।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७५, मंगलवार
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोताहम किसीका बुरा नहीं चाहते हैं, पर कभी-कभी चाहते हुए भी मनसे बुरा चिन्तन हो जाता है ! क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‘हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । यह सबकी दवाई है ! ‘हे नाथ ! मैं परवश हूँ ! मैं चाहता नहीं हूँ, फिर भी बुरा चिन्तन आ जाता है ! हे नाथ ! कृपा करो’ । इस तरह भगवान्‌को पुकारो ।

अपनी कमजोरीका अनुभव करो और भगवान्‌की कृपापर विश्वास करो, फिर सब ठीक हो जायगा ।

श्रोताकर्म, उपासना और ज्ञान अलग-अलग होते हुए भी क्या एक-दूसरेके पूरक हैं ?

स्वामीजीहाँ पूरक हैं । तीनों साथमें रहते हैं । एक मुख्य रहता है, शेष दोनों गौण रहते हैं ।

श्रोताभारतवर्ष-जैसा पवित्र और आस्तिक देश दूसरा कोई नहीं है, फिर भी इसमें इतने पाप क्यों हो रहे हैं ?

स्वामीजीजो इस देशके मुख्य आदमी हैं, वे आस्तिक नहीं हैं । यहाँकी जनतामें तो आस्तिक-भाव है, पर जिनके हाथमें सत्ता (राज्य) है, वे भगवान्‌के भक्त नहीं हैं । उनकी भगवान्‌की तरफ रुचि नहीं है । जनताकी भी रुचि विदेशी सभ्यताकी तरफ है ।

आप सत्संग करनेवाले भी चोटी नहीं रखते ! मेरे कहनेपर भी नहीं रखते ! मेरा कितना आदर है, आप ही सोचो ! भारतवर्षका पतन इसलिये हो रहा है कि जो आदरणीय पुरुष हैं, उनका तो निरादर हो रहा है और जो निरादर करनेलायक हैं, उनका आदर हो रहा है

अपूज्या यत्र पूज्यन्ते पूज्यानां तु व्यतिक्रमः ।
त्रीणि तत्र भविष्यन्ति  दुर्भिक्षं मरणं भयम् ॥
                     (स्कन्दपुराण, मा के ३ । ४८, पञ्चतन्त्र, काको १९१)

‘जहाँ अपूज्य व्यक्तियोंकी पूजा होती है और पूज्य व्यक्तियोंका निरादर होता है, वहाँ तीन बातें होंगी हीअकाल पड़ेगा, मृत्यु होगी और भय होगा ! तरह-तरहके उपद्रव होंगे, शान्तिसे रह नहीं सकेंगे ! यह सिद्धान्त है ।

चोटी रखना मेरा आदर नहीं है, प्रत्युत शास्त्रका आदर है । आप शास्त्रका आदर करते नहीं, भगवान्‌का आदर करते नहीं ! फिर देशकी अच्छाई क्या करे ? देश बड़ा अच्छा है, पर आप बात कितनी मानते हो ? मेरे कहनेपर भी आप चोटी नहीं रख सकते, फिर मेरी क्या इज्जत की आपने ? मैं आपसे कोई भेंट-पूजा नहीं चाहता ! यह भी नहीं चाहता कि आप भिक्षा भी दो ! दो चाहे मत दो, आपकी मरजी है । मेरा आग्रह बिल्कुल नहीं है । विचार करो कि आप मेरेको क्या दे सकते हो और क्या देते हो ? एक चोटी रखनेके लिये कहता हूँ, वह भी आप नहीं रखते ! यह दशा है सत्संग करनेवालोंकी ! फिर जो सत्संगमें आते ही नहीं, उनकी क्या दशा होगी ! महान् अधर्म फैल रहा है ! भारतकी जो संस्कृति है, उसकी तरफ ध्यान नहीं है ! चोटी न रखकर आपने क्या विशेषता प्राप्त कर ली, बताओ ? चोटी न रखनेका आपने क्या लाभ उठाया, बताओ ?


मेरे मनमें कल्याणकी नयी-नयी बातें पैदा होती हैं । पर मेरे मनमें स्वप्नमें भी ऐसा नहीं है कि ये चोटी नहीं रखते, मेरा कहना नहीं मानते, इसलिये इनको ये बातें नहीं बतायेंगे । मैं आपके कल्याणकी बढ़िया-से-बढ़िया बात बताता आया हूँ । आप मेरी बात नहीं मानतेइस बातका मेरेपर किंचिन्मात्र भी असर नहीं है । आपने पूछा है, तब मैंने उपर्युक्त बात कही है । आप सोचो कि मेरे वचनोंका कितना आदर करते हो ? आप सुननेके लिये आते होयह आपकी बड़ी कृपा मानता हूँ ! मैं अपनी दृष्टिमें बढ़िया-से-बढ़िया बातें आपको सुनाता हूँ तो आपपर एहसान नहीं करता हूँ !

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे