घरवालोंकी सेवा करना एक नम्बर है,
बाहरकी सेवा करना दो नम्बर है । इसलिये कम-से-कम पहले कर्जा
उतारो ! जिन्होंने शरीर दिया है, शिक्षा दी है, खर्चा किया है, उनको न मानकर बाहर जाकर सेवा करते हैं‒यह बिलकुल अन्याय है
! घरमें माँ-बाप बीमार हैं और चले हैं दुनियाकी सेवा करने ! इसलिये पहले घरवालोंकी
सेवा करके कर्जा उतारो, पीछे उपकार करो । उनकी आज्ञा लेकर बाहर जाओ । ऐसी बहुत-सी बातें
हैं, जिनमें लोग उलझे हुए हैं !
श्रोता‒परमात्माकी
प्राप्तिके लिये जप, तप, भजन
आदि करनेकी बात कही जाती है, पर
रामचरितमानसमें यह बात आयी है कि जो रामेश्वरम्में गंगाजल चढ़ा देंगे, उनको
सायुज्य मिल जायगा, तो
फिर हम रामेश्वरम् जाकर गंगाजल चढ़ा देंगे, उतनेसे
हमारा कल्याण हो जायगा, बाकी
अडंगा हम करें ही क्यों ?
स्वामीजी‒बिलकुल झूठी बात है ! यह बात उनके लिये है,
जो सब काम न्याययुक्त करते हैं । आपका जीवन,
आपके आचरण अच्छे नहीं हैं तो कल्याण कैसे हो जायगा
?
ऐरण की चोरी करै, करै सुई को दान ।
ऊपर चढ़ देखण लग्यो, कद आसी
बीमान ॥
एक वेश्या थी । उसने कहीं कथामें सुन लिया कि अगर सोमवती अमावस्याके
दिन ब्राह्मणको भोजन कराकर दक्षिणा दी जाय तो पाप कट जाते हैं और दाताको स्वर्गकी प्राप्ति
होती है, उसे लेनेके लिये स्वर्गसे विमान आता है । वह ब्राह्मणके पास गयी और कहा
कि हमारे घर भोजन करो । ब्राह्मणने पूछा कि तू कौन है
? वह बोली कि मैं वेश्या हूँ
। ब्राह्मणने मना कर दिया कि हम वेश्याका अन्न नहीं खाते । रास्तेमें एक भाँड़ ब्राह्मणका
रूप बनाकर आ रहा था । वेश्याने उसको देखा तो पूछा कि तुम कौन हो
? वह बोला कि मैं पाण्डेय हूँ;
तुम कौन हो ? वेश्या बोली कि मैं खत्राणी हूँ । आप सोमवती अमावस्याके दिन
हमारे घर भोजन करो । भाँड़ बोला कि ठीक है,
पर हम अपने हाथसे बना भोजन करते हैं । वेश्याने कहा कि अच्छी
बात है ।
सोमवती अमावस्याके दिन वह भाँड़ वेश्याके घर आया । वेश्याने भोजनकी
सब सामग्री लाकर सामने रख दी । भाँड़ने रसोई बनाई और अच्छी तरहसे भोजन किया । भोजनके
बाद वेश्याने उसको दक्षिणा दी । अब वेश्या ऊपर आकाशकी तरफ देखने लगी । भाँड़ने पूछा
कि ऊपर क्या देखती हो ? वेश्या बोली कि मैं देखती हूँ कि स्वर्गसे विमान आ रहा है कि
नहीं ! भाँड़ बोला‒
तू खत्राणी मैं पांडियो, तू वेश्या
मैं भाँड़ ।
तेरे जिमाये जीमने, पत्थर पड़सी राँड ॥
ऊपरसे विमान आना तो दूर रहा,
पत्थर पड़ेंगे पत्थर !
तात्पर्य है कि आप कुछ भी करो,
रामजी कभी ठगाईमें आनेवाले नहीं हैं ! जीवन भ्रष्ट हो,
पाप करते हो तो रामेश्वरमें जल चढ़ानेसे कुछ नहीं होगा । यह
तो आपकी चालाकी है, कल्याणकी इच्छा नहीं है ! चालाकीसे
कल्याण नहीं होता । यह कहीं नहीं लिखा है कि खुला पाप करो और एक कथा करवा लो तो पुण्य
हो जायगा ।
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