।। श्रीहरिः ।।



आजकी शुभ तिथि–
शुद्ध ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी, वि.सं.-२०७५, सोमवार
                    अनन्तकी ओर     



मदिरापान बहुत बड़ा पाप है । इसके समान पाप कोई है ही नहीं ! मदिरापान, गुरुपत्‍नीगमन, सोनेकी चोरी और ब्रह्महत्या‒ये चार महापाप कहे गये हैं । इन चार महापाप करनेवालेका तीन वर्षतक कोई संग कर ले तो उसको भी वही महापाप लगेगा । मदिरापान गौहत्यासे भी बढ़कर महान् भयंकर पाप है ! कारण कि यह धार्मिक परमाणुओंका नाश करता है । मांस खानेसे पाप लगता है, पर मदिरापान भीतरके धार्मिक बीजोंको भूँज देता है । मदिराका पारमार्थिक बातोंके साथ विरोध है । मदिरा पीनेवालेकी बुद्धि ठीक नहीं रहती.....नहीं रहती.....नहीं रहती ! मदिराको सूँघना भी मदिरा पीनेके समान माना गया है !

श्रोता‒देवीके मन्दिरमें शराब चढ़ाते हैं, और फिर उसे प्रसाद समझकर ग्रहण करते हैं, यह उचित है क्या ?

स्वामीजी‒यह बिलकुल अनुचित है । ऐसा करनेवाले कलियुगके एजेण्ट हैं, घोर कलियुगके प्रचारक हैं !

विधि होनेपर भी त्याग सबसे बढ़िया है । शास्‍त्रमें सौंफ खानेको निषिद्ध नहीं लिखा है; परन्तु रोजाना सौंफ खानेका व्यसन भी अच्छा नहीं है । फिर मदिरा तो महान् मलिन चीज है । मेरी आपलोगोंसे प्रार्थना है कि कम-से-कम नरकोंसे तो बचो ! मांस, मदिरा, मछली, अण्डेका प्रचार महान् पतन करनेवाला है ।

मांस, अण्डा खानेसे पशु-पक्षियोंके रोग मनुष्योंमें आ जायँगे । पशु-पक्षियोंके रोग और मनुष्योंके रोग मिल करके ऐसे वर्णसंकर रोग पैदा होंगे, जिनका कोई इलाज नहीं है !

अभी बड़ा सुन्दर मौका है । इसमें चेत न करके आप बड़ी भारी भूल कर रहे हैं । अभी चेत करके अपना उद्धार करनेमें लग जाओ तो ठीक है, नहीं तो फिर इससे बढ़िया मौका मिलनेकी सम्भावना नहीं है । सांसारिक वस्तुओंकी प्राप्ति तो प्रारब्धके अधीन है, लगनके अधीन नहीं, पर आध्यात्मिक उन्नति केवल लगनके अधीन है । लगन हो तो जरूर प्राप्ति होगी, इसमें सन्देह नहीं है ।

जेहि कें जेहि पर  सत्य सनेहू ।
सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू ॥
                                       (मानस, बाल २५९ । ३)


जैसे भगवान् कहाँ हैं, कैसे हैं, क्या करते हैं आदि बातोंकी जरूरत नहीं है, प्रत्युत भगवान् हैं और मेरे हैं‒इन दो बातोंकी जरूरत है, ऐसे ही आप कैसे हो, जीवन कैसा है, कैसे आचरण हैं, क्या किया है आदि बातोंकी खास जरूरत नहीं है, प्रत्युत तीव्र लगनकी जरूरत है । परमात्माकी प्राप्ति चाहनेवालोंके लिये कलियुग खराब नहीं है, प्रत्युत बड़ा उत्तम है । अभी बहुत अच्छी-अच्छी बातें, युक्तियाँ मिल रही हैं । अभी अपना उद्धार नहीं करोगे तो कब करोगे ?