हरदम भगवान्को याद रखो । खास एक ही बात भगवान्से कहो कि ‘हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । दो-दो,
चार-चार मिनटमें कहते रहो । ऐसे दिन और रात,
जबतक नींद न आये, तबतक कहते ही रहो । भगवान्के पीछे ही पड़ जाओ ! जैसे
वृक्षमें लगा हुआ फल अपने-आप बड़ा हो जाता है,
अपने-आप मीठा हो जाता है । उसको बड़ा करना नहीं पड़ता,
मीठा करना नहीं पड़ता । ऐसे ही आप
भगवान्से लगे रहो तो आप अपने-आप सन्त बन जाओगे । जबानसे भगवान्का नाम लो,
हृदयसे भगवान्का ध्यान करो,
हाथोंसे भगवान्का काम करो ।
हाथ काम मुख राम है, हिरदै साची प्रीत ।
दरिया गृहस्थी साध की, याही
उत्तम रीत ॥
सबकी सेवा करना और भगवान्को याद करना‒यें दो मनुष्यके खास काम हैं ।
किसीके साथ ठगाई, चोरी मत करो । किसीसे कोई कर्जा लिया है, चुराया
है, डाका डाला है, ठगाई
की है तो उसका फल अवश्य भोगना पड़ेगा । जो लिया है, वह
ब्याजसहित चुकाना पड़ेगा । चुरुके एक विश्वेश्वरलालजी खेमका थे । वे वृद्ध थे,
और उन्होंने बहुत-से सन्तोंका सत्संग किया था । उन्होंने एक
बात बतायी कि एक मारवाड़ी आदमी था । वह पैसोंके लिये बम्बई गया,
पर बहुत जल्दी वापिस आ गया और सब कर्जा चुका दिया । लोगोंके
मनमें आश्चर्य हुआ कि यह इतनी जल्दी कैसे पैसे कमाकर ले आया ! इस घटनाको हुए अनेक
दिन बीत गये । उसका एक लड़का हुआ । वह बड़ा हुआ तो उसका विवाह कर दिया । विवाह
करनेके बाद वह बीमार हो गया । एक रात वह बहुत ज्यादा बीमार हो गया । उसके पास कई
लोग बैठे थे कि न जाने कब प्राण चले जायँ ! उस समय विश्वेश्वरलालजी खेमका भी
वहीं बैठे थे । लड़केकी स्थिति ज्यादा खराब देखकर उसका पिता रोने लग गया । जवान
लड़का हो और विवाह हो चुका हो तो उसके मरनेका दुःख ज्यादा होता है । पिताको रोते
देख वह लड़का बोला कि ‘अब रोनेसे क्या होगा
? अमुक दिन तुम यहाँसे गये
थे । तुम्हें रास्तेमें एक बंगाली मिला । उसके पास लगभग दस हजार रुपये थे । बीचके
एक स्टेशनमें ठहरना पड़ा तो उसके साथ रातमें तुम एक भड़भुँजारीके घरमें ठहरे ।
रातमें तुम और भड़भुँजारी‒दोनोंने मिलकर उस बंगालीको मार दिया और उसके सब रुपये ले लिये ।’ लड़केकी बातें सुनकर वहाँ बैठे लोग आपसमें एक-दूसरेको देखने लगे कि बात तो
यह ठीक दीखती है; क्योंकि सबके मनमें पहलेसे ही यह शंका थी कि यह इतनी जल्दी
रुपये कहाँसे लाया ? फिर वह लड़का बोला कि ‘मैं वही बंगाली हूँ और बदला लेनेके लिये ही इसके घरमें
जन्मा हूँ । अभी भी कुछ कर्जा बाकी है, उसको लेने मैं एक बार फिर आऊँगा । ब्याजसहित सब कर्जा लूँगा
।’ वहाँ बैठे किसी आदमीने कहा कि ‘यह बेचारी बनियेकी बेटी विधवा हो जायगी,
इसका क्या कसूर ?’
यह सुनते ही वह लड़का तेजीसे बोला कि ‘वही यह राँड़ भड़भुँजारी है ! इन दोनोंने मिलकर मेरेको मारा
था ! अब यह जन्मभर दुःख पायेगी ।’
लड़केकी बातें सुनकर उसका पिता बोला कि ‘यह सन्निपातमें, बेहोशीमें बोलता है ।’ उसका लड़का तेजीसे बोला कि ‘मैं सन्निपातमें नहीं बोलता हूँ । सच्ची बातें कहता हूँ । अभी
बागलोंके घरमें दीवार फोड़कर चार चोर चोरी कर रहे हैं । जाकर देख लो । अगर यह बात
सच्ची है तो मेरी बात भी सच्ची है ।’ उस समय तो वहाँ कोई गया नहीं,
पर सुबह लोगोंने देखा तो बात सच्ची निकली ।
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