।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ कृष्ण तृतीया, वि.सं.-२०७५, गुरुवार
                    अनन्तकी ओर     



श्रोता‒जैसे नरसीके अन्दर भगवान्‌की भक्तिका भाव जाग्रत् हुआ, ऐसे हम भी चाहते हैं, लेकिन हमारे मनमें होता नहीं, क्या बात है ?

स्वामीजी‒आप चाहते ही नहीं । चाहते तो जरूर होता ।

श्रोता‒आप अपनी फोटोके लिये मना क्यों करते हैं ? जब आप नहीं रहेंगे, तब हम आपकी फोटो देखकर आपको याद करेंगे । जैसे, भगवान्‌की फोटो होती है तो भगवान्‌को याद करते हैं, पूजा करते हैं । आगे आनेवाली पीढ़ी भी देखेगी कि ऐसे महाराजजी थे !

स्वामीजी‒हम ऐसे पूजा करवाना चाहते नहीं । हम इसके योग्य नहीं हैं । हम चाहते हैं कि भगवान्‌की ही फोटो हो और भगवान्‌का ही पूजन हो, मनुष्यका पूजन न हो । अपनी फोटो लगानेसे भगवान्‌के चिन्तनमें बाधा लगेगी, विघ्न पड़ेगा । हम जितनी फोटुएँ लगायेंगे, उतनी भगवान्‌की फोटुएँ कम लगेंगी तो हानि ही होगी ! हम अपनी तरफसे भगवान्‌की यादमें बाधा देना नहीं चाहते । भगवान्‌को याद करनेकी जैसी जरूरत है, वैसी हमें याद करनेकी जरूरत नहीं है....नहीं है....नहीं है ! मनुष्यका कल्याण जैसे भगवान्‌को याद करनेसे होगा, वैसे हमें याद करनेसे नहीं होगा । क्या हम भगवान्‌के समकक्ष हैं जो भगवान्‌की फोटोकी जगह अपनी फोटो लगवायें ?

अपनी फोटोका प्रचार करनेको मैंने अच्छा नहीं माना है । आप मेरी मान्यताको आदर दोगे या फोटोको आदर दोगे ?

श्रोता‒हमारी भगवान्‌में आस्था भी है, चलते-फिरते नाम भी लेते हैं, लेकिन सन्ध्या करते हैं या ध्यान करते हैं तो बीच-बीचमें भगवान्‌का स्वरूप अटक-भटक जाता है । क्या करना चाहिये ?

स्वामीजी‒भगवान्‌से प्रार्थना करो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । भाई-बहन ध्यान दें, ये जितने प्रश्‍न पूछे जाते हैं, उनमें आप उपाय पूछते हो । पर वास्तवमें ऊपरका उपाय काम नहीं करता, प्रत्युत भीतरकी चाहना काम करती है । भगवान् आपके भीतरकी लालसाको जानते हैं । आपकी लालसा होगी तो जरूर फायदा होगा, इसमें सन्देह नहीं है । ऊपरके उपायोंसे अथवा नकली उपायोंसे काम नहीं चलेगा । भीतरसे असली लगन लगाओ ।


आप भीतरसे संसारको चाहते हैं कि भगवान्‌को चाहते हैं ? आपको संसार (स्‍त्री, पुत्र, रुपये आदि) प्यारा लगता है कि भगवान् प्यारे लगते हैं ? आपको स्वतः-स्वाभाविक संसारकी याद आती है कि भगवान्‌की याद आती है ? आपको रुपयोंकी आवश्यकता है कि भगवान्‌की आवश्यकता है ? इन बातोंपर आप विचार करो । आप भगवान्‌का चिन्तन करते हैं और संसारका चिन्तन होता है । जो करते’ हैं, वह नकली है और जो होता’ है, वह असली है । असली बात भगवान्‌की होनी चाहिये, संसारकी नहीं । भीतरमें भगवान्‌की लालसा है तो भगवान्‌का चिन्तन जरूर होगा । अगर भीतरमें संसारकी लालसा है तो भले ही भगवान्‌का चिन्तन करो, होगा संसारका ही चिन्तन ।