।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
    वैशाख शुक्ल चतुर्दशी, वि.सं.-२०७५, शनिवार
श्रीनृसिंह-चतुर्दशी
   अनन्तकी ओर     



सत्संगमें जो रस आता है, उस रसमें भजनको तीव्र बनानेकी विलक्षण शक्ति है । परन्तु ऐसा सत्संग मिलना बड़ा दुर्लभ है ।

तात मिलै पुनि मात मिलै सुत, भ्रात मिलै युवती सुखदाई ।
राज मिलै गज-बाजि मिलै सब, साज मिलै मनवांछित पाई ॥
लोक मिलै सुरलोक मिलै,  बिधिलोक मिलै बैकुंठहु जाई ।
सुन्दर’ और मिलै सब ही सुख, संत समागम दुर्लभ भाई ॥
                                         (सुन्दरविलास २९ । १२)

सन्तोंका संग मिलना बड़ा दुर्लभ है ! असली सन्तोंका संग मिल जाय तो पापी-से-पापीका भी उद्धार हो जाता है ! ऐसे कई उदाहरण भी मिलते हैं ।

श्रोता‒कहते हैं कि अहम्‌की सत्ता नहीं है । जब अहम्‌की सत्ता ही नहीं है तो फिर जन्म-मरण क्यों होता है ?

स्वामीजी‒अहम् और जन्म-मरण दोनों एक ही जातिके हैं । जैसे अहम्‌की सत्ता नहीं है, ऐसे ही जन्म-मरणकी भी सत्ता नहीं है । आपने ही अहम्‌के साथ-साथ जन्म-मरणकी सत्ता मान रखी है । जैसे, स्वप्‍नमें कोई सिर काटे तो जागे बिना वह दुःख दूर नहीं होता । स्वप्‍नमें वह प्रत्यक्षकी तरह ही सच्‍चा मालूम देता है । जागनेपर ही मालूम होता है कि सब झूठ है । ऐसे ही जन्म-मरण एक स्वप्‍न है ।

अहम् चीज एक कल्पना है । आप अहम्‌को मत मानो । मैं हूँ’ऐसा एक मनुष्य है । मनुष्य मानकर मनुष्यके कर्तव्यका पालन करो ।

जिस धातुका अहम् है, उसी धातुका जन्म है, उसी धातुका मरण है । आप अहम्‌, जन्म और मरण‒तीनोंको सच्‍चा मानकर भी साधन कर सकते हैं । यह आग्रह नहीं रहना चाहिये कि इनको असत् मानकर ही हम साधन करें । अगर ये सच्‍चे दीखते हों तो स्वार्थ और अभिमानका त्याग करके दूसरोंको सुख पहुँचाना, दूसरोंकी सेवा करना शुरू कर दो । जन्म-मरणको झूठा माननेसे ही कल्याण होगा, ऐसी बात नहीं है । यह केवल एक शास्‍त्रकी बात है । जन्म-मरणको सच्‍चा माननेपर भी आपका कल्याण हो जायगा, आप घबराओ मत । संसारको सच्‍चा माननेवालोंके लिये ही कर्मयोग है । अगर दूसरोंके सुखके लिये आपको कष्ट पाना पड़े तो वह कष्ट आपकी तपस्या हो जायगी ।


संसारसे सुख लेनेकी इच्छा ही बाँधनेवाली है । आप संसारको सच्‍चा मानो या झूठा मानो, सुखकी इच्छाका त्याग तो करना ही पड़ेगा । इसका त्याग किये बिना कल्याण नहीं होगा । संसारको सच्‍चा मानते हुए भी यह भाव रखो कि सब सुखी हो जायँ, किसीको किंचिन्मात्र भी दुःख न हो । दूसरेके सुखके लिये दुःखको स्वीकार कर लो । सुखभोगको स्वीकार करना दोषी है ।