।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ द्वादशी, वि.सं.-२०७५, शनिवार
 अनन्तकी ओर     



जिस दिन आपका विचार हो जायगा कि भगवान्‌के बिना मैं रह नहीं सकता तो भगवान् भी आपके बिना रह नहीं सकेंगे । एक मच्छर गरुड़जीसे मिलना चाहे और गरुड़जी मच्छरसे मिलना चाहें तो मच्छरसे मिलनेमें गरुड़की ताकत काम करेगी और वे यहीं उसे मिल जायँगे । मच्छरमें उड़नेकी कितनी ताकत है ? इसी तरह भगवान्‌से मिलनेकी इच्छा हो तो आपसे मिलनेमें भगवान्‌की ताकत काम करेगी, आपकी ताकत काम नहीं करेगी । आप विचार करो, आप भगवान्‌के पास नहीं पहुँच सकते तो क्या भगवान् भी आपके पास नहीं पहुँच सकते ? वे तो आपके हृदयमें विराजमान हैं ! भगवान्‌को आप दूर मानते हो, इसलिये भगवान् दूर होते हैं । आप मानोगे कि भगवान् मेरेको नहीं मिलेंगे तो वे नहीं मिलेंगे ।

आपको गोरखपुरकी एक घटना सुनायें । संवत् २००० से पहलेकी बात है । मैंने एक दिन व्याख्यानमें कह दिया कि आपका विचार हो जाय कि भगवान् आज मिलेंगे तो वे आज ही मिल जायँगे । एक बैंकमें काम करनेवाले सज्जन थे, नाम था‒सेवारामजी । उनको यह बात लग गयी ! वे माला ले आये, चन्दन घिस लिया कि भगवान् आयेंगे तो माला पहनाऊँगा, चन्दन लगाऊँगा । भगवान्‌के आनेकी प्रतीक्षामें बैठ गये । भगवान्‌के आनेकी उम्मीद भी हो गयी, सुगन्ध भी आने लगी, पर भगवान् आये नहीं । दूसरे दिन उन्होंने मेरेको कहा आज हमारे घर भिक्षा लो । मैं कई घरोंसे भिक्षा लेकर पाता था । उनके घर गया तो उन्होंने मेरेसे पूछा कि बात क्या है, भगवान् आये क्यों नहीं ? मैंने उनसे पूछा कि सच्‍चे हृदयसे बताओ कि तुम्हारे मनमें भगवान् इतनी जल्दी कैसे मिलेंगे’यह बात आती थी कि नहीं ? उन्होंने कहा कि यह बात तो आती थी । मैंने कहा कि इसी बातने अटकाया ! अगर यह बात होती कि मेरेको तो भगवान् मिलेंगे ही, मिलना ही पड़ेगा तो बिल्कुल मिलते । अतः यह बाधा तुम्हारी ही लगायी हुई है ! क्या भगवान्‌को भी मिलनेमें देरी लगती है ? क्या भगवान्‌को भी उद्योग करना पड़ता है ?

आज भी किसीके मनमें भगवान्‌से मिलनेका विचार हो तो आज विचार कर लो, आज ही मिल जायँगे ! रात्रिमें बैठ जाओ कि भगवान् मिलेंगे । परन्तु आपके मनमें यह छाया नहीं आनी चाहिये कि इतनी जल्दी कैसे मिलेगे ? फिर दुनिया कुछ भी कहे, कोई परवाह नहीं ! भगवान् आपके कर्मोंसे अटकते नहीं । आपके पापोंसे, दुष्कर्मोंसे भगवान् अटक जायँ तो मिलकर भी क्या निहाल करेंगे ! ऐसी कोई शक्ति है ही नहीं, जो आपको भगवान्‌से न मिलने दे ! कोई भाई-बहन कैसा ही क्यों न हो, जोरदार इच्छा हो जाय तो भगवान् मिलेंगे, मिलेंगे, मिलेगे ! जरूर मिलेंगे ! भगवान्‌को मिलना ही पड़ेगा ! परन्तु आपके भीतर यह बात नहीं रहनी चाहिये कि इतनी जल्दी भगवान् नहीं मिलते । यह बात रहेगी तो भगवान् अटक जायँगे !


अगर हमारे पापोंके कारण भगवान् न मिलते हों तो हमारे पाप भगवान्‌से बलवान् हुए । अगर पाप बलवान् हुए तो भगवान् मिलकर क्या निहाल करेंगे ! भगवान् इतने निर्बल नहीं हैं कि पापकर्मोंसे अटक जायँ । उनके समान बलवान् कोई है ही नहीं, हुआ ही नहीं, होगा ही नहीं, हो सकता ही नहीं । ऐसे भगवान् हमारेको क्यों नहीं मिलते ? क्योंकि हम उन्हें चाहते नहीं । हमारे भीतर रुपयोंकी चाहना है, फिर भगवान् बीचमें क्यों आयेंगे ? मानो भगवान् कहते हैं कि अगर मेरे बिना तेरा काम चलता है तो मेरा काम भी तेरे बिना चलता है !