एक बात और है, आप भगवान्से सम्बन्ध जोड़ लो । यह प्रेम होनेका खास उपाय है
। जबतक भगवान्से सम्बन्ध नहीं जोड़ोगे, तबतक प्रेमका उदय नहीं होगा । भगवान्को अपना मान लो,
फिर सब काम ठीक हो जायगा । अच्छी बातें स्वतः-स्वाभाविक
पैदा होंगी और उन बातोंका पालन भी होगा ।
तपस्या करनेसे प्रेम प्राप्त नहीं होता । तपस्यासे पुण्य
होता है । प्रेम पुण्यका फल नहीं है, प्रत्युत
कृपाका फल है । स्त्री,
पुत्र, धन, सम्पत्ति, वैभव आदि पुण्यका फल है । भगवान्में लगना भगवान्की कृपासे,
सन्तोंके संगसे होता है ।
जिसका जीवन निर्दोष है, जिसने
अपना कल्याण कर लिया है, उसके द्वारा दुनियामात्रको लाभ होता है । उपकार करनेकी उतनी महिमा नहीं है,
जितनी अनुपकार न करनेकी महिमा है । आप दूसरोंकी सेवामें
करोड़ रुपये खर्च करो तो उससे दुनियामात्रकी सेवा नहीं होगी,
पर किसीको भी दुःख मत दो तो दुनियामात्रकी सेवा होगी ! कारण
कि करोड़ रुपये खर्च करनेपर भी सीमित सेवा होगी,
पर किसीको दुःख न देनेसे असीम सेवा होगी । पैसा लेकर दान-पुण्य करना अच्छी बात है, पर
पैसा न लेना उससे भी श्रेष्ठ है ! इन बातोंको हरेक आदमी नहीं समझता !
अपनेमें त्यागकी जो महत्ता दीखती है कि मैं किसीसे पैसा
नहीं लेता हूँ‒यह ऊँचा
त्याग नहीं है । जबतक त्याज्य वस्तुमें महत्त्वबुद्धि न
हो, तबतक त्यागकी महिमा क्या हुई ! महिमा भावकी है, त्याज्य
वस्तुकी नहीं । जबतक भीतरमें
राग है, तबतक वह वास्तविक त्याग नहीं हुआ । भीतरमें पैसोंका लोभ, महत्व नहीं होना चाहिये । परन्तु यह त्याग
हरेककी समझमें नहीं आता ।
मर जाऊँ माँगूँ नहीं, अपने
तन के काज ।
परमारथ
के कारणे, मोही आवे लाज ॥
त्यागका जितना असर पड़ता है,
उतना दान-पुण्यका असर नहीं पड़ता । कारण कि दान-पुण्य
करनेमें (मनमें) वस्तुओंका महत्व है, पर त्याग करनेमें वस्तुओंका महत्त्व नहीं है । तात्पर्य है
कि अन्तःकरणमें वस्तुओंका महत्त्व न होनेसे ही त्यागका महत्व है । बाहरी त्यागका
महत्त्व नहीं है । मनमें वस्तुओंका जो महत्त्व है, वही
जन्म-मरणका कारण है ।
श्रोता‒हरेक श्वासमें भगवान्की स्मृति बनी रहे, इसका
क्या उपाय है ?
स्वामीजी‒हरेक श्वासमें राम-नामका जप करें । जैसे,
श्वास लेते समय ‘रा’ और छोड़ते समय ‘म’ का
मन-ही-मन जप करें । इसी तरह ‘अजपा गायत्री’ (सोऽहम्) का भी जप होता है । जैसे, श्वास
लेते समय ‘सो’ और
छोड़ते समय ‘हम्’ का जप
होता है । अजपा-गायत्रीका जप श्रेष्ठ माना जाता है;
क्योंकि इसमें बिना जप किये स्वतः जप होता है ।
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