सम्पूर्ण जीव साक्षात् परमात्माके अंश हैं‒‘ईस्वर अंस जीव अबिनासी’ (मानस, उत्तर॰ ११७ । १) । अतः हरेकके भीतर यह बात होनी चाहिये कि हम भगवान्के लाड़ले
बेटा-बेटी हैं । आप अपने-आपको भगवान्का अंश मानोगे तो बिना
कहे-सुने आपमें अच्छे गुण, सद्गुण-सदाचार अपने-आप आ जायँगे । ऐसी-ऐसी बातें
आपमें आ जायँगी कि खुद आपको आश्चर्य होगा ! परन्तु यह होगा भगवान्के साथ अपना सम्बन्ध माननेसे । हम भगवान्के हैं ‒यह सब बातोंकी सार बात है ।
श्रोता‒अगर
विधवा विवाह न करे तो उसका जीवन कैसे चलेगा ?
स्वामीजी‒मनुष्यजन्मके खास ध्येय परमात्माकी प्राप्तिको तो सर्वथा भूल गये और भोगेच्छा
मुख्य हो गयी ! अगर परमात्मप्राप्तिका लक्ष्य हो जाय तो जीवन
बहुत बढ़िया चलेगा । शरीर भोग भोगनेके लिये ही है‒यह बात भीतर बैठी हुई होनेके
कारण यह प्रश्न उठता है कि जीवन कैसे चलेगा
? अगर त्यागका विचार होता तो
यह प्रश्न ही नहीं उठता । भोगेच्छा ही मुख्य हो जायगी तो फिर दुराचार,
पापाचार ही होंगे ।
अगर यह प्रश्न है कि विधवाका निर्वाह कैसे होगा,
तो यह प्रश्न भी उठना चाहिये कि जो साधु हो गया,
उसका निर्वाह कैसे होगा !
श्रोता‒सम्पूर्ण
सृष्टि भगवान्से पैदा हुई है, तो
जो कुछ हो रहा है, सब
भगवान् ही करवा रहे हैं । फिर हम जो गलती करते हैं, उसका
फल हमें क्यों मिलता है ?
स्वामीजी‒यह बात नहीं है । आप अपने मनसे काम करते हैं । आपको प्यास लगती है तो आप जल पीते
हैं, भूख लगती है तो अन्न खाते हैं, नींद आती है तो सो जाते हैं । जो आपके मनमें आता है,
वह काम आप करते हैं ।
एक ‘करना’ होता है और एक ‘होना’ होता है । दोनों अलग-अलग हैं । जैसे,
व्यापार करते हैं, नफा-नुकसान होता है । ‘करना’ हमारे
हाथमें है, ‘होना’
हमारे हाथमें नहीं है । अगर होना हमारे हाथमें होता तो हम नुकसान करें ही नहीं,
हम कभी मरें ही नहीं । कोई मरना नहीं चाहता,
पर सब मरते हैं ! इसलिये करनेमें सावधान और होनेमें प्रसन्न
रहनेकी बात कही जाती है । करनेमें सावधान नहीं रहना और होनेमें
दुःखी होना‒दोनों ही गलती है ।
भगवान् कराते हैं‒यह बात है ही नहीं । अगर भगवान् कराते तो ‘ऐसा
करो, ऐसा मत करो’‒यह
कहना बनेगा ही नहीं । गुरु, शास्त्र आदि सब निरर्थक हो जायँगे ।
श्रोता‒अपने-आप
भजन कैसे हो ?
स्वामीजी‒लगन होनेसे अपने-आप भजन होगा । सच्ची लगन होनेसे भजन छूट ही नहीं सकता । भीतरमें यह बात जँच जाय कि एक भगवान्के सिवाय अपना कोई नहीं है
तो अपने-आप, स्वाभाविक भजन होगा । संसार (स्त्री, पुत्र, कुटुम्ब, धन आदि)-को अपना मानोगे तो संसारका भजन होगा,
भगवान्का भजन कैसे होगा
? संसारमें अपना कोई नहीं है‒इतना
मान लो तो अपने-आप भजन होगा ।
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