।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण सप्तमी, 
                 वि.सं.-२०७५, बुधवार
 अनन्तकी ओर     


श्रोता‒भगवान् तो सबसे बड़े हैं, फिर भगवान्‌का नाम भगवान्‌से भी बढ़कर कैसे ?

स्वामीजी‒कारण कि नामजप करनेसे भगवान् भी दास बन जाते हैं, वशमें हो जाते हैं ! भजन करनेवालेको भगवान् अपनेसे ऊँचा मानते हैं ।

परमात्माके साथ हमारा नित्य, अखण्ड, अटूट सम्बन्ध है । हम भले ही भूल जायँ पर भगवान् नहीं भूलते । अगर भगवान् भूल जायँ तो भी सम्बन्ध नहीं टूटेगा । यह सम्बन्ध पिता-पुत्रकी तरह भी नहीं है; क्योंकि पुत्रमें पिताके साथ माँका भी अंश होता है, पर जीव स्वयं केवल परमात्माका ही अंश है‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता १५ । ७) ।

क्रिया और पदार्थ‒इन दोनोंका केवल प्रकृतिके साथ सम्बन्ध है । इनका हमारे साथ सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि ये दोनों आदि-अन्तवाले हैं । परन्तु परमात्माके साथ हमारा आदि-अन्तवाला सम्बन्ध नहीं है, प्रत्युत स्वतः-स्वाभाविक नित्य सम्बन्ध है । इसलिये मेरे मनमें ऐसी बात आती है कि सब भाई-बहनोंको भगवान्‌के साथ अपना सम्बन्ध मानना चाहिये । यह दृढ़तासे मानना चाहिये कि भगवान् मेरे हैं । भगवान् हैं और वे मेरे हैं‒इतना ही माननेकी जरूरत है । भगवान् कहाँ हैं, कैसे हैं, क्या करते हैं‒यह जाननेकी जरूरत नहीं है ।

आपने संसारके साथ सम्बन्ध जोड़ा है, इसलिये आपके ऊपर साधन करनेकी जिम्मेवारी है । अगर संसारके साथ सम्बन्ध नहीं जोड़ो तो तो आपको साधन करनेकी जरूरत ही नहीं है । जिनके साथ सम्बन्ध जोड़ा है, उनकी सेवा करो । सेवा करो और चाहो कुछ मत तो सम्बन्ध छूट जायगा ।

अगर आप कल्याण चाहते हो तो किसी भी व्यक्तिके साथ सम्बन्ध मत जोड़ो । मेरे मनमें आती है कि आप गुरुके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो । पहलेके ही सम्बन्ध बहुत हैं, नया सम्बन्ध मत जोड़ो । आप कितना ही परिश्रम, उद्योग करो, संसारके साथ सम्बन्ध कभी रह सकता ही नहीं और भगवान्‌के साथ सम्बन्ध कभी छूट सकता ही नहीं । अगर अभी समझमें नहीं आये तो भी आप मान लो कि मैं भगवान्‌का हूँ, भगवान् मेरे हैं । यह माननामात्र भी बहुत लाभदायक है; क्योंकि सच्‍ची बात है ।


कोई दुःख हो, कोई सन्ताप हो, कोई संकट हो, कोई जरूरत हो, केवल भगवान्‌को याद कर लो, सब काम हो जायगा ! संसारमात्रमें भगवान्‌के समान सस्ता कोई नहीं है । वे सच्‍चे हृदयसे केवल याद करनेमात्रसे मिल जाते हैं ! उनको हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’ पुकारो । बार-बार एक ही प्रार्थना करो कि हे नाथ, ऐसी कृपा करो कि मैं आपको भूलूँ नहीं’