संसारको असत् माननेसे ही कल्याण होगा‒यह कायदा नहीं है । सिनेमाको
असत् माननेपर भी उसमें आसक्ति हो जाती है । सिनेमामें दीखनेवाला सच्चा नहीं हैं ‒ऐसा
निर्णय पक्का है, फिर भी देखनेकी रुचि होती है । अतः अपनी स्वार्थबुद्धि,
भोगबुद्धि, आरामबुद्धि बाधक है । संसार सच्चा दीखे तो इसका दुःख मत करो
। दूसरोंको सुख पहुँचाओ, सेवा करो । हमारे द्वारा भूलमें भी किसीको कष्ट न पहुँचे‒ऐसा
उद्देश्य रखो । संसार बाधक नहीं है, उसका
सम्बन्ध बाधक है । संसार सच्चा
हो या झूठा हो, उससे हमें क्या मतलब
?
जो व्याख्यान देते हैं,
वे सम्बन्ध जोड़ लेते हैं कि ये हमारे चेला-चेली हैं,
हमारे सत्संगी हैं,
तो खेती, व्यापार करनेकी तरह व्याख्यान देना भी एक काम हुआ ! जहाँ सम्बन्ध
जोड़ा कि बँधे ! हृदयसे अपने सम्बन्धका त्याग होना चाहिये । संसारको झूठा माननेमात्रसे कल्याण नहीं होता । कल्याण संसारके सम्बन्धका
त्याग करनेसे होता है । सम्बन्धमें भी सुखबुद्धि बाधक है । संसारका सम्बन्ध केवल सुख
पहुँचानेके लिये है, सुख लेनेके
लिये नहीं ।
संसारका सम्बन्ध रखते हुए भले ही संसारको झूठा कहते रहो,
कोई फायदा नहीं है । जड़तासे कुछ लेना चाहते हैं,
यह दोष है; जड़ताका दोष नहीं है । जिसका संयोग और वियोग होता है,
जो मिलती और बिछुडती है,
वह चीज अपनी नहीं है‒केवल इतना माननेमात्रसे बहुत लाभ होगा ।
पहलेसे ही पक्का विचार कर लें कि जो मिला है,
उसका वियोग होगा । वियोगको मुख्य मानें । संसारमात्रमें वियोग ही मुख्य है, संयोग
मुख्य नहीं है । जो संयोगका सुख
भोगते हैं, उनको वियोगका दुःख भोगना पड़ेगा ही,
किसी तरहसे बच नहीं सकते !
संसारका सम्बन्ध पतन करनेवाला और भगवान्का सम्बन्ध
उद्धार करनेवाला है‒यह छोटी-सी बात है,
पर बहुत दामी है ! संसार पतन करनेवाला नहीं है,
प्रत्युत उसका सम्बन्ध पतन करनेवाला है । सम्बन्ध सदा रहता है
। जिससे हम अपना सम्बन्ध मान लेते हैं, उसको याद न करनेपर भी उसकी याद सदा बनी रहती है ।
नहीं रट्या तो का भया, घट्या
न चाहिय हेत ।
जैसे नार सुहागणी, पिव को नाम न लेत ॥
इसलिये अपना सम्बन्ध भगवान्के साथ रखो । संसारका काम करो,
पर सम्बन्ध मत जोड़ो । एक शिवजीका भक्त था । वह वैष्णवोंके यहाँ
भोजन करने गया तो उसके माथेपर खड़ा त्रिपुण्ड्र तिलक देखकर उसको उठा दिया,
भोजन नहीं करने दिया । शैवोंमें आड़ा त्रिपुण्ड्र और वैष्णवोंमें
खड़ा त्रिपुण्ड्र तिलक किया जाता है । उस शिवभक्तने पेटके ऊपर खड़ा त्रिपुण्ड्रका तिलक
कर लिया और भोजनके लिये बैठ गया । वह बोला कि मस्तकपर तो हमारे इष्टका ही तिलक रहेगा,
वह तो हट नहीं सकता, पर भूख लगी
है, इसलिये भोजनके लिये पेटपर तिलक कर लिया । पेटको देखो तो हम वैष्णव हैं ! इस प्रकार
व्यवहारके लिये तो संसारसे सम्बन्ध मानो, पर भीतरसे अपना सम्बन्ध भगवान्से ही रखो ।
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