।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल द्वादशी, वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
अनन्तकी ओर     



श्रोताकोई ऐसा उपाय बतायें कि सुख भी भोगते रहें और भजन भी हो जाय !

स्वामीजीये दो बातें एक साथ चलेंगी नहीं । सुखभोगकी रुचि रहते हुए परमात्माकी प्राप्ति नहीं होती । परमात्मप्राप्तिमें बाधा ही यही है, और बाधा ही क्या है ? आप सुखभोगकी रुचि हटाते नहीं, परमात्माकी प्राप्ति होती नहीं । दोनोमेंसे एक ही बात होगी ।

कबीर  मनुआँ  एक  है,  भावे  जिधर  लगाय ।
भावे हरि की भगति करे, भावे विषय कमाय ॥

दोनों काम करोगे तो जीवन चलता रहेगा, शुभ काम भी होंगे, पर अशुभ कामसे सर्वथा छुटकारा नहीं होगा । जिसके भीतर भोगोंकी इच्छा रहती है, उसको खतरा रहता है । जहाँ झूठ, कपट, बेईमानीसे रुपया, भोग मिलता हुआ दीखेगा, वह झूठ, कपट, बेईमानी कर लेगा । गीतामें अर्जुनने प्रश्‍न किया है कि मनुष्य न चाहता हुआ भी पाप क्यों करता है ? भगवान्‌ने यही उत्तर दिया है कि भोगोंकी कामनाके वशीभूत होनेसे वह पाप करता है (गीता ३ । ३६-३७) । तात्पर्य है कि भोगोंमें रुचि रहनेके कारण मनुष्य पापमें रुचि न होनेपर भी पाप कर बैठता है ।

भोगोंमें रुचि होगी तो मन भोगोंकी तरफ जायगा, साधनकी तरफ नहीं । उससे भजन होगा ही नहीं । भोगोंकी रुचि तंग करती रहेगी । इसलिये पहलेसे ही यह बात होनी चाहिये कि हमारा उद्देश्य भोगोंका नहीं है, हमें तो परमात्माको ही प्राप्त करना है ।

भोगोंकी प्राप्ति चाहना पतनका रास्ता है और परमात्माकी प्राप्ति चाहना उत्थानका रास्ता है । दोनों रास्ते अलग-अलग हैं । अगर परमात्माकी प्राप्ति चाहते हो तो भोगोंकी इच्छाको मिटाओ । कम-से-कम, कम-से-कम, कम-से-कम इतना भाव तो होना ही चाहिये कि हमें भोगोंकी इच्छाको मिटाना है । भोग और संग्रहमें लगा हुआ मनुष्य मुझे परमात्माकी प्राप्ति करनी हैयह निश्‍चय भी नहीं कर सकता ! जिनका उद्देश्य परमात्मप्राप्तिका है, उनको भी सुखभोगकी इच्छा ही बाधा देती है । भोग रागपूर्वक ही भोगे जाते हैं । रागके बिना भोग नहीं भोगे जाते । फिर रागके रहते हुए परमात्मामें अनुराग कैसे होगा ?

अगर भोगोंकी इच्छा सर्वथा मिट जाय तो साधक नहीं रहेगा, सिद्ध हो जायगा । साधक तभीतक है, जबतक भोगोंकी इच्छा है । भगवान्‌की इच्छा मुख्य होगी तो साधन करनेसे जरूर लाभ होगा । वह ज्यों-ज्यों साधन करेगा, त्यों-त्यों उसको पहलेकी अपेक्षा भोगोंका त्याग करनेमें सुगमता मालूम होगी । इसमें सबसे बढ़िया चीज सत्संग है ।

              सतां प्रसङ्गान्मम वीर्यसंविदो
                भवन्ति हृत्कर्णरसायनाः कथाः ।
             तज्‍जोषणादाश्वपवर्गवर्त्मनि
                श्रद्धा   रतिर्भक्तिरनुक्रमिष्यति ॥
                                      (श्रीमद्भा ३ । २५ । २५)


संतोंके संगसे मेरे पराक्रमोंका यथार्थ ज्ञान करानेवाली तथा हृदय और कानोंको प्रिय लगनेवाली कथाएँ होती हैं । उनका सेवन करनेसे शीघ्र ही मोक्षमार्गमें श्रद्धा, प्रेम और भक्तिका क्रमशः विकास होगा ।