(गत ब्लॉगसे आगेका)
श्रोता‒मीराबाई तो भगवान्में लीन हो गयी थीं
। फिर
वे परलोकमें कैसे मिलीं ?
स्वामीजी‒भगवान्में लीन होनेपर भी भक्त वैसा
ही रहता है । इसमें दो बातें हैं । भक्तमें अलग रहनेकी भावना होती है तो वे अलग रहते
हैं । परन्तु जो भगवान्में लीन हो जाते हैं, उनकी आकृति नहीं दीखती । अगर उनकी आकृति
दीखती है तो उस आकृतिमें स्वयं भगवान् आते हैं और भक्तोंको दर्शन देते हैं । परमात्मा
भी निराकार है और भक्त भी निराकार है । साधक भी निराकार होते हैं ।
श्रोता‒क्या परलोकमें
भी सत्संग, भजन-ध्यान
होता है ?
स्वामीजी‒हाँ होता है । वहाँ तुलसीकृत रामायणका
भी पाठ होता है‒ऐसी बात मैंने सुनी है । रामायण बहुत विचित्र ग्रन्थ है !
श्रोता‒हरिआश्रय और परमविश्राम एक ही हैं या
अलग-अलग ?
स्वामीजी‒तत्त्वसे दोनों एक ही हैं । हरिआश्रय
साधन है और परमविश्राम साध्य है । मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहिये‒इसके बाद हरिआश्रय और
परमविश्राम है । परमविश्रामके बाद फिर कुछ करना बाकी नहीं रहता । गोस्वामीजीने लिखा
है‒‘पायो परम बिश्रामु’ (मानस, उत्तर॰ १३० छ॰) ।
शरीरके साथ मोह आध्यात्मिक उन्नतिमें बड़ी भारी बाधा है
। चौरासी लाख योनियोंमें कोई भी शरीर हमारे साथमें नहीं रहा तो यह शरीर साथमें कैसे
रहेगा ? जब लाखों शरीर छोड़
दिये तो फिर इस एक शरीरमें मोह क्यों ? इसको भी छोड़ना ही पड़ेगा
। शास्त्रोंमें, पुस्तकोंमें, व्याख्यानमें
ऐसी बात सुननेको नहीं मिलती ! इसलिये इस बातपर विशेष ध्यान देना
चाहिये कि शरीर अपना नहीं है । कारण कि आप परमात्माके अंश हो । इस तरफ बहुत साधकोंका
ध्यान नहीं है ! इसलिये यह नयी बात है !
लोगोंमें स्वाभाविक यह वृत्ति है कि जैसे हम सांसारिक
वस्तुओंकी प्राप्ति करते हैं, उसी तरहसे परमात्माकी प्राप्ति होगी । ऐसी बात
नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये हमें नाशवान् वस्तुओंसे ऊँचा उठना है,
तब परमात्माकी प्राप्ति होगी । नाशवान् पदार्थोंके द्वारा परमात्माकी
प्राप्ति नहीं होगी । नाशवान् वस्तुओंसे प्राप्ति होती नहीं और अविनाशी हमारे हाथ लगता
नहीं, तो फिर हम क्या करें‒ऐसा विचार करके
निराश नहीं होना है । जितनी भगवान्की विशेष याद आती है, उतनी
अपनी उन्नति होती है ।
इस तरफ ध्यान दो कि हमारा कौन है ? सबकी सार बात है कि हमारे भगवान् हैं । भगवान्के सिवाय कोई अपना नहीं है । यह
हाड़-मांसका शरीर भी अपना नहीं है ।
यह केवल दूसरोंकी सेवा करनेके लिये है । इसलिये भगवान्को याद रखो । यह बात भगवान्से बार-बार कहो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे स्वामिन् ! मैं आपको भूलूँ नहीं । ऐसी कृपा करो
कि मैं आपको भूलूँ नहीं’ । जितनी भगवान्की याद रहेगी, उतनी आपकी उन्नति होगी, उतने
आप संसारसे ऊँचे उठोगे । यह बात कई जगह लिखी गयी है कि
‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । इस बातका प्रचार हो रहा है
। परन्तु कोरी लिखी हुई बात कामकी नहीं, अपने हृदयसे पुकार करो
कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । आप भगवान्को भूलें नहीं
तो सब काम ठीक होगा‒‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’
(श्रीमद्भा॰ ८ । १० । ५५) अर्थात् भगवान्की स्मृति सम्पूर्ण विपत्तियोंका
नाश करनेवाली है । यह सार चीज है ।
(शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहीं, मेरा नहीं’ पुस्तकसे
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