।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ त्रयोदशी, वि.सं.-२०७५, रविवार
 अनन्तकी ओर     



आप संसारके लिये रोओ तो भी संसार राजी नहीं होगा, पर भगवान्‌के लिये व्याकुल हो जाओ तो भगवान् व्याकुल हो जायँगे ! जितना सत्संग करोगे, विचार करोगे, उतना फायदा जरूर होगा‒इसमें सन्देह नहीं है; परन्तु परमात्माकी प्राप्ति जल्दी नहीं होगी ! कई जन्म लग जायँगे, तब होगी ! केवल परमात्मप्राप्तिकी जोरदार इच्छा हो जाय तो भगवान्‌को आना ही पड़ेगा.....आना ही पड़ेगा ! किसीकी ताकत नहीं कि भगवान्‌को रोक दे ! भगवान् कहते हैं कि जो जैसा मेरा भजन करते हैं, मैं भी उनका वैसा ही भजन करता हूँ‒‘ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहम्’ (गीता ४ । ११) । जो मेरे बिना रो पड़ता है, उसके बिना मैं भी रो पड़ता हूँ !

संसारकी प्राप्तिमें तो क्रिया और पदार्थ मुख्य हैं, पर भगवान्‌की प्राप्तिमें भगवान्‌का आश्रय और चुप रहना (कुछ न करना) मुख्य हैं । भगवान्‌का आश्रय लेकर, उनके चरणोंमें पड़कर कुछ भी चिन्तन न करे । अगर नींद अथवा आलस्य आये तो चुप साधन न करें, प्रत्युत कीर्तन करें, भगवान्‌का नाम लें ।

भगवान्‌के चरणोंका आश्रय लेकर उसीमें तल्लीन हो जायँ । कुछ भी चिन्तन न करें‒‘आत्मसंस्थं मनः कृत्वा न किञ्चिदपि चिन्तयेत्’ (गीता ६ । २५) । यह परमात्माकी प्राप्तिका बहुत सुगम तथा बढ़िया साधन है । नित्य-निरन्तर भगवान्‌के चरणोंमें बने रहें । जो तत्परतासे साधन करता है, जिसकी परमात्मप्राप्तिकी नीयत है, उसके सब पाप चुप, स्थगित हो जाते हैं; जैसे‒कोई कर्जदार आदमी किसी बड़े सेठ, राजा-महाराजाके शरण हो जाय तो सब लेनदार चुप हो जाते हैं कि अब यह सब चुका देगा । भगवान्‌ने कहा है‒

सर्वधर्मान्परित्यज्य    मामेकं     शरणं    व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
                                     (गीता १८ । ६६)

सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर ।’


हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ कहकर भगवान्‌के चरणोंकी शरण हो जायँ तो सब पाप स्थगित हो जायँगे । हे नाथ ! हे नाथ !’ करो और कुछ भी चिन्तन मत करो । संसारका चिन्तन हो जाय तो भगवान्‌का चिन्तन करो, नहीं तो कुछ भी चिन्तन मत करो । भगवान्‌का चिन्तन करनेसे भगवान्‌से दूर होते हैं । चिन्तन न करें तो परमात्मामें ही स्थिति होती है ।