैं भगवान्का हूँ
। यह बात हरेकके सामने नहीं कहनी है,
पर मनमें यही बात पैदा होनी चाहिये कि मैं
भगवान्का हूँ ।
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