।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ पूर्णिमा, वि.सं.-२०७५, मगलवार
 अनन्तकी ओर     


अभ्याससे राग-द्वेष नहीं मिटते । अभ्यास करनेसे फायदा तो होगा, पर सीमित फायदा होगा । अभ्यास न करके अपने स्वार्थका त्याग तथा दूसरेके हितका भाव होगा तो राग-द्वेष मिट जायँगे । अभ्यासमें वस्तुओंकी आवश्यकता होती है । वस्तुओंकी आवश्यकता होनेसे राग होता है । परन्तु किसीके भी अहितका भाव न होनेमें वस्तुओंकी आवश्यकता नहीं होती ।

रचना अपने रचयिताको नहीं जान सकती । सबके रचयिता परमात्माको न जाननेके कारण आज लोगोंमें यह वहम हो गया है कि हम जो करते हैं, ठीक करते हैं । परमात्मामें अपार, असीम शक्ति है । संसारका सब कार्य ठीक करनेके लिये ब्रह्मा, विष्णु और महेश‒तीनोंकी रचना की गयी है । इतनेपर भी चिन्ता करते हैं कि मनुष्य ज्यादा हो जायँगे, कम करो ! यह (परिवार-नियोजन) मनुष्यका कर्तव्य ही नहीं है । यह मनुष्यकी अनधिकार चेष्टा है । परिवार-नियोजनकी बात किसी इतिहासमें नहीं आती । क्या बुद्धिमान् आदमी अभी पैदा हुए हैं । क्या पहले कोई बुद्धिमान् पैदा ही नहीं हुआ ? गायोंको मार देना और मनुष्योंको पैदा नहीं होने देना‒यह बड़ा भारी अन्याय है ! इसका नतीजा बहुत बुरा होगा ! मैं भविष्यको जानता नहीं हूँ, पर चाल ऐसी दीखती है कि बहुत अहित होगा, मारकाट होगी ! शान्तिसे रह नहीं सकोगे ! बड़ी दुर्दशा होगी !

लोगोंकी प्रवृत्ति पाप करनेकी तरफ जोरोंसे हो रही है । मातृशक्तिका सबसे अधिक आदर होना चाहिये, पर आज इसका महान् तिरस्कार हो रहा है । लड़कियोंको जन्मने ही नहीं देते ! लड़कियाँ नहीं होंगी तो विवाह किससे होगा ? सृष्टि कैसे चलेगी ? सन्तान नहीं चाहते हो तो संयम रखो । संयम न रखकर शरीरका भी नाश कर रहे हो । लड़के-लड़कियोंके भीतर ऐसी भावना हो गयी है कि पहले पाँच-सात वर्षतक भोग भोग लो, पीछे सन्तान पैदा हो । परन्तु पीछे होनेवाली सन्तान कमजोर होगी । पहले होनेवाली सन्तान बलवान् होती है । पीछे होनेवाली सन्तान नाश करनेवाली होगी । उनमें बुद्धि तेज नहीं होगी । वृक्षोंमें पहले बड़े-बड़े फल लगते हैं । फिर वह ज्यों पुराना होता है, त्यों फल भी कमजोर, छोटे-छोटे लगने लगते हैं ।


भगवान्‌को याद करो, भगवान्‌का भजन करो, जिससे आपकी बुद्धि शुद्ध हो जाय । बुद्धि शुद्ध, निर्मल होगी तो आपके हृदयमें अच्छी बातें पैदा होंगी । अच्छी बातोंकी तरफ आपका ध्यान जायगा । संसारमें रचे-पचे आदमियोंकी बुद्धि शुद्ध नहीं होती । भोगोंमें लगे हुए आदमियोंकी बुद्धि मारी जाती है । इसलिये हर समय भगवान्‌को हे नाथ ! हे नाथ !’ पुकारो । चलते-फिरते, उठते-बैठते भगवान्‌को याद करो । हरिस्मृतिः सर्वविपद्विमोक्षणम्’ (श्रीमद्भा ८ । १० । ५५)‒भगवान्‌को याद करनेसे सम्पूर्ण विपत्तियोंका नाश होता है, सब पाप नष्ट होते हैं, सब विलक्षण दैवी शक्तियाँ पैदा होती हैं ! भगवान्‌की विस्मृति महान् पतन करनेवाली है ।