।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, वि.सं.-२०७५, रविवार
                    अनन्तकी ओर     



एक गाँवमें दो ठाकुर थे । दोनोंका आधा-आधा गाँव था । एक ठाकुर तो साधन-भजन, सत्संग करनेवाला था, पर दूसरा ऐसा नहीं था । एक दिन उसके मनमें आया कि दूसरा कथा कराता है तो मैं भी कथा कराऊँ । उसने ब्राह्मणको बुलाया और कहा कि महाराज, हमारे यहाँ रामायणकी कथा कर दो । उसने कहा कि ठीक है, कर देंगे; आप भी कथा सुनना । ठाकुरने कहा कि मैं नहीं सुनूँगा; क्योंकि मेरा आपपर विश्‍वास है कि आप ठीक कथा करेंगे । कथामें तो इसलिये बैठते हैं कि विश्‍वास नहीं है कि ये कथा ठीक करेंगे या नहीं, इसलिये वे परीक्षा करनेके लिये बैठते हैं । मैं आपपर विश्‍वास करता हूँ, इसलिये सुननेकी जरूरत नहीं ।

जब कथाका अन्तिम दिन आया, तब ब्राह्मणके कहनेपर ठाकुर कथामें आया । कथाकी समाप्तिपर ब्राह्मणने ठाकुरसे कहा कि कोई बात पूछनी हो तो पूछो । ठाकुर बोला कि रामायण तो मेरी सुनी हुई है कि एक राम था और एक रावण था, पर एक शंका है कि उनमें राक्षस कौन था ? राम राक्षस था या रावण राक्षस था ? ब्राह्मण बोला कि न राम राक्षस था, न रावण राक्षस था; एक राक्षस तो तू है और एक राक्षस मैं हूँ !

चालाकीसे कभी कल्याण नहीं होता‒यह सदा याद रखो । सीधा-सरल भाव होनेसे ही कल्याण होता है । भगवान् कहते हैं‒

सरल सुभाव न मन कुटिलाई ।
जथा   लाभ   संतोष   सदाई ॥
मोर  दास  कहाइ  नर  आसा ।
करइ तौ कहहु कहा बिस्वासा ॥
बहुत  कहउँ  का  कथा  बढाई ।
एहि  आचरन  बस्य  मैं  भाई ॥
                                   (मानस, उत्तर ४६ । १-२)

सरल स्वभाव हो, मनमें कुटिलता न हो और जो कुछ मिले, उसीमें सदा सन्तोष रखे । मेरा दास कहलाकर यदि कोई मनुष्योंकी आशा करता है तो तुम्हीं कहो, उसका क्या विश्‍वास है ? बहुत बात बढ़ाकर क्या कहूँ, हे भाइयो ! मैं तो इसी आचरणके वशमें हूँ ।’

निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ॥
                              (मानस, सुन्दर ४४ । ३)

जो मनुष्य निर्मल मनका होता है, वही मुझे पाता है । मुझे कपट और छल-छिद्र नहीं सुहाते ।’

श्रोता‒वर्तमान समयमें मांस-मदिराका सेवन बड़ी तेजीसे बढ़ रहा है ! इसको कैसे रोका जाय ?


स्वामीजी‒बात कही जा सकती है, पर रोकना अपने हाथकी बात नहीं है । ये कलियुगके एजेण्ट हैं, कलियुगके वशमें हैं, इसलिये हमारी बात मानते नहीं ! ये उल्टी बात मानेंगे, सुल्टी बात नहीं मानेंगे । हमारी बात मानो तो मांस-मदिराका सेवन सनातन-धर्ममात्रमें बिलकुल नहीं होना चाहिये ।