(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒स्वयंसे भगवान्को
देखनेका अभ्यास कैसे करें ?
स्वामीजी‒अभ्याससे भगवान्के दर्शन कभी होनेके
हैं ही नहीं !
अभ्याससे दर्शन नहीं होते, प्रत्युत भीतरकी लालसासे
दर्शन होते हैं । मैं भगवान्के बिना जी नहीं सकता, प्राण छूट
जायँगे‒ऐसा होगा तो दर्शन हो जायँगे । जप, ध्यान, कीर्तन, पाठ-पूजा, तीर्थ आदि करनेसे भगवान्के दर्शन नहीं होते ।
ऐसी दशा हो जाय कि भगवान्के बिना मेरे प्राण निकल जायँगे, तो
जरूर मिल जायँगे । इसके सिवाय और किसी उपायसे नहीं मिलेंगे, नहीं
मिलेंगे, नहीं मिलेंगे ! पक्की बात है !
आप उपाय करके भगवान्को वशमें कर लो‒यह होनेका
है ही नहीं ! कभी वहम भी मत रखना कि इतना जप करनेसे हो जायगा,
ध्यान करनेसे हो जायगा, चिन्तन करनेसे हो जायगा
। वे केवल लालसासे मिलते हैं । लालसा भी सच्ची हो तो मिलेंगे, नहीं तो भले ही मर जाओ, नहीं
मिलेंगे । नकली लालसा होगी तो भले ही मर जाओ, भगवान् किंचिन्मात्र भी परवाह नहीं करेंगे !
संसारको तृणवत् समझनेवाले, बड़े-बड़े विरक्त, त्यागी मनुष्य सन्त हो सकते हैं,
महात्मा हो सकते हैं, पर भीतरकी लगनके बिना उनको
भी भगवान् नहीं मिल सकते ! भगवान्को किसी कीमतसे नहीं खरीद सकते
। भगवान् और उनके भक्त किसी कीमतसे नहीं खरीदे जा सकते । कभी स्वप्नमें भी मत सोचना
!
श्रोता‒लालसा कैसे जगे ?
स्वामीजी‒संसारकी लालसा बिल्कुल छोड़ दो, जग जायगी । संसारकी
किंचिन्मात्र भी लालसा न रहे । जीनेकी भी इच्छा न रहे । संसारकी
इच्छा रखते हुए भगवान्की लालसा नहीं जागेगी ।
आप तत्त्वज्ञ हो सकते हो, जीवन्मुक्त
हो सकते हो, पर भगवान् मिल जायँ‒यह बात
नहीं है । भगवान्के मिलनेकी बात निराली है ! भगवान्की बात ज्ञानी भी समझ नहीं सकते
! तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्तमें भी भगवान्को
समझनेकी ताकत नहीं है ! परन्तु गायकी हुंकारसे भी भगवान् आ जाते
हैं ! भगवान् क्या हैं, समझते नहीं !
श्रोता‒क्या भगवान्के
मनमें भी हमसे मिलनेकी लालसा होती है ?
स्वामीजी‒बड़ी भारी लालसा होती है ! उनके जैसी लालसा किसीकी
नहीं है ! उनके मनमें सबसे मिलनेकी लालसा है । उस लालसाके कारण ही आप किसी भी परिस्थितिमें टिकते नहीं, टिक सकते नहीं ।
भगवान् बहुत विचित्र हैं ! वे एक गायको,
बछड़ेको दर्शन दे देंगे, पर बड़े सन्त-महात्मा, तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्तको
दर्शन नहीं देंगे ! उनको सच्चा प्रेम चाहिये । नकली प्रेमसे आप
मर जाओ तो भी आयेंगे नहीं ! सच्चा प्रेम हो तो वे आ जायँगे ।
प्रेमके कारण उन्होंने करमाबाईका खीचड़ खा लिया ! प्रेम सबसे
विलक्षण है !
श्रोता‒यदि भगवान्के
मनमें भी हमसे मिलनेकी इच्छा है तो वे
आकर दर्शन क्यों नहीं दे
देते ?
स्वामीजी‒भगवान्ने आपको अधिकार दिया है । उस
अधिकारके अनुसार आप सोचो तो वे आ जायँगे । अधिकार तो दिया है प्रेमका, आप करते हो मोह तो
वे कैसे आयेंगे ? आपको मोहका, अज्ञानका,
मूढ़ताका, भोगोंका, संग्रहका
अधिकार नहीं दिया है । भगवान्ने मनुष्यमात्रको प्रेमका अधिकार दिया है । मनुष्यमात्र
भगवान्को प्राप्त कर सकता है । परन्तु आप भोगोंमें उलझ गये ! भगवान् जबर्दस्ती नहीं करते, किसीके अधिकारको कभी नहीं छीनते । भगवान् भावके
भूखे हैं ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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