।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, 
                 वि.सं.-२०७५, सोमवार
 अनन्तकी ओर     


मुक्त होनेपर भी अहंका एक सूक्ष्म संस्कार रह जाता है, जो जन्म-मरण देनेवाला तो नहीं होता, पर मतभेद करनेवाला होता है । वह अहंकार भी न रहे, तब ठीक होता है । यह बात गीताके सिद्धान्तसे मैंने समझी है और यही बात मैंने कही है । यह बात गोस्वामी तुलसीदासजीने भी लिखी है‒

प्रेम भगति जल बिनु रघुराई ।
अभिअंतर मल कबहुँ न जाई ॥
                                        (मानस, उत्तर ४९ । ३)

यह प्रेम-भक्ति प्राप्त होनेपर वह सूक्ष्म अहं मिट जाता है, फिर कोई मतभेद नहीं रहता । अतः वास्तवमें अन्तिम तत्त्व प्रेम है । ज्ञानयोग और कर्मयोग तो साधन हैं, पर प्रेम साध्य है । यह गीताका सिद्धान्त है ।

आपसे मेरा यह कहना है कि आप परमात्माके चरणोंके शरण हो जायँ‒यह सर्वोपरि है । यह गीताका सर्वोपरि सिद्धान्त है । इसको गीताने सबसे अत्यन्त गोपनीय बताया है‒‘सर्वगुह्यतमम्’ (गीता १८ । ६४) । यह पद गीतामें एक ही बार आया है । भगवान्‌ने कहा है‒

सर्वधर्मापरित्यज्य    मामेकं     शरणं     व्रज ।
अहं त्वा सर्वपापेभ्यो मोक्षयिष्यामि मा शुचः ॥
                                                 (गीता १८ । ६६)

सम्पूर्ण धर्मोंका आश्रय छोड़कर तू केवल मेरी शरणमें आ जा । मैं तुझे सम्पूर्ण पापोंसे मुक्त कर दूँगा, चिन्ता मत कर ।’

जो भगवान्‌के चरणोंकी शरण ले लेता है, वह कहीं भी नहीं अटकता । वह सर्वथा निर्भय, निःशंक, निःशोक और निश्‍चिन्त हो जाता है । कल्याणका सबसे बढ़िया रास्ता शरणागति है । शरणागतिमें सब कुछ आ जाता है । इसलिये आप सबसे प्रेमपूर्वक, आदरपूर्वक, हाथ जोड़कर प्रार्थना है कि भगवान्‌के शरण हो जायँ कि मैं भगवान्‌का हूँ’ । जो भगवान्‌के शरण हुए हैं, उनमें बहुत विलक्षणता आयी है‒ऐसा मैंने देखा है । भगवान्‌के शरणागत भक्तमें कभी किसी मतका पक्षपात नहीं होता । शरणागत होनेसे परमात्माकी प्राप्ति बड़ी सरलतासे होती है । वह शरणागति चाहे आरम्भसे ही कर लो, चाहे कर्मयोग अथवा ज्ञानयोग करके शरणागति कर लो । यह साधककी मरजी है ।

मनुष्यशरीर परमात्मप्राप्तिके लिये ही मिला है‒इस बातको भूलो मत । यह खास बात है । मानव-जीवन तभी सफल होगा, जब परमात्माकी प्राप्ति कर लें । सदाके लिये जन्म-मरण मिट जाय, पराधीनता सर्वथा मिट जाय, सर्वथा स्वाधीन हो जायँ‒इसके लिये मनुष्यजन्म मिला है । इसलिये हमारा जितना भी कार्य-कलाप है, वह भगवत्प्राप्तिसे विरुद्ध बिलकुल नहीं होना चाहिये । इसके लिये रातमें, दिनमें, सब समयमें सावधान रहो । दुःख जितना भी आ जाय, उसे प्रसन्नतासे सहना है । जैसे बहनें-माताएँ हमारे जन्मके लिये कष्ट सहती हैं, ऐसे ही हमें परमात्मप्राप्तिके लिये कष्ट सहना है । अपने कर्तव्यका पालन करते हुए जो कष्ट सहते हैं, वह तपश्‍चर्या होती है । जब परमात्माकी प्राप्तिके लिये ही मनुष्यशरीर मिला है तो फिर परमात्माकी प्राप्ति सुगम नहीं होगी तो क्या सुगम होगा ? क्या नरकोंमें जाना सुगम होगा ? परमात्माकी प्राप्ति न करके आप कितने ही बड़े धनी हो जाओ, कितनी ही जमीन-जायदादके मालिक हो जाओ, राजा-महाराजा हो जाओ, कोई कामकी चीज नहीं है ! यह सब छूट जायगा । जब सब छूट जायगा तो फिर पासमें क्या रहेगा ? परमात्मप्राप्तिके बिना कोई चीज कामकी नहीं है । दूल्हेके बिना बरात किस कामकी ? इसलिये भाइयोंसे, बहनोंसे प्रेमपूर्वक, आदरपूर्वक यह कहना है कि एक परमात्माकी प्राप्तिका लक्ष्य कर लो । चलते-फिरते, उठते-बैठते हर समय भगवान्‌से यह प्रार्थना करते रहो कि हे नाथ ! मैं आपको भूलूँ नहीं’ । फिर सब ठीक होगा ।