।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
वैशाख कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७५, शुक्रवार
                    मैं नहीं, मेरा नहीं 



(गत ब्लॉगसे आगेका)

श्रोतामीराबाई तो भगवान्‌में लीन हो गयी थीं फिर वे परलोकमें कैसे मिलीं ?

स्वामीजीभगवान्‌में लीन होनेपर भी भक्त वैसा ही रहता है । इसमें दो बातें हैं । भक्तमें अलग रहनेकी भावना होती है तो वे अलग रहते हैं । परन्तु जो भगवान्‌में लीन हो जाते हैं, उनकी आकृति नहीं दीखती । अगर उनकी आकृति दीखती है तो उस आकृतिमें स्वयं भगवान् आते हैं और भक्तोंको दर्शन देते हैं । परमात्मा भी निराकार है और भक्त भी निराकार है । साधक भी निराकार होते हैं ।

श्रोताक्या परलोकमें भी सत्संग, भजन-ध्यान होता है ?

स्वामीजीहाँ होता है । वहाँ तुलसीकृत रामायणका भी पाठ होता हैऐसी बात मैंने सुनी है । रामायण बहुत विचित्र ग्रन्थ है !

श्रोताहरिआश्रय और परमविश्राम एक ही हैं या अलग-अलग ?

स्वामीजीतत्त्वसे दोनों एक ही हैं । हरिआश्रय साधन है और परमविश्राम साध्य है । मेरा कुछ नहीं है और मेरेको कुछ नहीं चाहियेइसके बाद हरिआश्रय और परमविश्राम है । परमविश्रामके बाद फिर कुछ करना बाकी नहीं रहता । गोस्वामीजीने लिखा है‘पायो परम बिश्रामु’ (मानस, उत्तर १३० छ)

शरीरके साथ मोह आध्यात्मिक उन्नतिमें बड़ी भारी बाधा है । चौरासी लाख योनियोंमें कोई भी शरीर हमारे साथमें नहीं रहा तो यह शरीर साथमें कैसे रहेगा ? जब लाखों शरीर छोड़ दिये तो फिर इस एक शरीरमें मोह क्यों ? इसको भी छोड़ना ही पड़ेगा । शास्त्रोंमें, पुस्तकोंमें, व्याख्यानमें ऐसी बात सुननेको नहीं मिलती ! इसलिये इस बातपर विशेष ध्यान देना चाहिये कि शरीर अपना नहीं है । कारण कि आप परमात्माके अंश हो । इस तरफ बहुत साधकोंका ध्यान नहीं है ! इसलिये यह नयी बात है !

लोगोंमें स्वाभाविक यह वृत्ति है कि जैसे हम सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्ति करते हैं, उसी तरहसे परमात्माकी प्राप्ति होगी । ऐसी बात नहीं है । परमात्माकी प्राप्तिके लिये हमें नाशवान् वस्तुओंसे ऊँचा उठना है, तब परमात्माकी प्राप्ति होगी । नाशवान् पदार्थोंके द्वारा परमात्माकी प्राप्ति नहीं होगी । नाशवान् वस्तुओंसे प्राप्ति होती नहीं और अविनाशी हमारे हाथ लगता नहीं, तो फिर हम क्या करेंऐसा विचार करके निराश नहीं होना है । जितनी भगवान्‌की विशेष याद आती है, उतनी अपनी उन्नति होती है ।


इस तरफ ध्यान दो कि हमारा कौन है ? सबकी सार बात है कि हमारे भगवान् हैं । भगवान्‌के सिवाय कोई अपना नहीं है । यह हाड़-मांसका शरीर भी अपना नहीं है । यह केवल दूसरोंकी सेवा करनेके लिये है । इसलिये भगवान्‌को याद रखो । यह बात भगवान्‌से बार-बार कहो कि ‘हे नाथ ! हे मेरे स्वामिन् ! मैं आपको भूलूँ नहीं । ऐसी कृपा करो कि मैं आपको भूलूँ नहीं’ । जितनी भगवान्‌की याद रहेगी, उतनी आपकी उन्नति होगी, उतने आप संसारसे ऊँचे उठोगे । यह बात कई जगह लिखी गयी है कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । इस बातका प्रचार हो रहा है । परन्तु कोरी लिखी हुई बात कामकी नहीं, अपने हृदयसे पुकार करो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । आप भगवान्‌को भूलें नहीं तो सब काम ठीक होगा‘हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भा ८ । १० । ५५) अर्थात् भगवान्‌की स्मृति सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश करनेवाली है । यह सार चीज है ।

   (शेष आगेके ब्लॉगमें)
‒‘मैं नहींमेरा नहीं’ पुस्तकसे