।। श्रीहरिः ।।


आजकी शुभ तिथि–
अधिक ज्येष्ठ कृष्ण अष्टमी, 
                 वि.सं.-२०७५, गुरुवार
 अनन्तकी ओर     


एक खास बात है कि आप भगवान्‌के अंश हैं । इस बातको आप दृढ़तासे पकड़ लें । भाई हो या बहन हो, अच्छा हो या मन्दा हो, आचरण अच्छे हों या मन्दे हों, आप कैसे ही हों; जैसे हैं वैसे ही आप भगवान्‌के हैं । यह एकदम पक्‍की, सच्‍ची बात है । दूसरी बात यह है कि आप किसीसे सम्बन्ध मत जोड़ो । संसारका सम्बन्ध भी केवल देनेके लिये, सेवा करनेके लिये ही जोड़ो । उससे लेनेकी इच्छा बिल्कुल मत रखो । जैसे, प्याऊपर बैठा आदमी केवल यह जानता है कि हरेकको ठण्डा जल पिलाना है । जो आ जाय, उसे जल पिलाना है । वह हिन्दू है या मुसलमान है अथवा ईसाई है, अच्छे आचरणवाला है या बुरे आचरणवाला है, कुछ नहीं देखना है । एक ही बात देखनी है कि वह प्यासा है तो उसे जल पिलाना है । केवल पानी पिलानेसे मतलब है । इसी तरह केवल सेवा करनेके लिये आप घरमें रहो । दूसरे हमारी सेवा करते हैं या नहीं करते, इस बातकी तरफ मत देखो । केवल दूसरेको सुख पहुँचाना है । सुख लेनेकी इच्छा ही बन्धन है । किसीसे कुछ भी लेनेकी इच्छा न रखना आपकी अपनी सेवा है !

लोगोंको कहनेकी जरूरत नहीं है, भीतरमें यह भावना बना लो कि सब सुखी हो जायँ, सबका कल्याण हो जाय, सबको परमपदकी प्राप्ति हो जाय, सबको तत्त्वज्ञान हो जाय, सब भगवान्‌के प्रेमी हो जायँ । भीतरमें उदारता आये बिना कल्याण नहीं होगा । उदारता आनेसे ही कर्मयोगका अनुष्ठान होता है ।

शरीर-संसार निरन्तर आपसे अलग हो रहे हैं, पर भगवान् कभी आपसे अलग होते ही नहीं । आपको दीखे चाहे न दीखे, आप मानें चाहे न मानें, आप स्वीकार करें चाहे न करें, सर्वसमर्थ परमात्मामें भी आपसे अलग होनेकी शक्ति नहीं है ! एक जैनी सज्जनने सेठजी श्रीजयदयालजी गोयन्दकासे प्रश्‍न किया कि भगवान् सर्वसमर्थ हैं तो वे अपना नाश कर सकते हैं कि नहीं ? सेठजीने उत्तर दिया कि भगवान् सर्वसमर्थ तो हैं, पर पागल नहीं हैं !


मेरा सभी भाई-बहनोंसे कहना है कि आप अपना लक्ष्य बना लें कि इस जीवनमें हमें क्या करना है । एक दिन सबको यहाँसे जाना पड़ेगा‒इसमें कोई सन्देह नहीं है, दो मत नहीं हैं । हमें कहाँ जाना है‒यह लक्ष्य अभी बना लो । यहाँकी कोई भी चीज आपके साथ नहीं चलेगी । आश्‍चर्यकी बात है कि यहाँसे जानेके दिन नजदीक आ रहे हैं, पर आप यहाँ रहनेकी तैयारी कर रहे हो, नयी-नयी चीजोंका संग्रह कर रहे हो ! पहले यह बात सोचनेकी है कि जाना कहाँ है ? परन्तु इस तरफ सत्संग करनेवाले आदमियोंका भी कम ख्याल है, जो सत्संगमें नहीं आते, उनका तो कहना ही क्या !