।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी, 
                 वि.सं.-२०७५, मंगलवार
 अनन्तकी ओर     


एक बात और है, आप भगवान्‌से सम्बन्ध जोड़ लो । यह प्रेम होनेका खास उपाय है । जबतक भगवान्‌से सम्बन्ध नहीं जोड़ोगे, तबतक प्रेमका उदय नहीं होगा । भगवान्‌को अपना मान लो, फिर सब काम ठीक हो जायगा । अच्छी बातें स्वतः-स्वाभाविक पैदा होंगी और उन बातोंका पालन भी होगा ।

तपस्या करनेसे प्रेम प्राप्त नहीं होता । तपस्यासे पुण्य होता है । प्रेम पुण्यका फल नहीं है, प्रत्युत कृपाका फल है । स्‍त्री, पुत्र, धन, सम्पत्ति, वैभव आदि पुण्यका फल है । भगवान्‌में लगना भगवान्‌की कृपासे, सन्तोंके संगसे होता है ।

जिसका जीवन निर्दोष है, जिसने अपना कल्याण कर लिया है, उसके द्वारा दुनियामात्रको लाभ होता है । उपकार करनेकी उतनी महिमा नहीं है, जितनी अनुपकार न करनेकी महिमा है । आप दूसरोंकी सेवामें करोड़ रुपये खर्च करो तो उससे दुनियामात्रकी सेवा नहीं होगी, पर किसीको भी दुःख मत दो तो दुनियामात्रकी सेवा होगी ! कारण कि करोड़ रुपये खर्च करनेपर भी सीमित सेवा होगी, पर किसीको दुःख न देनेसे असीम सेवा होगी । पैसा लेकर दान-पुण्य करना अच्छी बात है, पर पैसा न लेना उससे भी श्रेष्ठ है ! इन बातोंको हरेक आदमी नहीं समझता !

अपनेमें त्यागकी जो महत्ता दीखती है कि मैं किसीसे पैसा नहीं लेता हूँयह ऊँचा त्याग नहीं है । जबतक त्याज्य वस्तुमें महत्त्वबुद्धि न हो, तबतक त्यागकी महिमा क्या हुई ! महिमा भावकी है, त्याज्य वस्तुकी नहीं । जबतक भीतरमें राग है, तबतक वह वास्तविक त्याग नहीं हुआ । भीतरमें पैसोंका लोभ, महत्व नहीं होना चाहिये । परन्तु यह त्याग हरेककी समझमें नहीं आता ।

मर जाऊँ माँगूँ नहीं, अपने तन के काज ।
परमारथ  के कारणे,  मोही आवे लाज ॥

त्यागका जितना असर पड़ता है, उतना दान-पुण्यका असर नहीं पड़ता । कारण कि दान-पुण्य करनेमें (मनमें) वस्तुओंका महत्व है, पर त्याग करनेमें वस्तुओंका महत्त्व नहीं है । तात्पर्य है कि अन्तःकरणमें वस्तुओंका महत्त्व न होनेसे ही त्यागका महत्व है । बाहरी त्यागका महत्त्व नहीं है । मनमें वस्तुओंका जो महत्त्व है, वही जन्म-मरणका कारण है ।

श्रोताहरेक श्‍वासमें भगवान्‌की स्मृति बनी रहे, इसका क्या उपाय है ?


स्वामीजीहरेक श्‍वासमें राम-नामका जप करें । जैसे, श्‍वास लेते समय रा और छोड़ते समय का मन-ही-मन जप करें । इसी तरह अजपा गायत्री (सोऽहम्) का भी जप होता है । जैसे, श्‍वास लेते समय सो और छोड़ते समय हम् का जप होता है । अजपा-गायत्रीका जप श्रेष्ठ माना जाता है; क्योंकि इसमें बिना जप किये स्वतः जप होता है ।