।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण द्वितीया, वि.सं.-२०७५, सोमवार
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतास्वयंसे भगवान्‌को देखनेका अभ्यास कैसे करें ?

स्वामीजीअभ्याससे भगवान्‌के दर्शन कभी होनेके हैं ही नहीं ! अभ्याससे दर्शन नहीं होते, प्रत्युत भीतरकी लालसासे दर्शन होते हैं । मैं भगवान्‌के बिना जी नहीं सकता, प्राण छूट जायँगेऐसा होगा तो दर्शन हो जायँगे । जप, ध्यान, कीर्तन, पाठ-पूजा, तीर्थ आदि करनेसे भगवान्‌के दर्शन नहीं होते । ऐसी दशा हो जाय कि भगवान्‌के बिना मेरे प्राण निकल जायँगे, तो जरूर मिल जायँगे । इसके सिवाय और किसी उपायसे नहीं मिलेंगे, नहीं मिलेंगे, नहीं मिलेंगे ! पक्की बात है ! आप उपाय करके भगवान्‌को वशमें कर लोयह होनेका है ही नहीं ! कभी वहम भी मत रखना कि इतना जप करनेसे हो जायगा, ध्यान करनेसे हो जायगा, चिन्तन करनेसे हो जायगा । वे केवल लालसासे मिलते हैं । लालसा भी सच्ची हो तो मिलेंगे, नहीं तो भले ही मर जाओ, नहीं मिलेंगे । नकली लालसा होगी तो भले ही मर जाओ, भगवान् किंचिन्मात्र भी परवाह नहीं करेंगे !

संसारको तृणवत् समझनेवाले, बड़े-बड़े विरक्त, त्यागी मनुष्य सन्त हो सकते हैं, महात्मा हो सकते हैं, पर भीतरकी लगनके बिना उनको भी भगवान् नहीं मिल सकते ! भगवान्‌को किसी कीमतसे नहीं खरीद सकते । भगवान् और उनके भक्त किसी कीमतसे नहीं खरीदे जा सकते । कभी स्वप्नमें भी मत सोचना !

श्रोतालालसा कैसे जगे ?

स्वामीजीसंसारकी लालसा बिल्कुल छोड़ दो, जग जायगी । संसारकी किंचिन्मात्र भी लालसा न रहे । जीनेकी भी इच्छा न रहे । संसारकी इच्छा रखते हुए भगवान्‌की लालसा नहीं जागेगी ।

आप तत्त्वज्ञ हो सकते हो, जीवन्मुक्त हो सकते हो, पर भगवान् मिल जायँयह बात नहीं है । भगवान्‌के मिलनेकी बात निराली है ! भगवान्‌की बात ज्ञानी भी समझ नहीं सकते ! तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्तमें भी भगवान्‌को समझनेकी ताकत नहीं है ! परन्तु गायकी हुंकारसे भी भगवान् आ जाते हैं ! भगवान् क्या हैं, समझते नहीं !

श्रोताक्या भगवान्‌के मनमें भी हमसे मिलनेकी लालसा होती है ?

स्वामीजीबड़ी भारी लालसा होती है ! उनके जैसी लालसा किसीकी नहीं है ! उनके मनमें सबसे मिलनेकी लालसा है । उस लालसाके कारण ही आप किसी भी परिस्थितिमें टिकते नहीं, टिक सकते नहीं ।

भगवान् बहुत विचित्र हैं ! वे एक गायको, बछड़ेको दर्शन दे देंगे, पर बड़े सन्त-महात्मा, तत्त्वज्ञ, जीवन्मुक्तको दर्शन नहीं देंगे ! उनको सच्चा प्रेम चाहिये । नकली प्रेमसे आप मर जाओ तो भी आयेंगे नहीं ! सच्चा प्रेम हो तो वे आ जायँगे । प्रेमके कारण उन्होंने करमाबाईका खीचड़ खा लिया ! प्रेम सबसे विलक्षण है !

श्रोतायदि भगवान्‌के मनमें भी हमसे मिलनेकी इच्छा है तो वे आकर दर्शन क्यों नहीं दे देते ?


स्वामीजीभगवान्‌ने आपको अधिकार दिया है । उस अधिकारके अनुसार आप सोचो तो वे आ जायँगे । अधिकार तो दिया है प्रेमका, आप करते हो मोह तो वे कैसे आयेंगे ? आपको मोहका, अज्ञानका, मूढ़ताका, भोगोंका, संग्रहका अधिकार नहीं दिया है । भगवान्‌ने मनुष्यमात्रको प्रेमका अधिकार दिया है । मनुष्यमात्र भगवान्‌को प्राप्त कर सकता है । परन्तु आप भोगोंमें उलझ गये ! भगवान् जबर्दस्ती नहीं करते, किसीके अधिकारको कभी नहीं छीनते । भगवान् भावके भूखे हैं ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे