श्रोता‒भगवान्
तो सबसे बड़े हैं, फिर
भगवान्का नाम भगवान्से भी बढ़कर कैसे ?
स्वामीजी‒कारण कि नामजप करनेसे भगवान् भी दास बन जाते हैं,
वशमें हो जाते हैं ! भजन करनेवालेको
भगवान् अपनेसे ऊँचा मानते हैं ।
परमात्माके साथ हमारा नित्य,
अखण्ड, अटूट सम्बन्ध है । हम भले ही भूल जायँ पर भगवान् नहीं भूलते
। अगर भगवान् भूल जायँ तो भी सम्बन्ध नहीं टूटेगा । यह सम्बन्ध पिता-पुत्रकी तरह भी
नहीं है; क्योंकि पुत्रमें पिताके साथ माँका भी अंश होता है,
पर जीव स्वयं केवल परमात्माका ही अंश है‒‘ममैवांशो जीवलोके’ (गीता
१५ । ७) ।
क्रिया और पदार्थ‒इन दोनोंका केवल प्रकृतिके साथ सम्बन्ध है
। इनका हमारे साथ सम्बन्ध नहीं है; क्योंकि ये दोनों आदि-अन्तवाले हैं । परन्तु परमात्माके साथ
हमारा आदि-अन्तवाला सम्बन्ध नहीं है, प्रत्युत स्वतः-स्वाभाविक नित्य सम्बन्ध है । इसलिये मेरे मनमें
ऐसी बात आती है कि सब भाई-बहनोंको भगवान्के साथ अपना सम्बन्ध मानना चाहिये । यह दृढ़तासे
मानना चाहिये कि भगवान् मेरे हैं । भगवान् हैं और वे मेरे
हैं‒इतना ही माननेकी जरूरत है । भगवान् कहाँ हैं, कैसे
हैं, क्या करते हैं‒यह जाननेकी जरूरत नहीं है ।
आपने संसारके साथ सम्बन्ध जोड़ा है,
इसलिये आपके ऊपर साधन करनेकी जिम्मेवारी है । अगर संसारके साथ
सम्बन्ध नहीं जोड़ो तो तो आपको साधन करनेकी जरूरत ही नहीं है । जिनके साथ सम्बन्ध जोड़ा है, उनकी
सेवा करो । सेवा करो और चाहो कुछ मत तो सम्बन्ध छूट जायगा ।
अगर आप कल्याण चाहते हो तो किसी भी व्यक्तिके साथ
सम्बन्ध मत जोड़ो । मेरे मनमें आती है कि आप गुरुके साथ भी सम्बन्ध मत जोड़ो । पहलेके ही सम्बन्ध बहुत हैं,
नया सम्बन्ध मत जोड़ो । आप कितना ही परिश्रम,
उद्योग करो, संसारके साथ सम्बन्ध कभी रह सकता ही नहीं और भगवान्के साथ सम्बन्ध
कभी छूट सकता ही नहीं । अगर अभी समझमें नहीं आये तो भी आप मान लो कि मैं भगवान्का हूँ, भगवान् मेरे हैं । यह माननामात्र भी बहुत लाभदायक
है; क्योंकि सच्ची बात है ।
कोई दुःख हो, कोई
सन्ताप हो, कोई संकट हो, कोई
जरूरत हो, केवल भगवान्को याद कर लो, सब
काम हो जायगा ! संसारमात्रमें
भगवान्के समान सस्ता कोई नहीं है । वे सच्चे हृदयसे केवल याद करनेमात्रसे मिल जाते
हैं ! उनको ‘हे नाथ ! हे मेरे नाथ !’
पुकारो । बार-बार एक ही प्रार्थना करो कि ‘हे नाथ, ऐसी कृपा करो कि मैं आपको भूलूँ नहीं’
।
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